वर्तमान समय में व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य, सामाजिक व्यवहार और आध्यात्मिक संतुलन तीनों ही लगातार चुनौतियों से गुजर रहे हैं। ऐसे में “अहंकार” एक ऐसा मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक तत्व है, जो न केवल व्यक्ति के भीतर द्वंद्व पैदा करता है, बल्कि समाज और संबंधों को भी प्रभावित करता है। परंतु सवाल यह है कि अहंकार आखिर होता क्या है, यह कैसे जन्म लेता है और इससे कैसे मुक्ति पाई जा सकती है?
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क्या है अहंकार?
अहंकार (Ego) वह मानसिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति स्वयं को श्रेष्ठ, सर्वज्ञ या सबसे महत्वपूर्ण मानने लगता है। यह ‘मैं’ और ‘मेरा’ की भावना को अत्यधिक बल देने वाली मानसिक प्रवृत्ति है। जब व्यक्ति अपने ज्ञान, धन, पद, प्रतिष्ठा, रूप, या उपलब्धियों के आधार पर दूसरों को तुच्छ मानने लगे, तो यही अहंकार बनता है।अहंकार कोई बाहरी तत्व नहीं, बल्कि यह हमारे मन की ही उपज है। यह तब जन्म लेता है जब आत्मबोध की जगह व्यक्ति अपने अस्तित्व को बाहरी मानकों से आंकने लगता है। एक प्रकार से यह आत्म-भ्रम का परिणाम है।
कैसे पहचानें कि अहंकार हावी हो गया है?
आलोचना सहन न होना
हमेशा अपनी बात को सही साबित करना
दूसरों की सफलता को छोटा समझना
लगातार मान-सम्मान की अपेक्षा रखना
‘मैं’ की भावना का अत्यधिक उपयोग
ये सभी संकेत दर्शाते हैं कि व्यक्ति में अहंकार गहराई तक प्रवेश कर चुका है।
अहंकार का प्रभाव
व्यक्तिगत जीवन पर असर:
अहंकारी व्यक्ति अकेला रह जाता है। उसे समाज या परिवार में सम्मान नहीं, बल्कि दूरी मिलती है। रिश्ते कमजोर हो जाते हैं क्योंकि वह केवल अपनी बात सुनाना चाहता है।
पेशेवर जीवन में गिरावट:
टीमवर्क और विनम्रता के अभाव में व्यक्ति अपने करियर में स्थिर हो जाता है। लोग उससे काम करना पसंद नहीं करते और अंततः वह आत्म-घात की ओर बढ़ता है।
आध्यात्मिक पतन:
भारतीय दर्शन में अहंकार को मोक्ष प्राप्ति की सबसे बड़ी बाधा माना गया है। उपनिषदों से लेकर भगवद गीता तक में इसका त्याग आवश्यक बताया गया है।
धार्मिक और दार्शनिक दृष्टिकोण
भगवद गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं – “अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम्। विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते॥”
(जिस व्यक्ति ने अहंकार, दर्प, क्रोध, लोभ और ममता का त्याग कर दिया है, वही ब्रह्म की स्थिति को प्राप्त होता है।)
बुद्ध धर्म में अहंकार को “अविद्या” (अज्ञान) का परिणाम कहा गया है, जो दुख का मूल कारण है। बौद्ध साधना का प्रमुख उद्देश्य इसी ‘स्वत्वबोध’ से मुक्त होना है।
अहंकार से कैसे छुटकारा पाएं?
1. स्व-मूल्यांकन और आत्मनिरीक्षण करें
प्रतिदिन स्वयं से प्रश्न करें – क्या मेरी बातों और कार्यों में दूसरों के प्रति सम्मान है? क्या मैं दूसरों को सुन रहा हूँ या केवल खुद को जताना चाहता हूँ?
2. ध्यान और प्रार्थना का अभ्यास
ध्यान मन को स्थिर करता है और ‘मैं’ की भावना को कम करता है। जब व्यक्ति भीतर उतरता है, तो उसे अहसास होता है कि वह समष्टि का एक अंश है – न कि उससे ऊपर।
3. सेवा भाव अपनाएं
बिना स्वार्थ के दूसरों की सेवा करें। जब आप किसी की सहायता करते हैं और बदले में कुछ अपेक्षा नहीं रखते, तो यह अहंकार पर सबसे बड़ा प्रहार होता है।
4. सकारात्मक आलोचना को स्वीकारें
कोई भी परिपूर्ण नहीं होता। जब कोई आपकी आलोचना करता है, तो उसे आक्रोश के बजाय आत्म-विकास का अवसर मानें।
5. विनम्रता को जीवन का मूल मंत्र बनाएं
दुनिया में सबसे बड़े लोग वे हैं जो नम्र और सरल हैं। अब्दुल कलाम, महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों ने सफलता के शिखर पर रहकर भी कभी अहंकार नहीं पाला।
6. स्वस्थ संगति में रहें
जिन लोगों की संगति में विनम्रता, श्रद्धा और आत्मचिंतन हो – उनके साथ समय बिताएं। अहंकारी लोगों की संगति आपके भीतर भी उसी बीज को बो सकती है।
क्या अहंकार पूरी तरह खत्म हो सकता है?
अहंकार को पूरी तरह नष्ट कर देना आसान नहीं, लेकिन इसे नियंत्रित करना और धीरे-धीरे विलीन करना संभव है। यह एक निरंतर प्रक्रिया है। जैसे-जैसे व्यक्ति भीतर से मजबूत होता है और अपने आत्मबोध की ओर बढ़ता है, वैसे-वैसे अहंकार स्वतः ही कमजोर होने लगता है।
निष्कर्ष:
अहंकार एक अदृश्य शत्रु है जो व्यक्ति के भीतर बैठकर उसकी सोच, संबंधों और आत्मिक उन्नति को खा जाता है। इसे हराना कोई एक दिन का कार्य नहीं, परंतु हर दिन का प्रयास जरूर हो सकता है।
विनम्रता, सेवा, आत्मनिरीक्षण और साधना से हम इस मानसिक विकार को मात दे सकते हैं और एक अधिक शांत, संतुलित और सफल जीवन की ओर बढ़ सकते हैं।