Home खेल आधा भारत नहीं जानता DRS का क्या है पूरा नाम, अगर जान...

आधा भारत नहीं जानता DRS का क्या है पूरा नाम, अगर जान गए तो गली क्रिकेट में भी आएगा काम

1
0

क्रिकेट के खेल में विवादास्पद अंपायरिंग फैसले वर्षों से खिलाड़ियों, टीमों और प्रशंसकों के बीच चर्चा का विषय रहे हैं। लेकिन अब समय बदल गया है। तकनीक ने मैदान में प्रवेश कर लिया है और अंपायरिंग फैसलों की सटीकता सुनिश्चित करने के लिए ‘डीआरएस’ यानी ‘निर्णय समीक्षा प्रणाली’ का इस्तेमाल किया जा रहा है। डीआरएस का उद्देश्य तकनीकी विश्लेषण के माध्यम से मैदानी अंपायर के किसी भी गलत फैसले को सही करना है, ताकि खेल अधिक निष्पक्ष और पारदर्शी बन सके।

डीआरएस क्या है और इसका उपयोग कैसे किया जाता है?

डीआरएस यानी निर्णय समीक्षा प्रणाली एक तकनीकी प्रणाली है, जिसका उपयोग क्रिकेट में मैदानी अंपायर के फैसले की समीक्षा के लिए किया जाता है। जब किसी बल्लेबाज को आउट (या नॉट आउट) दिया जाता है, और वह उस फैसले से संतुष्ट नहीं होता है, तो वह कप्तान से सलाह लेकर अंपायर के फैसले की समीक्षा की मांग कर सकता है।

गली क्रिकेट के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल थोड़ा मुश्किल है क्योंकि इसके लिए कई तरह के आधुनिक उपकरणों की आवश्यकता होती है। साथ ही, कई विशेषज्ञों को इसका इस्तेमाल करना पड़ता है। जिसके कारण इस तकनीक का इस्तेमाल गली क्रिकेट में नहीं किया जा सकता है। लेकिन अगर आप किसी स्थानीय टूर्नामेंट का आयोजन कर रहे हैं और अपने टूर्नामेंट को पेशेवर क्रिकेट जैसा बनाना चाहते हैं और आपके पास इसके लिए पैसे हैं, तो आप इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।

डीआरएस में शामिल मुख्य तकनीकें हैं:

हॉक-आई: यह एक बॉल ट्रैकिंग तकनीक है जो यह बताती है कि गेंद स्टंप्स से टकरा रही थी या नहीं।

अल्ट्रा एज या स्निकोमीटर: यह कैच और एज के मामले में यह जाँचता है कि बल्ले और गेंद के बीच संपर्क हुआ था या नहीं।

हॉटस्पॉट: यह एक इन्फ्रारेड तकनीक है जो बल्ले और गेंद के बीच संपर्क को थर्मल इमेज के रूप में दिखाती है।

रियल टाइम स्निकोमीटर: यह लाइव वीडियो और ऑडियो का विश्लेषण करके यह दिखाता है कि गेंद और बल्ले के बीच संपर्क हुआ था या नहीं।

जब कोई खिलाड़ी डीआरएस लेता है, तो तीसरा अंपायर उपरोक्त तकनीकों का उपयोग करके पूरी घटना की समीक्षा करता है और फिर यह तय करता है कि मैदानी अंपायर का फैसला सही था या नहीं।

डीआरएस समीक्षा प्रक्रिया:

खिलाड़ी को मैदानी अंपायर के फैसले के 15 सेकंड के भीतर समीक्षा का अनुरोध करना होता है।

कप्तान या कोई भी खिलाड़ी दोनों हाथों से ‘T’ का इशारा करके रिव्यू का अनुरोध कर सकता है।

तीसरा अंपायर तकनीकी माध्यमों से निर्णय की पुष्टि करता है।

यदि मैदानी अंपायर का निर्णय गलत पाया जाता है, तो निर्णय पलट दिया जाता है, अन्यथा वही निर्णय लागू रहता है।

क्रिकेट में DRS क्यों शुरू किया गया?

क्रिकेट में DRS का इस्तेमाल 2008 में भारत और श्रीलंका के बीच टेस्ट सीरीज़ में किया गया था। उस समय इसका प्रयोग प्रायोगिक तौर पर किया गया था, लेकिन धीरे-धीरे ICC ने इसे मंज़ूरी दे दी और अब यह लगभग सभी अंतरराष्ट्रीय मैचों में अनिवार्य हो गया है।

DRS शुरू करने के पीछे कई कारण थे, जिनमें सबसे बड़ा कारण अंपायर के गलत फैसले से उत्पन्न विवाद था। दरअसल, अंपायर भी इंसान हैं और उनसे गलतियाँ हो सकती हैं। DRS ऐसी गलतियों को सुधारने का अवसर प्रदान करता है। इसके अलावा, खेल की निष्पक्षता बढ़ाने के लिए क्रिकेट में DRS का इस्तेमाल किया गया। इससे खिलाड़ियों को फैसले पर सवाल उठाने का अधिकार मिलता है, जिससे खेल निष्पक्ष होता है।

क्रिकेट में डीआरएस लागू करने का एक और बड़ा कारण यह है कि अंपायर के गलत फैसलों के कारण प्रशंसकों की भी खेल में रुचि कम होने लगी थी। कई बार प्रशंसकों को यह भी लगता है कि अंपायर ने जानबूझकर गलत फैसला सुनाया है। लेकिन अब डीआरएस ने दर्शकों का भरोसा बढ़ा दिया है। जब तकनीक से फैसले लिए जाते हैं, तो दर्शकों का भरोसा बढ़ता है और विवाद कम होते हैं।

टेस्ट क्रिकेट में कितने रिव्यू मिलते हैं?

एक टेस्ट मैच में, दोनों टीमों को चार पारियों में अधिकतम 12 रिव्यू मिलते हैं। जिसमें एक टीम को प्रत्येक पारी में तीन रिव्यू मिलते हैं। यदि कोई रिव्यू सफल होता है (अर्थात फैसला पलट दिया जाता है), तो वह रिव्यू बरकरार रहता है और कम नहीं होता। वहीं, यदि कोई रिव्यू असफल होता है, तो उसे रिव्यू ही माना जाता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here