देश के 25 करोड़ कर्मचारी बुधवार को राष्ट्रव्यापी हड़ताल पर जाने को तैयार हैं। इसमें बैंकिंग, बीमा, डाक सेवाओं से लेकर कोयला खदानों तक के कर्मचारी शामिल होंगे। 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने इसे ‘भारत बंद’ नाम दिया है। यूनियनों का कहना है कि सरकार ने कर्मचारियों की मांगों को नजरअंदाज कर कॉरपोरेट हितों को बढ़ावा दिया है। इस हड़ताल की तैयारी महीनों से चल रही है। ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी) की अमरजीत कौर ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, “इस हड़ताल में 25 करोड़ से ज्यादा मजदूर शामिल होंगे। किसान और ग्रामीण मजदूर भी देशभर में विरोध प्रदर्शन करेंगे।”
क्या खुला रहेगा और क्या बंद रहेगा?
यूनियन की हड़ताल के दौरान बैंकिंग सेवाएं, डाक सेवाएं, बीमा सेवाएं प्रभावित होंगी। इसके अलावा सरकारी परिवहन भी प्रभावित होगा। वहीं, शेयर बाजार खुला रहेगा, इसके साथ ही सर्राफा बाजार भी खुला रहेगा। क्या हैं मांगें? यूनियनों ने पिछले साल श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया को 17 मांगों का चार्टर सौंपा था। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने इन मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया। यहां तक कि पिछले एक दशक से वार्षिक श्रम सम्मेलन भी नहीं हुआ है। इसे यूनियनें सरकार की मजदूरों के प्रति उदासीनता का सबूत मान रही हैं। हिंद मजदूर सभा के हरभजन सिंह सिद्धू ने कहा, “इस हड़ताल से बैंकिंग, डाक, कोयला खनन, कारखाने और राज्य परिवहन सेवाएं बुरी तरह प्रभावित होंगी।”
यूनियन ने सरकार पर क्या आरोप लगाए हैं? यूनियनों का कहना है कि सरकार की नई श्रम संहिताएं मजदूरों के अधिकारों को छीनने की साजिश हैं। ये चारों संहिताएं सामूहिक सौदेबाजी को कमजोर करती हैं और यूनियन की गतिविधियों को दबाती हैं। संयुक्त मंच का कहना है कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों और सेवाओं के निजीकरण, आउटसोर्सिंग, ठेकाकरण और अस्थायी श्रम की नीतियों को बढ़ावा दे रही है। ये नीतियां मजदूरों के अधिकारों को कमजोर करती हैं और उनके भविष्य को अनिश्चित बनाती हैं। यूनियनों का कहना है कि चारों नई श्रम संहिताएं ट्रेड यूनियन आंदोलन को कुचलने, हड़ताल करने के अधिकार को छीनने और मजदूरों की आवाज को दबाने के लिए बनाई गई हैं। किसान मोर्चा और कृषि मजदूर यूनियनों के संयुक्त मंच ने हड़ताल का पूरा समर्थन किया है। उन्होंने ग्रामीण भारत में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन की योजना बनाई है।
ऐसे भी आरोप हैं कि ये संहिताएँ काम के घंटे बढ़ाती हैं और नियोक्ताओं को श्रम कानूनों का उल्लंघन करने से बचाती हैं। यूनियनों का दावा है कि सरकार ने देश के कल्याणकारी राज्य के दर्जे को छोड़कर विदेशी और भारतीय कॉरपोरेट्स के हितों को प्राथमिकता दी है।