Home व्यापार अमेरिका-यूरोप डील के तुरंत बाद भारत पर दिखने लगे ‘दुष्प्रभाव’, इन संकेतों...

अमेरिका-यूरोप डील के तुरंत बाद भारत पर दिखने लगे ‘दुष्प्रभाव’, इन संकेतों से समझें हम पर इसका क्या असर होता है?

8
0

अमेरिका और यूरोपीय संघ (ईयू) के बीच हाल ही में हुए व्यापार समझौते को वैश्विक बाजारों ने सकारात्मक संकेत माना है। इस समझौते से वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता कम होने की उम्मीद जताई जा रही है, जिससे आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिल सकता है। हालांकि, इस समझौते का असर भारत पर उतना सीधा और सकारात्मक नहीं दिख रहा है। भारतीय रुपये की कमजोरी, विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) की निकासी, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें और शेयर बाजारों में नकारात्मकता इस बात के प्रमुख संकेतक हैं।

अमेरिका-ईयू व्यापार समझौते का वैश्विक प्रभाव

अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच यह द्विपक्षीय व्यापार समझौता एक बड़े आर्थिक टकराव को टालने में कामयाब रहा है। इसके चलते वैश्विक आर्थिक स्थिरता बढ़ने की उम्मीद है। यूरो की मजबूती और वैश्विक शेयर बाजारों में तेजी से यह संकेत मिला कि बड़े आर्थिक ब्लॉकों के बीच व्यापार तनाव कम हो रहा है। इस समझौते ने वैश्विक आर्थिक जोखिम को कम किया है, जिससे निवेशकों के मनोबल में वृद्धि हुई है।

भारत पर प्रतिकूल प्रभाव के कारण

जबकि वैश्विक स्तर पर सकारात्मकता दिखी है, भारत में स्थिति कुछ अलग नजर आ रही है। डील के बाद भारतीय रुपये पर दबाव बढ़ा है और इसके अवमूल्यन का खतरा बना हुआ है। जुलाई माह में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से लगभग 75 करोड़ डॉलर की शुद्ध बिक्री की है। 24 जुलाई को ही एफपीआई ने शेयरों में 23.11 करोड़ डॉलर और बॉन्ड में 5.52 करोड़ डॉलर की बिकवाली की। यह प्रवृत्ति पिछले तीन महीनों के निवेश प्रवाह के उलट है, जो दर्शाती है कि वैश्विक व्यापार स्थिर होने के बावजूद विदेशी निवेशकों का रुझान भारत से बाहर निकलने की ओर है।

रुपये पर दबाव और बाजार की प्रतिक्रिया

भारतीय रुपये की तुलना अमेरिकी डॉलर के मुकाबले गिरावट दर्ज की गई है। इसका प्रमुख कारण विदेशी निवेशकों की निकासी और बढ़ती वैश्विक अस्थिरता है। साथ ही, शेयर बाजारों में भी निराशाजनक प्रदर्शन देखने को मिला है। निवेशकों ने समझौते के बाद अमेरिकी और यूरोपीय बाजारों को अधिक स्थिर और आकर्षक माना है, जिसके चलते भारत जैसे उभरते बाजारों से पूंजी बाहर जाने की संभावना बढ़ गई है।

बढ़ती क्रूड ऑयल कीमतें और भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर

अमेरिका-ईयू के समझौते के साथ-साथ चीन के साथ संभावित टैरिफ विराम की उम्मीदों ने कच्चे तेल की कीमतों को बढ़ावा दिया है। ब्रेंट क्रूड वायदा 68.7 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच गया है। भारत एक बड़ा कच्चे तेल आयातक है, इसलिए तेल की बढ़ती कीमतें भारत के आयात बिल को भारी बना सकती हैं। इसका सीधा असर व्यापार घाटे पर होगा और महंगाई बढ़ेगी, जो भारतीय रिजर्व बैंक पर ब्याज दरों को बढ़ाने का दबाव डाल सकती है।

फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति और भविष्य के संकेत

अगले कुछ दिनों में फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति बैठक भी आर्थिक माहौल पर असर डाल सकती है। हालांकि ब्याज दरों में बदलाव की संभावना कम है, लेकिन फेड के बयान और चेयर जेरोम पॉवेल की टिप्पणियां निवेशकों के लिए अहम होंगी। अगर सितंबर में ब्याज दरों में कटौती के संकेत मिलते हैं, तो अमेरिकी बाजार विदेशी निवेशकों के लिए और आकर्षक हो जाएंगे, जिससे भारत में पूंजी निकासी की प्रवृत्ति जारी रह सकती है।

भारत की स्थिति और चुनौतियां

भारत अमेरिका के साथ एक विशेष व्यापार समझौते की उम्मीद कर रहा है, लेकिन वैश्विक व्यापार में तेजी से हो रहे बदलावों के बीच देश को अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करनी होगी। बड़े और स्थिर बाजारों की ओर पूंजी प्रवाह बढ़ने से भारत जैसे उभरते बाजारों को निवेश प्राप्त करने में मुश्किलें आ सकती हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here