भारतीय दर्शन और धर्म के क्षेत्र में आदि शंकराचार्य का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। वे एक महान संत, दार्शनिक और समाज सुधारक थे, जिन्होंने सनातन धर्म की रक्षा और पुनर्स्थापना के लिए अद्भुत कार्य किए। अपनी छोटी उम्र में ही उन्होंने कई विवादों का समाधान किया और हिंदू धर्म के विभिन्न मतों को एक सूत्र में पिरोने का काम किया। 32 साल की अल्पायु में उन्होंने समाधि लेकर इस दुनिया को अलविदा कहा, लेकिन उनके विचार आज भी जीवित हैं। आइए जानते हैं आदि शंकराचार्य के जीवन के उन महत्वपूर्ण पहलुओं और कदमों के बारे में, जिनकी वजह से उन्हें धर्म के संरक्षक के रूप में याद किया जाता है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
आदि शंकराचार्य का जन्म लगभग 788 ईस्वी में केरल में हुआ था। उन्होंने बहुत कम उम्र में ही गहन अध्ययन शुरू किया और वेदांत दर्शन में निपुणता हासिल की। छोटी उम्र में ही वे ज्ञान के क्षेत्र में अद्वितीय पहचान बनाने लगे। उनकी तेज बुद्धि और गहरी समझ ने उन्हें जल्दी ही अन्य दार्शनिकों के बीच अलग स्थान दिलाया।
धर्म की रक्षा के लिए उठाए कदम
उस समय भारत में विभिन्न धार्मिक मतों के बीच संघर्ष और भ्रम की स्थिति थी। शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार किया, जो ‘अहं ब्रह्मास्मि’ यानी ‘मैं ब्रह्म हूँ’ के सिद्धांत पर आधारित था। उन्होंने न केवल शैव, वैष्णव और शाक्त संप्रदायों के बीच सामंजस्य स्थापित किया, बल्कि अनेक मठों की स्थापना कर धार्मिक और दार्शनिक शिक्षाओं का संरक्षण किया।
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मठों की स्थापना: शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की – शृंगेरी, द्वारका, पुरी और बदरीनाथ – जो आज भी भारतीय धर्म की जड़ों को मजबूती प्रदान करते हैं। इन मठों ने शिक्षा, संस्कार और धार्मिक रीति-रिवाजों को संजोने का काम किया।
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विवाद और शास्त्रार्थ: वे विभिन्न धार्मिक मतों के बीच होने वाले विवादों में भाग लेकर अपने ज्ञान और तर्क से भ्रम को दूर करते रहे। उनकी दार्शनिक बहसें और शास्त्रार्थ इतिहास में अमर हैं।
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सामाजिक सुधार: उन्होंने जाति और संप्रदाय की सीमाओं को पार कर सामाजिक समरसता का संदेश दिया। उनका उद्देश्य धर्म को समाज का एकता सूत्र बनाना था।
32 वर्ष की आयु में समाधि
इतिहास और पुराणों के अनुसार, आदि शंकराचार्य ने केवल 32 वर्ष की आयु में समाधि लेकर देह त्याग दिया। ऐसा कहा जाता है कि वे अपने जीवन के उद्देश्य को पूर्ण कर लेने के बाद स्वयं समाधि में चले गए। उनकी समाधि पुरी में स्थित है, जिसे ‘माथुरेश्वर मठ’ भी कहा जाता है। यह स्थान आज श्रद्धालुओं का प्रमुख तीर्थ स्थल है।
शंकराचार्य की विरासत आज भी जीवित
आज भी आदि शंकराचार्य की शिक्षाएं और उनके स्थापित मठ भारतीय धर्म की रीढ़ की तरह हैं। वे धार्मिक विवादों को शांति से सुलझाने और ज्ञान के प्रचार में अग्रणी रहे। उनके उपदेश और दर्शन आज भी युवाओं और विद्वानों को प्रेरित करते हैं।
निष्कर्ष
आदि शंकराचार्य ने अपने अल्पजीवी जीवन में जो कार्य किए, वे अद्भुत और प्रेरणादायक हैं। उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए न केवल दार्शनिक स्तर पर कार्य किया, बल्कि सामाजिक और धार्मिक संरचनाओं को भी मजबूत किया। 32 वर्ष की उम्र में समाधि लेकर उन्होंने भौतिक संसार से विदाई ली, लेकिन उनका ज्ञान और उनके प्रयास सदियों से लोगों के दिलों में जीवित हैं। वे न केवल एक संत या दार्शनिक थे, बल्कि धर्म के संरक्षक और पुनर्स्थापक थे, जिनकी छवि आज भी भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में चमक रही है।