हिंदू धर्म में व्रत-त्योहारों का विशेष महत्व होता है, और इन्हीं पर्वों में से एक है बड़ अमावस्या या वट सावित्री व्रत, जिसे खास तौर पर सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए करती हैं। इस दिन वट वृक्ष (बरगद का पेड़) की पूजा की जाती है और उसके चारों ओर कच्चा सूत (धागा) लपेटा जाता है, वो भी ठीक 7 बार।
अब सवाल यह है कि आखिर क्यों कच्चे सूत को ही पेड़ पर लपेटा जाता है और वो भी सात बार? इस परंपरा के पीछे न सिर्फ धार्मिक मान्यता है, बल्कि गहरा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण भी है।
क्या है बड़मावस्या और वट वृक्ष की महत्ता?
वट वृक्ष को हिन्दू धर्म में अमरता, दीर्घायु और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) वटवृक्ष में वास करते हैं। ब्रह्मा इसकी जड़ में, विष्णु तने में और शिव शाखाओं में वास करते हैं। यही कारण है कि इसकी पूजा विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है।
क्यों लपेटा जाता है 7 बार कच्चा सूत?
🔸 धार्मिक मान्यता:
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सावित्री-सत्यवान की कथा के अनुसार, सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से मांग लिए थे, और वट वृक्ष के नीचे बैठकर कठोर तप किया था। उसी तप और आस्था के प्रतीक स्वरूप महिलाएं वट वृक्ष की परिक्रमा करती हैं।
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कच्चा सूत (धागा) विश्वास और बंधन का प्रतीक है। इसे वट वृक्ष से लपेटकर महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन को मजबूत बनाने की कामना करती हैं।
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सात परिक्रमाएं सात जन्मों के वैवाहिक बंधन का प्रतीक मानी जाती हैं। ये एक तरह से सात फेरों का प्रतीक भी मानी जाती हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण:
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बरगद का वृक्ष ऑक्सीजन का भंडार होता है, और इसकी जड़ें जमीन में बहुत गहराई तक जाती हैं। इसके आस-पास घूमने से मन और शरीर दोनों को सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
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वट वृक्ष के नीचे बैठकर परिक्रमा करने और धागा लपेटने से मन एकाग्र होता है, जिससे ध्यान और मानसिक शांति मिलती है।
अन्य प्रतीकात्मक अर्थ:
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कच्चा सूत जीवन की नाज़ुकता को दर्शाता है। इसे सावधानी से लपेटते हुए महिलाएं यह संकल्प लेती हैं कि वे अपने रिश्ते को पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ निभाएंगी।
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यह बंधन उस अटूट विश्वास और प्रेम का प्रतीक है जो एक पत्नी अपने पति के लिए रखती है।
क्या होता है लाभ?
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पति की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना पूर्ण होती है।
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वैवाहिक जीवन में सुख, शांति और प्रेम बना रहता है।
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नारी को मानसिक बल और आत्मशक्ति की अनुभूति होती है।
निष्कर्ष:
बड़मावस्या के दिन बरगद पर सात बार कच्चा सूत लपेटने की परंपरा महज एक धार्मिक रिवाज नहीं, बल्कि आस्था, विश्वास, प्रेम और प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक है। यह परंपरा हमें यह सिखाती है कि जीवन में रिश्तों को बांधने के लिए श्रद्धा और संयम जरूरी है – जैसे एक नाजुक धागा भी एक मजबूत पेड़ को लपेट सकता है, वैसे ही विश्वास और प्रेम से रिश्ते भी मजबूत होते हैं।