मानव जीवन में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है “अहंकार” — वह अदृश्य ज़हर जो भीतर ही भीतर इंसान को खा जाता है। ओशो रजनीश, जिनकी बातें आत्मा को झकझोर देती हैं और चेतना को झकझोरने का सामर्थ्य रखती हैं, उन्होंने अहंकार के विषय में कई बार गहराई से कहा है कि जब तक अहंकार न छूटे, तब तक व्यक्ति स्वयं को जान ही नहीं सकता।
आज के तेज़ी से बदलते समाज में, जहाँ व्यक्ति की पहचान उसके पद, पैसा और प्रतिष्ठा से मापी जाने लगी है, वहाँ ओशो की चेतावनी और भी ज़्यादा प्रासंगिक हो जाती है। उन्होंने अपने प्रवचनों में कहा था — “अहंकार मृत्यु की ओर ले जाता है, विनम्रता जीवन की ओर।” आइए ओशो के विचारों और शिक्षाओं के माध्यम से समझते हैं कि अगर अहंकार को नहीं त्यागा गया, तो इसके क्या-क्या भयानक परिणाम हो सकते हैं।
1. अहंकार आपको सत्य से दूर कर देता है
ओशो कहते हैं कि अहंकारी व्यक्ति अपने भीतर झाँक ही नहीं पाता। वह अपने झूठे ‘मैं’ की दीवारों के पीछे जीता है। जब तक ‘मैं’ बना रहेगा, तब तक परम सत्य की अनुभूति असंभव है।
2. संबंधों में विष घोल देता है अहंकार
जहाँ अहंकार होता है, वहाँ प्रेम नहीं टिकता। ओशो स्पष्ट रूप से कहते हैं कि अहंकार दो लोगों के बीच दीवार बन जाता है। यह दीवार धीरे-धीरे रिश्तों को खोखला बना देती है।
3. अहंकार आपको अकेला कर देता है
जिस व्यक्ति में ‘मैं’ की भावना तीव्र होती है, वह स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ समझने लगता है और यह श्रेष्ठता-बोध धीरे-धीरे उसे सबकी नजरों से गिरा देता है। परिणामस्वरूप वह अकेलेपन में घिर जाता है।
4. मन की शांति नष्ट हो जाती है
ओशो के अनुसार, अहंकारी व्यक्ति हमेशा किसी प्रतियोगिता में रहता है — किसी से आगे निकलने की होड़ में। यह दौड़ अंतहीन है और इसकी थकावट से व्यक्ति मानसिक अशांति का शिकार हो जाता है।
5. ज्ञान का द्वार बंद हो जाता है
जिसके भीतर अहंकार होता है, वह नया सीख ही नहीं सकता। ओशो ने कहा, “अहंकार आपको मूर्ख बना देता है, क्योंकि आप यह मान लेते हैं कि आप सब जानते हैं।”
6. आध्यात्मिक यात्रा का अवरोध बनता है
ओशो मानते हैं कि ध्यान, समर्पण और आत्मबोध की शुरुआत ही तब होती है जब ‘मैं’ समाप्त होता है। अहंकार जब तक है, तब तक आत्मा की आँखें बंद रहती हैं।
7. दूसरों को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति बढ़ती है
अहंकारी व्यक्ति हमेशा चाहता है कि उसे सराहा जाए और वह दूसरों से ऊपर दिखे। यह भावना उसे लगातार नकारात्मकता और दूसरों से तुलना में डाले रखती है।
8. नफ़रत और द्वेष को जन्म देता है अहंकार
ओशो कहते हैं कि अहंकार से जन्मी श्रेष्ठता की भावना जब चुनौती महसूस करती है, तो वह दूसरों के प्रति नफ़रत और ईर्ष्या का रूप ले लेती है। इससे समाज में तनाव बढ़ता है।
9. असली खुशी से दूरी
अहंकार तात्कालिक संतुष्टि तो दे सकता है, लेकिन दीर्घकालिक आनंद नहीं। ओशो कहते हैं, “अहंकार का सुख अस्थायी है, पर आत्मज्ञान का सुख शाश्वत।”
10. अंततः विनाश का कारण बनता है अहंकार
इतिहास इस बात का गवाह है कि अहंकार ने न केवल व्यक्तियों, बल्कि साम्राज्यों को भी मिटा दिया। ओशो कहते हैं, “जहाँ अहंकार होता है, वहाँ विनाश की शुरुआत होती है।”
तो समाधान क्या है?
ओशो के अनुसार समाधान है — ध्यान, मौन और समर्पण। उन्होंने सिखाया कि स्वयं को देखो, अपने ‘मैं’ को पहचानो और फिर उसका अवलोकन करते-करते उसे त्याग दो। जब ‘मैं’ मिटता है, तब ‘वह’ प्रकट होता है — वही परम शिव, वही ब्रह्म।वह कहते हैं, “जब तुम विनम्र होते हो, तब तुम ब्रह्मांड के साथ एक हो जाते हो। जब अहंकार होता है, तब तुम अकेले पड़ जाते हो, और अकेलापन ही सबसे बड़ा दुख है।”