ईश्वर हैं या नहीं? यह प्रश्न जितना सरल दिखता है, उत्तर उतना ही जटिल और व्यक्तिगत होता है। यह सवाल विज्ञान, दर्शन और आध्यात्मिकता की सीमाओं को लांघ जाता है और अंततः जाकर टिकता है व्यक्ति के दृष्टिकोण पर। कुछ लोग ईश्वर को हर क्षण, हर घटना और हर भाव में महसूस करते हैं, जबकि कुछ के लिए यह केवल एक कल्पना है। आखिर ऐसा क्यों होता है कि कुछ व्यक्ति ईश्वर की अनुभूति गहराई से करते हैं, जबकि कुछ पूरी ज़िंदगी संदेह में ही जीते हैं?
ईश्वर की अनुभूति: दृष्टिकोण का खेल
ईश्वर की उपस्थिति को समझने का आधार तर्क या प्रमाण नहीं, बल्कि अनुभूति और विश्वास होता है। यह एक ऐसा विषय है जो सिर्फ लॉजिक से नहीं, अनुभूति से समझा जा सकता है। जैसे किसी अंधे व्यक्ति को इंद्रधनुष समझाना कठिन है, वैसे ही जिनका मन निरंतर भौतिकता में उलझा है, उनके लिए ईश्वर को समझना लगभग असंभव है।
क्यों कुछ ही लोग ईश्वर को महसूस कर पाते हैं?
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अंतर्मन की शांति आवश्यक है:
ईश्वर को महसूस करने के लिए भीतर की शांति जरूरी है। जिनके मन में विकार, द्वेष, लोभ या अहंकार भरा होता है, वे ईश्वर के अस्तित्व को नहीं पकड़ पाते। -
अनुभव और आस्था की भूमिका:
जिन लोगों ने कठिन समय में किसी अदृश्य शक्ति का सहारा महसूस किया है, वे अक्सर ईश्वर में विश्वास रखते हैं। ये अनुभव ही उनकी आस्था की नींव बनते हैं। -
ध्यान और साधना से जुड़ाव:
जिन लोगों का जीवन ध्यान, साधना या किसी आध्यात्मिक साधक से जुड़ा होता है, वे अक्सर ईश्वर को महसूस करने में सक्षम होते हैं। यह अनुभव तर्क से परे होता है। -
बाहरी शोर बनता है बाधा:
आज का यांत्रिक जीवन, सोशल मीडिया, भागदौड़ और तनाव हमें खुद से ही दूर कर रहा है। जब तक मन शांत नहीं होगा, ईश्वर की आवाज़ सुनना संभव नहीं।
दृष्टिकोण ही सत्य बन जाता है
आपका दृष्टिकोण ही तय करता है कि ईश्वर आपके लिए हैं या नहीं। जो व्यक्ति मानता है कि हर चीज़ का एक कारण है, हर व्यवस्था के पीछे एक संचालक है, वह स्वाभाविक रूप से ईश्वर की उपस्थिति को स्वीकार करता है। वहीं जो व्यक्ति केवल विज्ञान, प्रमाण और तर्क पर टिके रहते हैं, उन्हें ईश्वर तब तक समझ नहीं आता जब तक कोई अनुभव उन्हें झकझोर न दे।
निष्कर्ष:
ईश्वर को देखने के लिए आंखें नहीं, दृष्टि चाहिए। यह दृष्टि बनती है विश्वास, अनुभव और आत्म-जागरण से। ईश्वर को महसूस करना कोई जटिल प्रयोग नहीं, बल्कि एक सरल भाव है। वो भाव जो हर धड़कन, हर प्रकृति, हर संबंध, हर करुणा में छिपा है। ईश्वर बाहर नहीं, आपके भीतर हैं — बस दृष्टिकोण बदलने की देरी है।