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अतीत के दर्द को भूलना क्यों होता है इतना कठिन? वीडियो में देखे इस बारे में क्या है विज्ञान और वैज्ञानिकों की राय

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कभी-कभी ऐसा लगता है कि जितनी बार हम किसी पुराने दुःख को भूलना चाहते हैं, उतनी ही बार वह यादें और गहराई से हमारे मन में बस जाती हैं। कोई बिछड़ता हुआ रिश्ता, कोई दुखद दुर्घटना, अपमान, या कोई ऐसी घटना जो दिल को अंदर तक झकझोर देती है – ये सब यादें मन और मस्तिष्क में बार-बार लौटकर आती हैं, मानो हमें कुछ समझाना चाहती हों। पर क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर अतीत की दुःखदायी यादों को भूलना इतना मुश्किल क्यों होता है? इसके पीछे सिर्फ भावनात्मक कारण नहीं, बल्कि गहराई से जुड़ा हुआ विज्ञान और मानव मस्तिष्क की कार्यप्रणाली भी जिम्मेदार है।


मस्तिष्क की संरचना और स्मृति का खेल

मानव मस्तिष्क की बनावट बेहद जटिल है। इसमें एक महत्वपूर्ण हिस्सा है हिप्पोकैम्पस (Hippocampus), जो हमारी दीर्घकालीन यादों को संग्रहित करता है। जब कोई भावनात्मक रूप से गहरी या सदमे वाली घटना होती है, तो वह मस्तिष्क के इस हिस्से में बहुत प्रभावशाली रूप से दर्ज हो जाती है। इसके साथ ही एमिगडाला (Amygdala) नामक हिस्सा भी सक्रिय हो जाता है, जो भावनाओं को संसाधित करता है – खासकर डर, दुःख और क्रोध जैसी नकारात्मक भावनाओं को।जब कोई दर्दनाक घटना घटती है, तो मस्तिष्क उसे “सर्वाइवल मोड” में दर्ज कर लेता है ताकि भविष्य में ऐसा न हो। यह एक तरह से रक्षा तंत्र है – लेकिन यही तंत्र बार-बार वही यादें सामने लाकर हमें मानसिक रूप से परेशान भी करता है।

क्यों नकारात्मक यादें ज्यादा गहराई से बसती हैं?
एक शोध के अनुसार, नकारात्मक घटनाएं मस्तिष्क में सकारात्मक घटनाओं की तुलना में अधिक तीव्रता से दर्ज होती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि हमारे मस्तिष्क की प्राथमिकता पहले “सुरक्षा” है, और वह हमें बार-बार चेतावनी देने के लिए ऐसी घटनाओं को याद रखता है।उदाहरण के लिए – अगर किसी ने आपको कभी धोखा दिया हो, तो अगली बार आप जब भी वैसी स्थिति में होंगे, मस्तिष्क उसी पुरानी याद को सामने लाकर कहेगा – “सावधान रहो!” यह एक evolutionary mechanism है जो हमारे पूर्वजों से चला आ रहा है।

ट्रिगर और फ्लैशबैक: यादें कैसे लौटती हैं?
कई बार कोई गंध, आवाज, गीत या जगह उस दुःखद घटना की याद को अचानक सामने ला देती है। इसे ट्रिगर (Trigger) कहा जाता है। ट्रिगर हमारे अवचेतन में गहराई से दर्ज होते हैं और जब कोई बाहरी संकेत उससे मेल खाता है, तो तुरंत ही स्मृति सक्रिय हो जाती है।उदाहरण के लिए, किसी खास गाने को सुनते ही अगर आपकी आंखें नम हो जाती हैं, तो संभवतः वह गाना किसी दुखद पल से जुड़ा रहा होगा।

वैज्ञानिक क्या कहते हैं?
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल और अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन की रिपोर्ट्स के अनुसार, दुःखद यादों से मुक्त होना आसान नहीं होता क्योंकि वे बार-बार मस्तिष्क की न्यूरल नेटवर्क में सक्रिय होती रहती हैं। जब हम किसी अनुभव को बार-बार याद करते हैं या उस पर सोचते हैं, तो वह मेमोरी ट्रेस और मजबूत हो जाता है – जैसे किसी खेत में बार-बार चलने से पगडंडी बन जाती है।यही कारण है कि “सोचना बंद करो” कहने से विचार रुकता नहीं, बल्कि उल्टा और सक्रिय हो जाता है। इस प्रक्रिया को “Reinforced Memory Pathway” कहा जाता है।

समाधान क्या है?
स्वीकृति (Acceptance) – सबसे पहले हमें यह स्वीकार करना होता है कि वो घटना हमारे साथ हुई और हम उससे प्रभावित हैं।
थेरेपी और काउंसलिंग – मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, बात करना और खुलकर भावनाओं को व्यक्त करना बेहद जरूरी है।
माइंडफुलनेस और मेडिटेशन – ध्यान और वर्तमान में जीना सीखने से यादों के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
क्रिएटिव एक्सप्रेशन – लेखन, कला, संगीत जैसे माध्यम से आप अपने अंदर की पीड़ा को बाहर निकाल सकते हैं।
नए अनुभव – मस्तिष्क को नई यादें देने से पुरानी स्मृतियों की पकड़ धीरे-धीरे ढीली पड़ती है।

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