शुरू से ही अहंकार न होना कोई बहुत अच्छा लक्षण नहीं है। अहंकार आए और जाए, फिर पूरा मजा आए, फिर आनंद आए। जिनमें अहंकार नहीं है, वे समर्पण कैसे करेंगे। समर्पण करने से पहले संकल्प की क्षमता चाहिए। झुकने से पहले सिर चाहिए और जितना सिर ऊंचा होगा, झुकना उतना ही गहरा होगा। मैं मानता हूं कि अहंकार खतरे की तरह बढ़ गया है, लेकिन हम इस खतरे को सीढ़ी बना सकते हैं। हर खतरे को सीढ़ी बनाने की कला आनी चाहिए। जैसे गरीब आदमी छोड़ेगा तो क्या छोड़ेगा, इसीलिए मैं कहता हूं कि बेफिक्र होकर अमीर बनो, जिस दिन तुम्हारे पास पैसा होगा, छोड़ने का मजा ही कुछ और होगा। बुद्ध को छोड़ने में मजा आया। महावीर को मजा आया, क्योंकि उनके पास छोड़ने को कुछ था।
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यही अहंकार है। शिक्षा, समाज ऐसा होना चाहिए जो तुम्हारे अहंकार को निखारे। निखारने के साथ-साथ छोड़ने की क्षमता भी दे। एक अहंकारशून्यता का भाव है, जिसमें अभी अहंकार पैदा नहीं हुआ है, वही निर्दोषता है। इसमें खतरा है, इसमें कभी भी अहंकार पैदा हो सकता है, इसमें अहंकार जरूर पैदा होगा। इस जन्म में नहीं, अगले जन्म में। लेकिन अहंकार से परे एक और अवस्था है। वहां अहंकार पैदा होगा, उसकी पीड़ा भी देखोगे और सुख भी जानोगे। सुख-दुख को तौलोगे और यह भी जानोगे कि और भी दुख है। सुख सिर्फ आशा है, दुख अनुभव है। सांत्वना स्वर्ग की है, लेकिन जो मिलता है, वह नर्क है। ऐसे अनुभव के बाद तुमने अहंकार छोड़ दिया। प्रेम से, जागरूकता से, ध्यान से, भक्ति से, तब तुम्हारे भीतर एक विनम्रता आएगी, जो अनूठी होगी।
आज का मनुष्य पहले के मनुष्य से बहुत आगे बढ़ गया है। लेकिन उसने कई दिशाओं में प्रगति की है, जिनमें से कुछ खतरनाक हैं। उसकी चेतना भी बढ़ी है, शांति के प्रति उसका प्रेम भी बढ़ा है। उसका भाईचारा भी बढ़ा है, लेकिन साथ-साथ अहंकार भी बढ़ा है। लेकिन इससे डरने की जरूरत नहीं है। मेरा अपना अनुभव है कि हमारे देश के जो मित्र आते हैं, वे हमेशा समर्पण करने के लिए तैयार रहते हैं, लेकिन उनका समर्पण कमजोर होता है, क्योंकि संकल्प की ताकत नहीं होती। उनका समर्पण औपचारिक है, क्योंकि वे किसी के भी पैर छूते हुए झुकते रहते हैं। यह उनकी जन्मजात आदत है। मेरे पास लोग छोटे बच्चों को लाते हैं, वे अहंकार दिखाते हैं और उनकी मां कहती है ‘पैर छूओ’। मैं कहता हूं कि जब बच्चे होश में आ जाएंगे, तो वे चाहेंगे तो छूएंगे, नहीं तो नहीं छूएंगे। इसमें क्या मजबूरी है? लेकिन मां कहती है कि अगर हम उन्हें अभ्यास नहीं करवाएंगे, तो वे कैसे छूएंगे। धीरे-धीरे सिर झुकने का आदी हो जाता है। जब कोई पश्चिम से आता है और छूता है, जिसे झुकने की आदत नहीं है, तो वह झुकना है।
पश्चिमी मनोविज्ञान अहंकार को पोषित करना सिखाता है। अहंकार को स्वतंत्रता दो। झुको मत, उसे तोड़ो। जब कोई पश्चिम से आता है और झुकता है, तो उसका मूल्य है। जो मित्र औपचारिकता के लिए झुकते हैं, जो हर जगह झुकते रहते हैं, जो झुके बिना नहीं रह सकते, जो झुकने के आदी हो गए हैं, मैं उनका कोई मूल्य नहीं देता। मुझे भारतीय संन्यासी को झुकना सिखाने में कठिनाई होती है। पश्चिमी संन्यासी के लिए झुकना आसान है। समय तो लगता है, लेकिन जिस दिन वह झुकता है, उस दिन उसके झुकने में एक गरिमा होती है। आधुनिक मनुष्य की यही स्थिति है। मुझे उनसे बहुत उम्मीदें हैं। बुद्ध को अपने समकालीनों से इतनी उम्मीद नहीं थी। न महावीर को, न ईसा को। उन्होंने भविष्य की बहुत ही काली तस्वीर पेश की। वे कहते थे कि प्रलय की रात आने वाली है। सभी प्रबुद्ध पुरुष कहते रहे हैं कि कलियुग आ रहा है, जिसमें सभी धर्म नष्ट हो जाएंगे। मैं कहता हूं कि सतयुग आ रहा है। भविष्य सतयुग है।