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आज के मतलबी रिश्तों में सच्चे प्रेम की मिसाल है महेंद्र-मूमल की ऐतिहासिक प्रेम कहानी, जो सिखाती है विश्वास और समर्पण

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आज के इस भागदौड़ भरे, स्वार्थी और तात्कालिक संबंधों से भरे युग में अगर कोई सबसे बड़ी कमी दिखती है, तो वह है– निष्कलंक प्रेम और अटूट विश्वास। तकनीक और सोशल मीडिया के इस युग में जहां रिश्ते सिर्फ स्टेटस अपडेट और इंस्टेंट मैसेजिंग तक सीमित रह गए हैं, वहीं राजस्थान की प्राचीन लोकगाथाओं में दर्ज एक प्रेम कहानी आज भी दिल को छू जाती है— महेंद्र और मूमल की अमर प्रेम कथा।यह प्रेम गाथा न सिर्फ प्यार के प्रति समर्पण को दर्शाती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि जब प्रेम में शक और अधूरी सच्चाई आ जाए, तो उसका अंजाम कितना दुखद हो सकता है। यह कहानी बताती है कि आज के समय में जहां रिश्ते जल्दी जुड़ते हैं और उतनी ही जल्दी टूटते हैं, वहां मूमल-महेंद्र जैसे सच्चे प्रेम की कितनी आवश्यकता है।

कौन थे महेंद्र और मूमल?

मूमल, जैसलमेर के लोधरवा की एक अत्यंत रूपवती, बुद्धिमान और साहसी राजकुमारी थीं। उनके सौंदर्य और चतुराई की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। उनके विवाह के लिए कई राजकुमारों ने प्रयास किए, लेकिन उन्होंने उनकी बुद्धि और साहस की परीक्षा लेकर सभी को पराजित कर दिया। तभी उनके जीवन में प्रवेश होता है महेंद्र का—मारवाड़ के एक वीर, बुद्धिमान और अत्यंत निष्ठावान राजकुमार का।मूमल और महेंद्र एक-दूसरे से प्रेम करने लगते हैं। दोनों की मुलाकातें छिपे तौर पर होती हैं, और उनका प्रेम धीरे-धीरे गहराता चला जाता है। परंतु जैसे हर प्रेम कहानी में कोई न कोई बाधा आती है, वैसे ही इस कहानी में भी एक ऐसा मोड़ आता है जो इस अमर प्रेम को दर्दनाक मोड़ पर छोड़ देता है।

जब शक ने मारा सच्चा प्रेम

एक दिन महेंद्र जब मूमल से मिलने आए, तो किसी कारणवश उन्हें एक अन्य पुरुष के साथ मूमल के कक्ष में भ्रम हुआ। दरअसल, वह मूमल की बहन थी जो महज मज़ाक में मूमल के वस्त्रों में बैठी थी। महेंद्र के मन में शक आ गया। उन्होंने बिना सच्चाई जाने मूमल को गलत समझा और वहां से चले गए। उन्होंने मूमल से रिश्ता तोड़ दिया और वापस अपने राज्य लौट गए।मूमल टूट गईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने सब कुछ त्यागकर महेंद्र को मनाने के लिए लंबे समय तक प्रयत्न किए। अंततः जब महेंद्र को सच्चाई का ज्ञान हुआ, तो वे पछतावे में डूब गए। परंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी। दोनों प्रेमी एक-दूसरे के बिना जी नहीं सके और उनका प्रेम एक दुखांत लेकिन अमर गाथा में तब्दील हो गया।

आज के युग के लिए यह कहानी क्यों प्रासंगिक है?

आज जब रिश्ते ‘रीड रिसीप्ट’, ‘ब्लू टिक’ और ‘अनफॉलो’ से प्रभावित हो जाते हैं, वहां मूमल और महेंद्र की कहानी एक आईना है—जो दिखाती है कि सच्चा प्रेम त्याग मांगता है, समय मांगता है, और सबसे ज़्यादा मांगता है—विश्वास। अगर महेंद्र ने मूमल पर भरोसा किया होता, तो उनका प्रेम आज एक सुखांत कथा के रूप में याद किया जाता।इसी तरह आज के समय में भी रिश्तों में छोटी-छोटी गलतफहमियां बड़ी दूरियां बना देती हैं। प्यार में धैर्य और संवाद की जगह अगर ईगो और संशय आ जाएं, तो रिश्ते चकनाचूर हो जाते हैं। मूमल की तरह आज की लड़कियों में भी समर्पण है, लेकिन ज़रूरत है महेंद्र जैसे प्रेमियों की जो हर परिस्थिति में साथ निभा सकें।

प्रेम में संवाद और विश्वास ही हैं नींव

महेंद्र-मूमल की कहानी हमें यह भी सिखाती है कि प्रेम में यदि संवाद और विश्वास की कमी हो, तो वह प्रेम टूट सकता है, चाहे वह कितना भी सच्चा क्यों न हो। आज के युवा वर्ग को चाहिए कि वह प्रेम को ‘प्रोजेक्ट’ नहीं, एक ‘प्रक्रिया’ की तरह देखे—जिसमें धैर्य, समझदारी और समर्पण की जरूरत होती है।

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