भारत सरकार भारत में रेल यातायात को सुचारू और सभी सुविधाओं से सुसज्जित बनाने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है। इसी का नतीजा है कि बुलेट ट्रेन परियोजना पर काम आगे बढ़ाने के बाद सरकार अब “हाइपरलूप ट्रैक” का परीक्षण करने जा रही है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने देश के पहले हाइपरलूप ट्रैक के निर्माण की जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि यह ट्रैक आईआईटी मद्रास की मदद से बनाया गया है, जो 410 मीटर लंबा है। इस परियोजना में आईआईटी मद्रास की “आविष्कार हाइपरलूप” टीम और स्टार्टअप “ट्यूटर” ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
यहां काम तेजी से चल रहा है।
मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस परियोजना का वीडियो साझा करते हुए कहा कि हाइपरलूप तकनीक देश के परिवहन के तरीके को पूरी तरह से बदल देगी। हाइपरलूप ट्रैक भारत में चेन्नई के पास आईआईटी मद्रास के “थाईसुर डिस्कवरी” परिसर में स्थित है। इसकी लंबाई 410 मीटर है। इसके अलावा टाटा समूह ने भारत में 2.5 किलोमीटर लंबा हाइपरलूप परीक्षण ट्रैक भी विकसित किया है। यह ट्रैक हाइपरलूप विकास और परीक्षण के लिए बनाया गया है। इस ट्रैक पर हाइपरलूप पॉड की गति, सुरक्षा और दक्षता का परीक्षण किया जाएगा।
हाइपरलूप तकनीक क्या है?
हाइपरलूप आधुनिक तकनीक से बनी एक उन्नत परिवहन प्रणाली है। यह प्रणाली पॉड्स को उच्च गति पर चलाने के लिए निम्न दबाव ट्यूबों के भीतर “चुंबकीय उत्तोलन” का उपयोग करती है। इससे “वायुमंडलीय घर्षण” कम हो जाता है और पॉड 1000 किलोमीटर प्रति घंटे तक की गति से यात्रा कर सकता है। आपको बता दें कि भारतीय हाईलूप ट्रैक का परीक्षण 600 किलोमीटर प्रति घंटे तक की गति से किया जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस तकनीक से सार्वजनिक परिवहन आसान और तेज़ हो जाएगा। अनुमान लगाया जा रहा है कि हाइपरलूप की मदद से दिल्ली से जयपुर की दूरी महज 50 मिनट में तय की जा सकेगी।
हाइपरलूप तकनीक की सफलता से न केवल यात्रा आसान और तेज होगी, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी सर्वोत्तम है। इसमें वायु प्रदूषण शून्य के बराबर है। भविष्य में इस माध्यम से देश के अन्य शहरों के बीच यात्रा को आसान और तेज बनाया जा सकेगा।