जीवन में अगर कोई भावना सबसे अधिक क्षणिक और विनाशकारी है तो वह है क्रोध। यह एक ऐसी भावना है, जो न केवल हमारे मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, बल्कि रिश्तों, करियर और सामाजिक जीवन तक में जहर घोल सकती है। लेकिन क्या क्रोध को दबाना ही समाधान है? या उसे समझना और स्वीकार करना अधिक सही तरीका है?इस सवाल का उत्तर हमें मिलता है विश्वप्रसिद्ध रहस्यवादी और आध्यात्मिक गुरु ओशो रजनीश की शिक्षाओं में। ओशो ने क्रोध को नकारने या दबाने के बजाय, उसे समझने और उससे सीखने की बात कही है। उनका मानना था कि क्रोध को नकारने से वह भीतर ही भीतर और विकराल रूप ले लेता है, जबकि यदि हम उसे पूरी जागरूकता से देखें, तो वह स्वयं ही समाप्त हो जाता है।
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क्रोध: एक स्वाभाविक लेकिन अधूरा अनुभव
ओशो कहते हैं, “क्रोध कोई समस्या नहीं है, यह तो एक ऊर्जा है। जब यह ऊर्जा कुशलता से उपयोग में लाई जाती है, तब यह करुणा बन सकती है। जब इसे दबा दिया जाता है, तब यह हिंसा बन जाती है।”क्रोध तब आता है जब हमारी अपेक्षाएँ टूटती हैं, जब कुछ हमारे मनमुताबिक नहीं होता। यह एक रिएक्शन है, प्रतिक्रिया। लेकिन अक्सर हम इस रिएक्शन को सही दिशा में ले जाने के बजाय या तो उसे विस्फोटक बना देते हैं या पूरी तरह दबा देते हैं। दोनों ही स्थिति में नुकसान होता है।ओशो के अनुसार, क्रोध को दबाना वैसा ही है जैसे किसी विस्फोटक को ढककर छोड़ देना – एक दिन वह और अधिक जोर से फटेगा।
क्रोध से निपटने के ओशो के 5 प्रमुख सूत्र
1. क्रोध को स्वीकारें, इनकार न करें
ओशो कहते हैं कि पहला कदम है – क्रोध को पहचानना और स्वीकार करना। अगर आप गुस्से में हैं, तो उसे झूठी मुस्कान से ढकने की बजाय खुद से ईमानदारी रखें। जब आप कहते हैं, “हां, मैं गुस्से में हूं”, तो आप उसके प्रति सजग हो जाते हैं – और यही सजगता ही पहला इलाज है।
2. क्रोध को बाहर निकालने के लिए स्वस्थ माध्यम चुनें
ओशो ने कई बार लोगों को क्रोध को बाहर निकालने के लिए ध्यान विधियाँ सुझाईं। उनकी ‘डायनेमिक मेडिटेशन’ या ‘कथार्सिस ध्यान’ की पद्धति इसीलिए बनी थी – कि लोग अपने भीतर जमा हुए नकारात्मक भावों को नृत्य, चीख, हिलने-डुलने या श्वास-प्रश्वास के ज़रिए बाहर निकाल सकें। इससे न केवल मन हल्का होता है, बल्कि क्रोध की जड़ें भी कमजोर पड़ती हैं।
3. क्रोध को तुरंत प्रतिक्रिया में न बदलें
ओशो सुझाव देते हैं कि जब भी क्रोध आए, तुरंत प्रतिक्रिया न दें। कुछ देर रुकें, उसे देखें, समझें। यह रुकना ही आपकी शक्ति है। अगर आप उस पल को टाल सकते हैं, तो 90% संभावना है कि आप कोई गलत निर्णय नहीं लेंगे।
4. ध्यान और शांति से जुड़ें
ओशो का मानना था कि नियमित ध्यान और मौन अभ्यास से मन में ऐसी जागरूकता पैदा होती है, जिससे कोई भी भावना, चाहे वह क्रोध ही क्यों न हो, आपके ऊपर हावी नहीं होती। आप उसे देख सकते हैं, पर उसका हिस्सा नहीं बनते।
5. क्रोध के पीछे छिपे डर और अपेक्षाओं को पहचानें
कई बार गुस्से के पीछे डर, असुरक्षा, चोट या अधूरी अपेक्षाएं छिपी होती हैं। ओशो कहते हैं कि अगर आप अपने भीतर ईमानदारी से झांकेंगे, तो पाएंगे कि क्रोध तो सिर्फ एक परत है – इसके नीचे कुछ और ही चल रहा होता है। उसे समझना जरूरी है।ओशो की क्रांतिकारी बात: “क्रोध से भागो मत, उसे जियो – पर पूरी सजगता से”
ओशो की सबसे बड़ी विशेषता यही थी कि वे किसी भावना को गलत या पाप नहीं मानते थे। उनके अनुसार, “जो कुछ भी तुम्हारे भीतर है, वह तुम्हारा ही हिस्सा है। क्रोध को जियो, लेकिन होश के साथ।”इस ‘होश’ का अर्थ है – हर पल यह जानना कि आप क्या कर रहे हैं, क्यों कर रहे हैं, और क्या इसके परिणाम होंगे। अगर आप इस तरह क्रोध को जीते हैं, तो वह आपको जला नहीं सकता – वह आपकी चेतना को परिष्कृत कर सकता है।
समाज में बढ़ता क्रोध: क्या ओशो की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं?
आज के समय में, जब सोशल मीडिया, प्रतिस्पर्धा और भागदौड़ से भरा जीवन लोगों को चिड़चिड़ा और क्रोधित बना रहा है, ओशो की बातें पहले से कहीं ज्यादा जरूरी हो गई हैं। क्रोध को दबाने या उस पर नकली परदा डालने की जगह अगर हम उसे समझने और सही दिशा में प्रयोग करने की कला सीख जाएं, तो यह न केवल हमारी व्यक्तिगत जिंदगी को संतुलित कर सकती है, बल्कि समाज को भी एक शांत दिशा दे सकती है।