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आखिर क्या है होलाष्टक को अशुभ मानने के पीछे की कहानी? वीडियो में देखें इसके अशुभ प्रभावों से बचने के लिए क्या करना चाहिए?

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होली से पहले आठ दिनों की एक विशेष अवधि होती है जिसे होलाष्टक कहा जाता है, जो फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक चलती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दौरान ग्रहों की स्थिति उग्र और अशुभ मानी जाती है, जिसके कारण शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है। होलाष्टक का पौराणिक कारण

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होलाष्टक भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद और उनके पिता हिरण्यकश्यप से जुड़ा हुआ है। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से होलिका दहन तक हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को अनेक यातनाएं दीं। इन 8 दिनों के दौरान प्रह्लाद को आग में जलाने, पहाड़ से फेंकने, जहर देने, हाथियों से कुचलवाने जैसी यातनाएं दी गईं, लेकिन वह भगवान विष्णु की भक्ति में अडिग रहा। धार्मिक दृष्टि से यह प्रह्लाद की कठिन परीक्षा का समय था, इसलिए इसे अशुभ समय माना जाता है। यह समय संघर्ष, उग्रता और अशुभता से जुड़ा माना जाता है। होलाष्टक के दौरान आठ ग्रहों की स्थिति अशुभ मानी जाती है। इन ग्रहों के उग्र प्रभाव के कारण इस अवधि में शुभ कार्यों को स्थगित रखना उचित है।

होलाष्टक के अशुभ प्रभाव:

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  • मानसिक तनाव और क्रोध में वृद्धि
  • विवाद, दुर्घटना और संघर्ष की संभावना
  • इस समय लोगों का स्वभाव उग्र हो सकता है, इसलिए क्रोध से बचें।
  • किसी से बहस या झगड़ा करने से नुकसान हो सकता है।

होलाष्टक के अशुभ प्रभावों से बचने के उपाय

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  • भगवान विष्णु और नरसिंह अवतार की पूजा करें। विशेषकर “ओम नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप करें।
  • हनुमान चालीसा और रुद्राभिषेक करें, जिससे उग्र ग्रहों का प्रभाव कम होता है।
  • मुख्य द्वार पर हल्दी और सिंदूर से स्वस्तिक बनाएं और घर में प्रतिदिन दीपक जलाएं।
  • दान-पुण्य करें – गरीबों को भोजन, कपड़े आदि दान करने से नकारात्मकता दूर होती है।
  • क्रोध और विवाद से बचें।
  • संयम और ध्यान का अभ्यास करें.

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