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आज है वट सावित्री का व्रत, क्या है इस उपवास के पीछे की कथा, पढ़िए यहां

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आज देशभर में वट सावित्री व्रत बड़े श्रद्धा भाव के साथ मनाया जा रहा है। यह व्रत हिन्दू धर्म की विवाहित महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य के लिए उपवास रखती हैं और वट (बरगद) वृक्ष की पूजा करती हैं। वट सावित्री व्रत का संबंध सावित्री और सत्यवान की पौराणिक कथा से है, जो पति-पत्नी के अटूट प्रेम, नारी शक्ति और भक्ति की मिसाल बन चुकी है।

क्या है वट सावित्री व्रत?

वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला उपवास करती हैं और वटवृक्ष की पूजा कर उसके चारों ओर धागा लपेटती हैं। यह व्रत मुख्य रूप से उत्तर भारत, खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। दक्षिण भारत में इसे ‘सावित्री ब्रत’ के नाम से जाना जाता है और वहां यह थोड़ा अलग तिथि पर मनाया जाता है।

व्रत के पीछे की पौराणिक कथा

वट सावित्री व्रत की कथा महाभारत में वर्णित है। इसके अनुसार, प्राचीन काल में अश्वपति नामक राजा की पुत्री सावित्री का विवाह सत्यवान नामक वनवासी युवक से हुआ था। सत्यवान एक सदाचारी और धर्मनिष्ठ युवक था, लेकिन उसे अल्पायु का श्राप मिला हुआ था।

सावित्री को यह पहले से ज्ञात था कि उसका पति कम आयु में ही मृत्यु को प्राप्त होगा, लेकिन फिर भी उसने उससे विवाह किया। एक दिन सत्यवान जब जंगल में लकड़ी काटने गया, तो वहीं उसकी मृत्यु हो गई। सावित्री ने अपने तप और दृढ़ संकल्प से यमराज से अपने पति के प्राण वापस मांग लिए। यमराज ने उसकी भक्ति, बुद्धि और साहस से प्रभावित होकर सत्यवान को जीवनदान दे दिया।

तभी से इस कथा के आधार पर विवाहित महिलाएं अपने पति के लिए उपवास रखती हैं और वटवृक्ष की पूजा करती हैं। वटवृक्ष को सावित्री का प्रतीक माना जाता है, जो जीवन और ऊर्जा का स्रोत है।

व्रत करने की विधि

  • महिलाएं प्रातः स्नान करके व्रत का संकल्प लेती हैं।

  • सोलह श्रृंगार कर व्रत करती हैं और वटवृक्ष के नीचे जाकर पूजा करती हैं।

  • वृक्ष को जल अर्पित कर, फल-फूल, कच्चा दूध, सूत का धागा और लाल चूड़ियां अर्पित की जाती हैं।

  • महिलाएं वटवृक्ष के चारों ओर धागा लपेटते हुए परिक्रमा करती हैं।

  • व्रत कथा का श्रवण और पाठ किया जाता है।

  • शाम को पति को पंखा झलना, भोजन कराना और आशीर्वाद लेना भी इस परंपरा का हिस्सा है।

धार्मिक और सामाजिक महत्व

वट सावित्री व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाने का प्रतीक भी है। इस दिन का उपवास नारी शक्ति, समर्पण और श्रद्धा की एक प्रेरणादायी मिसाल है।

निष्कर्ष

आज का दिन उन स्त्रियों के लिए विशेष है, जो अपने पति की लंबी उम्र और सुखमय जीवन की कामना करती हैं। वट सावित्री व्रत केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि प्रेम, त्याग और विश्वास का प्रतीक है। यह व्रत आने वाली पीढ़ियों को भारतीय संस्कृति और पारिवारिक मूल्यों से जोड़ने का भी कार्य करता है।

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