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अगर आप भी उलझ गए है प्रेम, वासना और आकर्षण के खेल में, तो 3 मिनट के इस शानदार वीडियो में जाने इन तीनों में कैसे करे फर्क

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आधुनिक जीवन में प्रेम, आकर्षण और वासना जैसे भाव अक्सर भ्रमित करने वाले प्रतीत होते हैं। लोग इन्हें एक ही रूप में समझ लेते हैं, जबकि ओशो की शिक्षाओं के अनुसार, यह तीनों भाव पूरी तरह अलग हैं और इनके बीच भेद करना बेहद आवश्यक है। ओशो कहते हैं कि जीवन में संतुलन बनाए रखने और स्वस्थ संबंध बनाने के लिए इनकी पहचान और समझ होना अनिवार्य है।

प्रेम: आत्मा का गहरा संबंध

ओशो के अनुसार प्रेम वह भाव है जो आत्मा से जुड़ा होता है। यह न केवल आकर्षण या शारीरिक इच्छाओं का परिणाम होता है, बल्कि यह आपके और दूसरे व्यक्ति के बीच की गहरी समझ और विश्वास का प्रतिबिंब है। प्रेम में किसी भी तरह की लालसा या स्वार्थ नहीं होता। यह निरंतर देने और पाने की प्रक्रिया से परे होता है। ओशो कहते हैं, “जब प्रेम सच्चा होता है, तब यह न तो अधिकार बनाता है और न ही सीमाएं खींचता है। यह पूरी तरह स्वतंत्र और सहज होता है।”प्रेम का अनुभव तब होता है जब आप किसी के साथ समय बिताने में खुश महसूस करते हैं, बिना किसी स्वार्थ या अपेक्षा के। यह भाव स्थायी होता है और व्यक्ति के मानसिक और भावनात्मक विकास में सहायक होता है।

वासना: शारीरिक इच्छा का खेल

वासना एक शारीरिक ऊर्जा है, जो अक्सर आकर्षण के साथ भ्रमित हो जाती है। ओशो के अनुसार, वासना शरीर से जुड़ी हुई है और यह केवल तात्कालिक संतुष्टि प्रदान करती है। यह भाव अस्थायी होता है और यदि इसे प्रेम समझ लिया जाए, तो रिश्तों में भ्रम और तनाव पैदा हो सकता है।वासना का उद्देश्य केवल शारीरिक संतुष्टि होता है, और यह भाव अक्सर जल्द ही समाप्त हो जाता है। ओशो ने कहा है कि जब लोग वासना को प्रेम समझ बैठते हैं, तब वे अपेक्षाओं और निराशाओं के जाल में फंस जाते हैं। इसलिए, इसे पहचानना और सीमाओं में रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

आकर्षण: भावनात्मक और मानसिक जुड़ाव

आकर्षण और प्रेम में भी अंतर होता है। आकर्षण वह शक्ति है जो आपको किसी व्यक्ति की ओर खींचती है। यह शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक हो सकता है। ओशो कहते हैं कि आकर्षण किसी भी तरह के संबंध की शुरुआत हो सकती है, लेकिन यह स्थायी प्रेम का संकेत नहीं है।आकर्षण का अनुभव तब होता है जब आप किसी की ऊर्जा, व्यक्तित्व या व्यवहार से प्रभावित होते हैं। यह स्वाभाविक होता है और अक्सर तुरंत महसूस किया जा सकता है। ओशो की सीख यह है कि आकर्षण का सही उपयोग करें और इसे प्रेम में बदलने की प्रक्रिया को समझें।

भेद करने के तरीके

ओशो के अनुसार, प्रेम, वासना और आकर्षण में भेद करना सीखने के लिए आत्म-जागरूकता आवश्यक है। व्यक्ति को अपनी इच्छाओं, भावनाओं और ऊर्जा को समझना होगा। यह समझना जरूरी है कि प्रेम स्थायी और निस्वार्थ होता है, वासना क्षणिक और शारीरिक होती है, जबकि आकर्षण मानसिक और भावनात्मक जुड़ाव की शुरुआत है।ओशो सुझाव देते हैं कि ध्यान, ध्यानपूर्ण संवाद और आत्म-निरीक्षण के माध्यम से इन भावों को समझा जा सकता है। जब आप अपनी भावनाओं के स्रोत को पहचान लेते हैं, तब आप संबंधों में संतुलन बनाए रख सकते हैं और स्वस्थ प्रेम और आकर्षण का अनुभव कर सकते हैं।

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