प्रेम—एक ऐसा शब्द जो जितना सरल लगता है, उतना ही गहरा और जटिल है। जब भी कोई व्यक्ति ‘प्रेम’ की बात करता है, तो आंखों में चमक, दिल में धड़कन और ज़ुबान पर एक मुस्कान आ जाती है। लेकिन आधुनिक समाज में, प्रेम का नाम सुनते ही कई लोग असहज हो जाते हैं। रिश्तों से भागना, कमिटमेंट से डरना और सच्चे जुड़ाव से दूरी बनाना—ये सब आजकल आम हो गया है। आखिर क्यों? क्यों लोग अब प्रेम से ही डरने लगे हैं? इस सवाल का उत्तर हमें ओशो जैसे अध्यात्मिक गुरु के विचारों में गहराई से मिलता है।
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प्रेम और भय: एक द्वंद्व
ओशो कहते हैं, “जहां प्रेम होता है, वहां डर नहीं होता, और जहां डर होता है, वहां प्रेम नहीं हो सकता।” लेकिन समाज ने प्रेम को इतना जटिल, बोझिल और नियमों में बांध दिया है कि अब प्रेम में भी डर समा गया है—खुद को खोने का, ठुकराए जाने का, और सबसे बढ़कर, टूट जाने का।आज के समय में रिश्ते इंस्टाग्राम स्टोरीज और व्हाट्सएप चैट तक सिमट गए हैं। किसी के लिए अपना दिल खोलना एक जोखिम जैसा लगता है। लोग सोचते हैं—क्या सामने वाला मुझे समझ पाएगा? क्या मेरा प्यार लौटकर मिलेगा? या फिर मैं फिर से टूट जाऊंगा?
ओशो की नजर में प्रेम
ओशो के अनुसार, प्रेम कोई लेन-देन नहीं है। यह कोई सौदा नहीं है। प्रेम एक ऐसी ऊर्जा है, जो स्वतः बहती है, बिना किसी शर्त, बिना किसी अपेक्षा के। लेकिन आधुनिक मनुष्य ने प्रेम को स्वामित्व में बदल दिया है। जैसे ही हम कहते हैं “तुम मेरे हो”, हम प्रेम को एक कैद में बदल देते हैं।ओशो कहते हैं, “सच्चा प्रेम आज़ादी देता है, बंधन नहीं। प्रेम फूल की तरह होता है, जिसे जबरन पकड़ा नहीं जा सकता। जैसे ही आप उसे जकड़ते हैं, वह मुरझा जाता है।”
लोग प्रेम से क्यों डरने लगे हैं?
पूर्व अनुभवों का बोझ:
अधिकतर लोगों को जीवन में एक बार टूटकर प्यार हुआ होता है। जब वो रिश्ता खत्म होता है, तो व्यक्ति उस दर्द से इतना आहत हो जाता है कि वह दोबारा प्यार करने से डरने लगता है। ओशो इसे “ईगो की चोट” कहते हैं। प्रेम में जब अपेक्षा टूटती है, तो वह व्यक्ति के अहंकार को ठेस पहुंचाती है।
समाज की शर्तें:
समाज ने प्रेम को “सही और गलत” की श्रेणियों में बांट दिया है। कौन-से रिश्ते स्वीकार्य हैं, कौन-से नहीं—यह तय करना समाज का काम बन गया है। ओशो कहते हैं कि प्रेम व्यक्तिगत अनुभव है, इसे सामाजिक मानदंडों के अनुसार चलाना ही प्रेम को मार डालना है।
स्वतंत्रता खोने का डर:
आज के युवा अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बहुत अहमियत देते हैं। उन्हें डर लगता है कि एक बार किसी रिश्ते में बंधे, तो उनकी आज़ादी छिन जाएगी। ओशो इसका समाधान देते हैं: “प्रेम का मतलब यह नहीं कि दो लोग एक-दूसरे में खो जाएं, बल्कि इसका मतलब है कि दो व्यक्ति एक-दूसरे की आज़ादी का सम्मान करते हुए साथ बढ़ें।”
कमिटमेंट का डर:
ओशो के अनुसार, “प्रेम कोई वादा नहीं है, यह एक भावना है जो इस पल में जीती है।” लेकिन आजकल लोग कमिटमेंट को बोझ मानते हैं। उन्हें लगता है कि एक बार ‘आई लव यू’ कह दिया, तो अब जिम्मेदारी निभानी पड़ेगी। यही डर लोगों को प्रेम से दूर ले जाता है।
स्वयं को खोने का भय:
प्रेम का मतलब है—अपने अहम को किसी और के साथ साझा करना। लेकिन जब तक व्यक्ति अपने भीतर की यात्रा नहीं करता, वह यह समझ ही नहीं पाता कि प्रेम में खोना नहीं, बल्कि खुद को पाना होता है। ओशो कहते हैं, “जब तुम सच्चे प्रेम में होते हो, तो तुम पहली बार खुद को महसूस करते हो।”
प्रेम का रास्ता: ओशो की सलाह
ओशो हमें प्रेम के मार्ग पर चलने के लिए कुछ सुझाव देते हैं:
स्वयं को जानो: जब तक आप खुद से प्रेम नहीं कर सकते, तब तक आप किसी और से भी प्रेम नहीं कर सकते। आत्म-स्वीकृति ही सच्चे प्रेम की पहली सीढ़ी है।
अटैचमेंट को समझो: प्रेम और आसक्ति में अंतर है। प्रेम स्वतंत्रता देता है, जबकि आसक्ति बंधन लाती है। अगर आपका प्रेम किसी को जकड़ता है, तो वह प्रेम नहीं है।
अब में जियो: ओशो कहते हैं कि प्रेम भविष्य या अतीत में नहीं होता, वह केवल ‘अब’ में होता है। इसलिए प्रेम को पल में जीओ, पूरी तरह से, गहराई से।
डर को छोड़ो: प्रेम में कूदने के लिए साहस चाहिए। डर को पहचानो और उसे पार करो। यही सच्ची आध्यात्मिकता है।
निष्कर्ष
ओशो का प्रेम पर दृष्टिकोण आज के युग में और भी ज़्यादा प्रासंगिक हो गया है। जब दुनिया तेज़ी से रिश्तों को खत्म कर रही है, जब हर कोई कनेक्टेड होते हुए भी अकेला महसूस कर रहा है, तब ओशो हमें याद दिलाते हैं कि सच्चा प्रेम भीतर से शुरू होता है। जब आप खुद को प्रेम करने लगते हैं, तब ही आप किसी और को बिना डर, बिना अपेक्षा, पूरी स्वतंत्रता के साथ प्रेम कर सकते हैं।