बिज़नेस न्यूज़ डेस्क – भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने आज देशवासियों को नए साल का तोहफा दिया है। RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने आज मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक बुलाई, जिसमें फैसला लिया गया कि इस साल रेपो रेट 6.25 फीसदी रहेगा। RBI ने आखिरी बार फरवरी 2023 में रेपो रेट में 25 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी की थी और रेपो रेट 6.5 हो गया था, लेकिन अब इसमें 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती की गई है। इससे पहले मई 2022 से फरवरी 2023 तक रेपो रेट में 250 बेसिस प्वाइंट यानी 2.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी, लेकिन फरवरी 2023 से रेपो रेट में बढ़ोतरी नहीं की जा रही थी। अब साल 2025 में इसमें कटौती कर लोगों को लोन EMI से जुड़ी बड़ी राहत दी गई है।
रेपो रेट का क्या मतलब है?
रेपो रेट का मतलब रिजर्व बैंक द्वारा बैंकों को दिए जाने वाले लोन की दर है, जिसके आधार पर बैंक लोगों को दिए जाने वाले लोन की ब्याज दर तय करते हैं। जब रेपो रेट बढ़ता है तो रिजर्व बैंक बैंकों को महंगे लोन देता है। इससे बैंक लोगों को होम लोन, कार लोन और पर्सनल लोन ऊंची ब्याज दरों पर देते हैं। ब्याज दरों के आधार पर ही EMI दर तय होती है। जब रेपो रेट कम होता है तो बैंकों को सस्ते लोन मिलते हैं, इसलिए वे आम लोगों को भी सस्ते लोन देते हैं, जिससे EMI दर भी सस्ती होती है। इस तरह लोगों की जेब पर बोझ रेपो रेट के हिसाब से बढ़ता और घटता है।
रेपो रेट EMI को कैसे प्रभावित करता है?
केंद्रीय बैंक रेपो रेट के ज़रिए देश में महंगाई को नियंत्रित करता है. अगर महंगाई बढ़ती है तो बैंक रेपो रेट बढ़ाकर पैसे की मांग कम कर देता है, जिससे महंगाई कम हो जाती है. अगर पैसे की मांग बढ़ानी होती है तो बैंक रेपो रेट घटा देता है। जब रेपो रेट बढ़ता है तो इसका असर बैंक लोन पर पड़ता है। बैंक लोन महंगे हो जाते हैं। लोगों पर EMI का बोझ बढ़ जाता है। अगर रेपो रेट नहीं बढ़ता है तो लोन भी महंगे नहीं होंगे. इसका मतलब है कि रेपो रेट सीधे लोगों की जेब पर असर डालता है। इसका सीधा संबंध बैंक लोन के महंगे या सस्ते होने से है।