अहंकार—एक ऐसा मानसिक जहर जो ना केवल व्यक्ति के रिश्तों को खोखला कर देता है, बल्कि धीरे-धीरे उसकी पहचान, करियर और आत्मसम्मान को भी निगल जाता है। यह अक्सर चुपचाप और भीतर ही भीतर बढ़ता है, और जब तक व्यक्ति को इसका अहसास होता है, तब तक बहुत कुछ हाथ से निकल चुका होता है। आधुनिक जीवनशैली में जहां सफलता, प्रतिस्पर्धा और आत्म-प्रदर्शन की होड़ है, वहीं अहंकार का जन्म भी बड़ी सहजता से हो जाता है। लेकिन समय रहते इसका त्याग न किया गया, तो यह मनुष्य को अकेलेपन, असफलता और पछतावे की गर्त में धकेल देता है।
अहंकार बनाता है अपनों से दूर
अहंकार का पहला और सबसे बड़ा प्रभाव हमारे पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों पर पड़ता है। जब इंसान अपने विचारों, उपलब्धियों या पद को सबसे ऊपर रखने लगता है, तो वह दूसरों को तुच्छ समझने लगता है। धीरे-धीरे यह सोच उसे अपने प्रियजनों से दूर कर देती है। माता-पिता, भाई-बहन, जीवनसाथी या दोस्त—जो लोग उसके सबसे करीबी होते हैं, उन्हें वह या तो नज़रअंदाज़ करने लगता है या उन पर हावी होने की कोशिश करता है। ऐसे में रिश्तों में गर्मजोशी की जगह तनाव और दूरी घर कर लेती है।अहंकारी व्यक्ति को यह भ्रम रहता है कि वह सब कुछ जानता है और बाकी सभी उससे कमतर हैं। यह सोच उसे सहयोग लेने से भी रोकती है। लोग धीरे-धीरे उसकी संगति छोड़ने लगते हैं क्योंकि कोई भी ऐसे इंसान के साथ समय नहीं बिताना चाहता जो हर बात में खुद को सर्वोपरि समझे। परिणामस्वरूप, वह अकेलापन महसूस करने लगता है, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
करियर को भी पहुंचाता है नुकसान
जहाँ एक ओर आत्मविश्वास सफलता की कुंजी होता है, वहीं अहंकार उसका सबसे बड़ा दुश्मन बन सकता है। कई बार लोग आत्मविश्वास और अहंकार में अंतर नहीं समझ पाते। जब कोई व्यक्ति अपनी सफलता को दूसरों की मेहनत या टीमवर्क का नतीजा मानने की बजाय केवल अपनी प्रतिभा का परिणाम मानने लगता है, तो वहां से अहंकार की शुरुआत होती है।कार्यक्षेत्र में ऐसा व्यक्ति धीरे-धीरे टीमवर्क से कट जाता है। वह सलाह लेना बंद कर देता है, आलोचना को नकारात्मकता समझता है और किसी की बात को तवज्जो नहीं देता। इससे उसकी छवि एक ‘अगंभीर’ या ‘तानाशाही’ नेता की बन जाती है। नतीजा यह होता है कि प्रमोशन रुक जाते हैं, सहयोगी कटने लगते हैं और करियर में ठहराव आ जाता है। कई मामलों में तो नौकरी भी खतरे में पड़ सकती है।
कैसे करें अहंकार का त्याग?
आत्ममंथन करें – हर दिन स्वयं से पूछें कि क्या आपके व्यवहार से किसी को ठेस पहुंची है? क्या आप सभी की बात सुनते हैं या सिर्फ अपनी ही कहते हैं?
ध्यान और योग – मानसिक संतुलन बनाए रखने के लिए ध्यान और योग बेहद जरूरी हैं। ये हमें भीतर से शांत रखते हैं और अहंकार को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
प्रतिक्रिया को स्वीकारें – आलोचना को व्यक्तिगत रूप से न लें। प्रतिक्रिया को सुधार का अवसर मानें।
सफलता को साझा करें – अपनी उपलब्धियों में दूसरों के योगदान को स्वीकार करें और उन्हें श्रेय दें।
कृतज्ञ रहें – जीवन में जो कुछ मिला है, उसके लिए आभार प्रकट करें। यह भाव अहंकार को विनम्रता में बदलने का मार्ग प्रशस्त करता है।