हिंदू धर्म में कालाष्टमी का त्योहार भगवान भैरव को समर्पित है, जिन्हें महादेव का एक रूप माना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, कालाष्टमी का त्योहार हर माह की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। भगवान काल भैरव एक पूजनीय देवता हैं जो अपनी शक्तिशाली प्रकृति के लिए जाने जाते हैं, जो नकारात्मकता और बुराई को दूर करने से जुड़े हैं। ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस दिन देवता की पूजा करते हैं और व्रत रखते हैं, उन्हें भगवान काल भैरव का आशीर्वाद मिलता है और बुरी शक्तियों से सुरक्षा मिलती है। इस बार कालाष्टमी का पर्व 20 मई यानी आज मनाया जा रहा है।
कालाष्टमी शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 20 मई यानी आज सुबह 5:51 बजे शुरू हो गई है और तिथि का समापन 21 मई यानी कल शाम 4:55 बजे होगा.
बन रहा है शुभ योग
कालाष्टमी पर आज धनिष्ठा नक्षत्र और द्विपुष्कर योग एक साथ आ रहे हैं। धनिष्ठा नक्षत्र 19 मई यानि कल शाम 7:29 बजे से शुरू हो गया है। वहीं, आज सुबह 5 बजकर 28 मिनट से द्विपुष्कर योग शुरू हो गया है। वैदिक ज्योतिष में इस योग को बहुत शुभ एवं मंगलकारी माना गया है।
कालाष्टमी पूजा विधि
इस दिन काल भैरव का चमेली के तेल और सिंदूर से श्रृंगार किया जाता है। भगवान शिव के इस स्वरूप की पूजा भी प्रदोष काल यानि सूर्यास्त के बाद ही की जाती है। प्रदोष काल में पूजा करने से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। इसके बाद काल भैरव की प्रतिमा या शिवलिंग पर बेलपत्र पर सफेद चंदन से ‘ऊं’ लिखें और ‘ऊं काल भैरवाय नम:’ मंत्र का जाप करें। मंत्र का जाप करते हुए बेल पत्र चढ़ाएं और इस दौरान आपका मुख उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। अब आप काल भैरव का श्रृंगार करें और उन्हें अक्षत, पुष्प, सुपारी, जनेऊ, लाल चंदन, नारियल, दक्षिणा और फूल माला आदि अर्पित करें। फिर भगवान को इमरती या गुड़ का भोग लगाएं। काल भैरव की पूजा में सरसों के तेल का दीपक जलाया जाता है। पूजा के बाद काले कुत्ते को मीठी रोटी खिलानी चाहिए।
कालाष्टमी कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक दिन भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा के बीच इस बात पर बहस हो गई कि कौन अधिक शक्तिशाली है। बहस इतनी बढ़ गई कि भगवान शिव को समाधान खोजने और निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए महान विद्वानों, ऋषियों और संतों की एक बैठक बुलानी पड़ी। बैठक में समाधान पर पहुंचने के बाद भगवान विष्णु सहमत हो गए, लेकिन भगवान ब्रह्मा ने इसे स्वीकार नहीं किया। इससे भगवान शिव क्रोधित हो गए, क्योंकि यह उनका अपमान था, और उन्होंने विनाशकारी रूप धारण कर लिया। इस प्रकार एक नया अवतार अस्तित्व में आया जो काल भैरव का था। इस अवतार में वे एक हाथ में छड़ी लिए काले कुत्ते पर सवार होकर आये थे। इसीलिए उनका नाम ‘दण्डाधिपति’ भी पड़ा। भगवान शिव के इस भयानक रूप से देवता भयभीत हो गये। इस स्थिति को देखकर भगवान ब्रह्मा ने भगवान शिव के काल भैरव अवतार के समक्ष क्षमा मांगी।