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आखिर कैस और कहां हुआ था भगवान शिव का जन्म, 2 मिनट की इस पावन में जानें आपके सभी सवालों के जवाब

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सनातन धर्म के त्रिदेवों में भगवान शिव को संहारक के रूप में जाना जाता है, लेकिन वे केवल संहारक नहीं, वरन करुणा, तपस्या, और त्याग के प्रतीक भी हैं। शिव को आदि देव कहा गया है — यानी वे सृष्टि के आरंभ से भी पहले मौजूद थे। परंतु क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर भगवान शिव का जन्म कैसे हुआ? क्या उनका कोई जन्मस्थान है? क्या वे भी किसी माता-पिता से उत्पन्न हुए? इन प्रश्नों के उत्तर जानने से पहले हमें उनके पौराणिक स्वरूप और सनातन शास्त्रों के विवरण को समझना होगा।

क्या शिव का जन्म हुआ था?

हिंदू धर्म की अनेक पौराणिक कथाएं और ग्रंथ भगवान शिव को “अजन्मा” बताते हैं — अर्थात जिनका कोई जन्म नहीं हुआ। वे स्वयंभू माने जाते हैं, जो न तो किसी से उत्पन्न हुए हैं और न ही उनका कोई अंत है। शिवलिंग को उनका निराकार स्वरूप माना जाता है, और यह प्रतीक है उनकी ब्रह्मांडीय उपस्थिति का।

शिव पुराण के अनुसार जन्म कथा

शिव पुराण में एक कथा आती है जो उनके प्राकट्य से जुड़ी है। कथा के अनुसार, ब्रह्मा और विष्णु के बीच एक बार यह विवाद हो गया कि उनमें श्रेष्ठ कौन है। उस समय एक दिव्य और तेजस्वी अग्निस्तंभ (अग्नि लिंग) प्रकट हुआ, जिसकी ऊँचाई और गहराई का कोई अंत नहीं था।

ब्रह्मा उस अग्नि स्तंभ के शीर्ष की खोज में ऊपर उड़ गए और विष्णु उसकी जड़ें खोजने के लिए नीचे चले गए। लेकिन दोनों ही असफल रहे। तब उस स्तंभ से शिव का निराकार स्वरूप प्रकट हुआ और उन्होंने कहा कि वे ही आदि और अंत हैं — ब्रह्मा और विष्णु भी उन्हीं से उत्पन्न हुए हैं। इस प्रकार, शिव के प्राकट्य को ब्रह्मांड की उत्पत्ति से जोड़ दिया गया, और इसे ही शिव का “जन्म” कहा गया।

कौन हैं भगवान शिव के माता-पिता?

कुछ लोक कथाओं और ग्रंथों में अलग-अलग मत हैं। लेकिन मुख्यधारा के वैदिक और पुराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव “स्वयंभू” यानी स्वयं उत्पन्न हुए हैं। उनका कोई माता-पिता नहीं है। वे परब्रह्म हैं — साकार और निराकार दोनों ही रूपों में पूजे जाते हैं।

हालांकि, लिंग पुराण और कुछ तमिल शैव ग्रंथों में यह उल्लेख आता है कि शिव का प्राकट्य ब्रह्मांडीय ऊर्जा के रूप में हुआ, जिसमें वे स्वयं अग्नि से प्रकट हुए। वे पुरुष और प्रकृति दोनों के एकमात्र स्रोत माने जाते हैं।

कहां हुआ शिव का प्राकट्य?

जहां तक स्थान की बात है, तो शिवलिंग के रूप में उनका प्राकट्य हिमालय में माना जाता है। कई तीर्थ स्थलों जैसे केदारनाथ, अमरनाथ, काशी (वाराणसी) और माउंट कैलाश को शिव के निवास और प्राकट्य से जोड़कर देखा जाता है।

विशेषकर अमरनाथ गुफा को शिव के प्रकट होने का स्थल माना जाता है, जहां भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य सुनाया था। हर साल लाखों श्रद्धालु वहां शिवलिंग के दर्शन करने जाते हैं, जो प्राकृतिक रूप से बर्फ से बनता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

अगर शिव को “सजीव ऊर्जा” के प्रतीक के रूप में देखा जाए, तो उनका कोई पारंपरिक जन्म नहीं था। वे कॉस्मिक एनर्जी के रूप में हमेशा से ब्रह्मांड में विद्यमान हैं। यही कारण है कि शिव को “अद्वैत” का भी प्रतीक माना जाता है — एक ऐसा परम तत्व जो सर्वत्र व्याप्त है।

उपसंहार: शिव की कथा क्यों है महत्वपूर्ण?

भगवान शिव की उत्पत्ति की कथा हमें यह संदेश देती है कि ईश्वर की कोई सीमा नहीं होती, न उसका कोई जन्म होता है और न ही उसका कोई अंत। वह हर रूप में विद्यमान होता है — निराकार और साकार दोनों में। शिव का स्वरूप न केवल धार्मिक आस्था का विषय है, बल्कि वह ब्रह्मांड की चेतना, संतुलन और ऊर्जा का भी प्रतीक है।

आज भी जब भक्त “ॐ नमः शिवाय” का उच्चारण करते हैं, तो वे केवल एक देवता को नहीं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि की शक्ति को नमन कर रहे होते हैं। इसीलिए, भगवान शिव का प्राकट्य न केवल एक पौराणिक घटना है, बल्कि यह आत्मज्ञान, अध्यात्म और ब्रह्मांडीय ऊर्जा को समझने का एक माध्यम भी है।

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