बिज़नेस न्यूज़ डेस्क – पिछले कुछ समय से विदेशी मुद्रा भंडार के मोर्चे पर कोई अच्छी खबर नहीं आ रही है। 27 दिसंबर को समाप्त सप्ताह में हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 4.11 अरब डॉलर घटकर 640.28 अरब डॉलर रह गया। यह लगातार चौथा सप्ताह है जब विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आई है। मौजूदा गिरावट के साथ ही हमारा भंडार करीब 8 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गया है।
रिकॉर्ड ऊंचाई से काफी नीचे
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों से पता चलता है कि 27 सितंबर को समाप्त सप्ताह में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 705 अरब डॉलर के रिकॉर्ड ऊंचाई पर था, लेकिन उसके बाद से इसमें नरमी का माहौल बना हुआ है। इसी तरह, 27 दिसंबर को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां भी घटकर 551.9 अरब डॉलर रह गईं। वहीं, स्वर्ण भंडार 541 करोड़ डॉलर बढ़कर 66.268 अरब डॉलर हो गया है।
गिरावट की वजह
पिछले कुछ हफ्तों से विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट की वजह आरबीआई द्वारा डॉलर के मुकाबले गिरते रुपये को संभालने की कोशिश है। जब रुपया लगातार कमजोर होता है, तो रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा भंडार में हस्तक्षेप करता है। पिछले साल अक्टूबर में आरबीआई ने हाजिर विदेशी मुद्रा बाजार में 9.28 अरब डॉलर की शुद्ध बिक्री की थी, ताकि विनिमय दर में अत्यधिक उतार-चढ़ाव को रोका जा सके। उस समय डॉलर के मुकाबले रुपया 83.79 के स्तर पर था और अब यह गिरकर 85.77 पर आ गया है। ऐसे में आरबीआई पर रुपये की सेहत सुधारने का काफी दबाव है।
क्या होता है यह रिजर्व?
विदेशी मुद्रा भंडार को देश की आर्थिक सेहत का मीटर कहा जाता है। हर देश के लिए इस रिजर्व को भरा रखना जरूरी होता है। विदेशी मुद्रा भंडार में विदेशी मुद्रा, स्वर्ण भंडार, विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर), अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में जमा और ट्रेजरी बिल आदि शामिल होते हैं और केंद्रीय बैंक इन्हें संभालता है। केंद्रीय बैंक का काम भुगतान संतुलन की निगरानी करना, मुद्रा की विदेशी विनिमय दर पर नजर रखना और वित्तीय बाजार में स्थिरता बनाए रखना है। विदेशी मुद्रा भंडार में दूसरे देशों की मुद्राएं भी शामिल होती हैं, लेकिन ज्यादातर विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा हिस्सा अमेरिकी डॉलर के रूप में होता है।
भरा होने के फायदे
दुनिया के ज़्यादातर देश अपने विदेशी मुद्रा भंडार को डॉलर में रखना पसंद करते हैं, क्योंकि ज़्यादातर व्यापार USD में ही होता है। हालाँकि, इसमें सीमित संख्या में ब्रिटिश पाउंड, यूरो और जापानी येन भी हो सकते हैं। पूरा विदेशी मुद्रा भंडार होने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि भी निखरती है, क्योंकि उस स्थिति में व्यापार भागीदार देश अपने भुगतान को लेकर निश्चिंत हो सकते हैं. इस भंडार का इस्तेमाल देश की देनदारियों को पूरा करने के साथ-साथ कई दूसरे ज़रूरी कामों में किया जाता है।
खाली होने के नुकसान
विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार कमी से कई तरह की परेशानियाँ हो सकती हैं। जैसे इससे देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है, देश के लिए आयात बिल चुकाना मुश्किल हो सकता है। जबकि इस भंडार के भरा होने से सरकार और RBI किसी भी वित्तीय संकट से निपटने में सक्षम होते हैं. आपको बता दें कि RBI विदेशी मुद्रा भंडार के संरक्षक या प्रबंधक के तौर पर काम करता है। इसे सरकार के साथ मिलकर तैयार किए गए नीतिगत ढाँचे के मुताबिक काम करना होता है।