माइक्रोसॉफ्ट ने हाल ही में 14,000 करोड़ रुपये का मानव अपशिष्ट खरीदा है। यह सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन इसका उद्देश्य बेहद अहम है। bhaskarenglish.in में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, यह सौदा अमेरिकी कंपनी वॉल्टेड डीप के साथ हुआ है, जिसके तहत अगले 12 सालों में धरती से लगभग 49 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड हटाई जाएगी। इस मिशन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक बेहद अलग और अनोखी है। वॉल्टेड डीप ऐसे जैव-अपशिष्टों को ज़मीन से हज़ारों फीट नीचे चट्टानों की परतों में इंजेक्ट करता है।
खतरनाक गैसों के उत्सर्जन को रोका जाएगा
इसमें मानव मल (बायोसॉलिड), पशुओं का गोबर, कागज़ का कचरा, खाद्य और पेय पदार्थ और कृषि अपशिष्ट शामिल हैं। इन सभी को पहले तरल में बदला जाता है, फिर कार्बन को स्थायी रूप से दबाने के लिए गहराई में भेजा जाता है। यह पूरी प्रक्रिया न केवल कार्बन के स्तर को कम करती है, बल्कि मीथेन जैसी खतरनाक गैसों के उत्सर्जन को भी रोकती है।
माइक्रोसॉफ्ट का मानना है कि इस तरह की परियोजनाएँ कार्बन उत्सर्जन को कम करने में, खासकर उनके डेटा केंद्रों से, महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगी।
पर्यावरण संरक्षण हेतु एक प्रयास
एक टन कार्बन हटाने की लागत लगभग 30,000 रुपये आंकी गई है। यानी पर्यावरण संरक्षण के लिए यह एक महंगा लेकिन ज़रूरी सौदा है। कंपनी का कहना है कि इससे जलवायु को तुरंत फ़ायदा होगा।
वॉल्टेड डीप 2008 से इस तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है और उसे अमेरिका के कई राज्यों में इसे लागू करने की अनुमति मिल गई है।
गूगल-अमेज़न भी धरती बचाने में जुटे
गूगल, अमेज़न जैसी कंपनियाँ भी पर्यावरण के लिए हरित ऊर्जा और टिकाऊ तकनीकों में निवेश कर रही हैं। ऐसे कदम बताते हैं कि तकनीक का इस्तेमाल अब सिर्फ़ विकास के लिए ही नहीं, बल्कि धरती को बचाने के लिए भी किया जा रहा है।