गुस्सा और अहंकार—दो ऐसी भावनाएं हैं जो इंसान की सोच, संबंध और समाज में उसके व्यवहार को गहराई से प्रभावित करती हैं। आज की तेज़ रफ्तार और तनावपूर्ण जीवनशैली में यह आम बात हो गई है कि लोग छोटी-छोटी बातों पर चिड़चिड़ा हो जाते हैं या खुद को दूसरों से श्रेष्ठ समझने लगते हैं। परिणामस्वरूप रिश्तों में दरारें आती हैं, मानसिक शांति भंग होती है और कई बार अकेलापन भी घेर लेता है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या गुस्से और अहंकार से निजात पाना संभव है? जवाब है—हाँ। आत्मचिंतन, अनुशासन और कुछ व्यवहारिक उपायों से इन भावनाओं पर नियंत्रण पाया जा सकता है। आइए जानते हैं कैसे।
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1. गुस्से को समझें, दबाएं नहीं
गुस्सा कोई बुरी चीज़ नहीं है, यह एक सामान्य मानवीय प्रतिक्रिया है। लेकिन जब यह बार-बार और बिना नियंत्रण के आता है, तब यह विनाशकारी रूप ले लेता है। गुस्से को दबाने की बजाय उसे समझने की जरूरत है। गुस्सा क्यों आ रहा है? किस बात ने आपको ट्रिगर किया? इन सवालों के जवाब खोजने से हम अपने व्यवहार का मूल कारण जान पाते हैं और समाधान की ओर बढ़ सकते हैं।
2. अहंकार की जड़ तक जाएं
अहंकार अक्सर हमारे ‘असुरक्षित आत्म’ का मुखौटा होता है। जब हम भीतर से खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं या अपनी योग्यता पर शंका होती है, तो हम दूसरों से बेहतर दिखने की कोशिश करने लगते हैं—यही है अहंकार। इसे दूर करने के लिए खुद को स्वीकार करना जरूरी है। आत्मविश्वास और आत्ममूल्यांकन के साथ जब हम विनम्रता अपनाते हैं, तब अहंकार धीरे-धीरे कम होने लगता है।
3. ध्यान और प्राणायाम से पाएं मानसिक स्थिरता
गुस्से और अहंकार को नियंत्रित करने में ध्यान (Meditation) और प्राणायाम अत्यंत सहायक सिद्ध होते हैं। रोज़ाना 10 से 15 मिनट का ध्यान, विशेषकर “अनुलोम-विलोम” या “भ्रामरी प्राणायाम”, मानसिक अशांति को दूर करता है और मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। यह आत्मनिरीक्षण को बढ़ाता है, जिससे हम अपने गुस्से के कारणों को पहचान पाते हैं और उन पर काम कर सकते हैं।
4. संवाद की कला सीखें
अक्सर गुस्सा तब आता है जब हम अपनी बात स्पष्ट नहीं कह पाते या सामने वाला हमारी भावनाओं को समझ नहीं पाता। ऐसे में संवाद की कला बहुत ज़रूरी है। शांत और स्पष्ट शब्दों में अपनी बात कहना, सामने वाले की बात को ध्यान से सुनना और प्रतिक्रिया देने से पहले ठहराव रखना—यह सब न केवल गुस्से को कम करता है, बल्कि रिश्तों को मजबूत भी बनाता है।
5. ‘मैं’ को ‘हम’ में बदलें
अहंकार का मूल ‘मैं’ होता है—”मैंने किया”, “मेरी वजह से हुआ”, “मुझे कोई टोक न दे” जैसी सोच हमें अलग-थलग कर देती है। जब हम ‘मैं’ की जगह ‘हम’ की भावना से सोचते हैं तो हम सहयोग, सहभागिता और सामूहिकता को महत्व देते हैं। यह मानसिक संतुलन लाता है और अहंकार को मिटाने में मदद करता है।
6. कभी-कभी मौन रहना सीखें
चुप रहना कमजोरी नहीं, बल्कि बहुत बड़ा आत्मबल होता है। हर परिस्थिति में प्रतिक्रिया देना जरूरी नहीं होता। कई बार चुप रहना सबसे बड़ी प्रतिक्रिया होती है। जब आपको लगे कि बात बिगड़ सकती है या गुस्सा सिर चढ़ रहा है, तो कुछ समय के लिए खुद को उस स्थिति से दूर कर लें और मौन धारण करें। यह आपको स्थिति को सोचने और संभालने का समय देगा।
7. गुस्से के बाद माफी माँगना सीखें
गुस्से में बोले गए शब्द तीर की तरह होते हैं—छूटते ही सामने वाले को घायल कर देते हैं। अगर कभी गुस्से में कुछ गलत कह दिया हो, तो दिल से माफी माँगें। यह आपके रिश्तों को बचाएगा और आपके भीतर विनम्रता को बनाए रखेगा।
8. आभार की भावना रखें
जब हम जीवन में प्राप्त छोटी-छोटी चीज़ों के लिए आभार व्यक्त करना सीख जाते हैं, तो हमारी नकारात्मक भावनाएं स्वतः ही कम होने लगती हैं। अहंकार और गुस्सा दोनों ही “अधूरा” महसूस कराने वाले भाव हैं, जबकि आभार “पूर्णता” का एहसास कराता है। यह एहसास हमें शांत और संतुलित बनाता है।








