Home लाइफ स्टाइल अहंकार कैसे करता है मनुष्य के विचार और मस्तिष्क पर कब्ज़ा ?...

अहंकार कैसे करता है मनुष्य के विचार और मस्तिष्क पर कब्ज़ा ? 3 मिनट के शानदार वीडियो में जाने इसके वैज्ञानिक पहलू

3
0

अहंकार यानी ‘मैं’ की भावना मनुष्य के व्यवहार और निर्णयों पर गहरा प्रभाव डालती है। यह एक ऐसी मानसिक स्थिति है जो व्यक्ति को स्वयं को सर्वोच्च मानने की ओर प्रेरित करती है। यह स्वाभाविक रूप से हर इंसान में होता है, लेकिन जब यह संतुलन से बाहर हो जाए, तो जीवन में रिश्ते, करियर, मानसिक शांति और सामाजिक व्यवहार तक को प्रभावित कर सकता है। प्रश्न यह उठता है कि आखिर अहंकार इतना हावी क्यों होता है? इसका जवाब केवल आध्यात्मिक नहीं, वैज्ञानिक भी है।

मस्तिष्क की रचना और अहंकार का संबंध

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो अहंकार सीधे तौर पर हमारे मस्तिष्क के प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स और अमिगडाला जैसे हिस्सों से जुड़ा हुआ है। प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स वही भाग है जो निर्णय लेने, स्वयं के बारे में सोचने और सामाजिक व्यवहार को नियंत्रित करने का काम करता है। जब व्यक्ति अपने बारे में अधिक सोचने लगता है – जैसे “मैं क्या हूं?”, “मुझे कौन मानता है?” या “मैं सबसे बेहतर हूं” – तो यह अहंकार की शुरुआत होती है।अमिगडाला, जो कि भावनात्मक प्रतिक्रियाओं का केंद्र है, वह जब अति सक्रिय होता है, तो व्यक्ति हर आलोचना को व्यक्तिगत हमला मानने लगता है। इससे प्रतिक्रिया में चिड़चिड़ापन, क्रोध और खुद को सही साबित करने की जिद देखने को मिलती है। यही स्थिति अहंकार को बढ़ावा देती है।

डोपामिन और मान्यता की भूख

मानव मस्तिष्क में एक न्यूरोट्रांसमीटर होता है – डोपामिन, जिसे ‘हैप्पी हार्मोन’ भी कहा जाता है। जब किसी व्यक्ति को तारीफ मिलती है, उसकी बातों को लोग गंभीरता से लेते हैं या वह सोशल मीडिया पर वायरल होता है, तो मस्तिष्क में डोपामिन रिलीज होता है। यह अहसास व्यक्ति को खुशी देता है और वह उसी तरह की स्थिति दोबारा पाना चाहता है।यहीं से शुरू होती है “अहंकार की भूख”। व्यक्ति दूसरों से श्रेष्ठ दिखने, ज्यादा ध्यान पाने और हमेशा सही साबित होने के चक्र में फंसता चला जाता है। यही भूख जब संतुलन खो देती है, तो अहंकार इंसान पर हावी हो जाता है।

सामाजिक और बचपनिक प्रभाव

अहंकार केवल जैविक कारणों से नहीं बढ़ता, बल्कि हमारे सामाजिक परिवेश और परवरिश का भी इसमें बड़ा योगदान होता है। यदि किसी बच्चे को हमेशा यह सिखाया जाए कि वह दूसरों से बेहतर है, उसे बार-बार दूसरों से तुलना कर श्रेष्ठ ठहराया जाए, तो उसमें “मैं श्रेष्ठ हूं” का भाव बहुत गहराई से बैठ जाता है। यही भाव बड़े होकर अहंकार का रूप ले लेता है।साथ ही, यदि किसी को जीवन में बार-बार अपमान, अस्वीकार या तिरस्कार का सामना करना पड़े, तो उसका मन खुद को बचाने के लिए एक नकली छवि गढ़ता है – “मैं दूसरों से बेहतर हूं, मुझे कोई नहीं समझ पाया।” यह रक्षात्मक अहंकार धीरे-धीरे आत्ममुग्धता (narcissism) में बदल सकता है।

क्या है समाधान?

अहंकार को समझना और उस पर नियंत्रण पाना कोई आसान प्रक्रिया नहीं है, लेकिन संभव जरूर है। वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से सेल्फ-अवेयरनेस यानी आत्म-चेतना विकसित करना पहला कदम है। मेडिटेशन, जर्नलिंग, और स्वयं से ईमानदारी से संवाद करने की प्रक्रिया इसमें मददगार हो सकती है।कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (CBT) जैसे मानसिक अभ्यासों में यह सिखाया जाता है कि हम अपने विचारों और प्रतिक्रियाओं को कैसे पहचानें और उन्हें संतुलित करें। इसके अलावा, दूसरों की बातों को भी महत्व देना, विनम्रता का अभ्यास करना, और यह समझना कि हर व्यक्ति की अपनी यात्रा है – ये बातें अहंकार को नियंत्रण में रखने में कारगर हो सकती हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here