भगवान शिव के अनेक नाम हैं, उनमें से एक नाम शम्भू भी है। भगवान शिव का नाम शम्भू उनकी उत्पत्ति के रहस्यों को उजागर करता है। यह नाम बताता है कि भगवान शिव इस संसार के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं और किस प्रकार उनकी रचना इस संसार के कल्याण के लिए हुई थी। दरअसल, शंभू शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसमें ‘शं’ का अर्थ ‘कल्याण’ और ‘भू’ का अर्थ ‘उत्पत्ति’ यानी कल्याण का स्रोत या उपकार करने वाला होता है। इसके अलावा शिवाजी को शम्भू भी कहा जाता है क्योंकि उनकी उत्पत्ति स्वयं से हुई थी। वे अपने आप में परिपूर्ण हैं और उनकी उत्पत्ति का कोई अन्य कारण नहीं है।
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भगवान शिव को शम्भू इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनका स्वभाव दयालु है। उनकी करुणा और दया शम्भू नाम में प्रकट होती है। वह अपने भक्तों के दुखों को दूर करते हैं और उन्हें सुख और शांति प्रदान करते हैं। शम्भू नाम भगवान शिव की शांति और स्थिरता का भी प्रतीक है। भगवान शिव न केवल संहारक हैं बल्कि सृजन और निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि हर चीज का आरंभ अंत के बाद ही होता है। अतः उनका नाम शम्भू उनके कल्याणकारी उद्देश्य को दर्शाता है कि उनका विनाश केवल सकारात्मक उद्देश्यों के लिए है।
भगवान शिव ध्यान और समाधि के देवता हैं और उन्हें मोक्ष का दाता माना जाता है। वे साधकों को सांसारिक बंधनों से मुक्त करते हैं और उनकी आत्मा को शांति प्रदान करते हैं। उनका “शंभू” रूप साधकों को ध्यान, तपस्या और भक्ति के माध्यम से परम आनंद और शांति का अनुभव कराता है। वेदों और उपनिषदों में भी भगवान शिव को शंभू नाम से संबोधित किया गया है, जो उनकी दिव्य शक्तियों और गुणों का प्रतीक है। शिव की पूजा में शम्भू नाम का जाप करने से भक्तों को मानसिक शांति और आध्यात्मिक शक्ति मिलती है।
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शंभू से जुड़े पौराणिक संदर्भ: भगवान शिव के नाम शंभू का अर्थ है कल्याणकारी और उनके कुछ कल्याणकारी कार्यों का उल्लेख पौराणिक कथाओं और मान्यताओं में इसी नाम से मिलता है। उन मान्यताओं के अनुसार, सती के प्रति उनके अटूट प्रेम और त्याग के कारण शिवजी को ‘शंभू’ कहा गया क्योंकि उन्होंने सती के कल्याण के लिए तपस्या की और पार्वती को उनके पुनर्जन्म के रूप में अपनाया। शिवजी ने हमेशा अपने भक्तों के कल्याण के लिए अपना शंभू रूप प्रकट किया, चाहे वह रावण को वरदान देना हो या भस्मासुर से ब्रह्मांड की रक्षा करना हो। शिव ने हलाहल विष पीकर देवताओं और दानवों को बचाया। यह उनका ‘शम्भू’ रूप है। भगवान शिव को ‘शंभू’ कहना उनका कल्याणकारी, शांतिदाता और सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में सम्मान करना है। उनका “शंभू” रूप हमें सिखाता है कि सच्ची शांति और खुशी बाहरी भौतिकता में नहीं, बल्कि आंतरिक ज्ञान और ईश्वर के साथ संबंध में निहित है। यही कारण है कि भगवान शिव के इन गुणों की आराधना करने वाले के मुख पर सदैव ‘हर-हर शम्भु’ विद्यमान रहता है।