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एक बच्चे को ढूंढने की जोखिम कहानी, क्राइम थ्रिलर लेकर आ रहे अभिषेक बनर्जी, रिलीज डेट आउट

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कभी-कभी सोचना पड़ता है कि अगर ओटीटी नहीं होता तो ‘स्टोलन’ जैसी शानदार फिल्में, जिसमें कोई बड़ा सितारा नहीं, कोई मनोरंजन नहीं, कोई गाना नहीं, बस कहानी और दिल दहला देने वाली हकीकत हो, हम तक कैसे पहुंचती? डेढ़ घंटे की ‘स्टोलन’ को हम तक पहुंचने में दो साल लग गए और उसके बाद भी दुनिया भर के फेस्टिवल में वाहवाही बटोरने वाली यह फिल्म प्राइम वीडियो के जरिए ही दिन की रोशनी देख पा रही है।

फिल्म यथार्थवादी और विचलित करने वाली है

‘स्टोलन’ की कहानी में कुछ भी असाधारण नहीं है, लेकिन यह इतनी यथार्थवादी और विचलित करने वाली है कि आपके होश उड़ा देगी। अनुराग कश्यप, किरण राव, निखिल आडवाणी और विक्रमादित्य मोटवानी जैसे दिग्गज फिल्म निर्माता फिल्म तैयार होने के बाद भी इस फिल्म के कार्यकारी निर्माता बन गए हैं, ताकि कम से कम उनके नाम देखकर और सुनकर आप फिल्म को गंभीरता से लें।

क्या है स्टोलन की कहानी?

महज डेढ़ घंटे की ‘चोरी’ की कहानी, जो एक रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म से शुरू होकर एक अस्पताल में खत्म होती है, में आपको इतने झटके लगेंगे कि आप इसके किरदारों को इतना जज करेंगे कि उसकी कोई सीमा नहीं है। यह एक बड़े परिवार से ताल्लुक रखने वाले पढ़े-लिखे और व्यावहारिक व्यक्ति गौतम बंसल की कहानी है, जो स्टेशन पर अपने छोटे भाई रमन बंसल को लेने आया है। भाई की फ्लाइट छूट गई थी, इसलिए उसे आधी रात को ट्रेन से आना पड़ा।

5 महीने की बच्ची चोरी हो गई

गौतम और रमन की मां शादी कर रहे हैं और कॉकटेल पार्टी में दोनों बच्चों को देखना चाहते हैं, लेकिन गौतम के स्टेशन पर रमन तक पहुंचने से पहले ही कोई झुम्पा नाम की एक महिला की 5 महीने की बच्ची को चुरा लेता है। व्यावहारिक दृष्टिकोण वाला गौतम इस झंझट से निकलकर अपने घर पार्टी में पहुंचना चाहता है, लेकिन भावुक रमन यानी छोटा भाई झुम्पा की मदद करना चाहता है।

और फिर एक उलझी हुई जिंदगी

पुलिस जांच, सोशल मीडिया की अफवाहों की उलझी हुई जिंदगी, सच और झूठ के बीच झूलती झुम्पा की कहानी और एक बाल अपहरण रैकेट के खुलासे के बीच ‘स्टोलन’ की पूरी कहानी अंधेरे खंडहरों, छोटे-छोटे गांव के घरों, भागती हुई काली एसयूवी कार और गांव के युवा लड़कों के एक समूह द्वारा उन पर बार-बार किए गए हमलों के बीच रेगिस्तान में उछलती है।

‘स्टोलन’ की कहानी डिस्टर्ब करेगी

92 मिनट की इस फिल्म में आप छोटे भाई रमन के इमोशनल स्टेप्स को इस कदर जज करने वाले हैं कि आपको समझ में आ जाएगा कि हम किसी जरूरतमंद की मदद करने से क्यों बचते हैं। आप झुम्पा को बार-बार झूठा समझने की गलती करेंगे और डेढ़ घंटे में आप जहां भी बैठे होंगे, कम से कम 2 चार बार तो फिसलेंगे ही, क्योंकि ‘स्टोलन’ की कहानी आपको डिस्टर्ब तो करेगी, लेकिन फिर भी आपको वापस आना पड़ेगा क्योंकि आप जानना चाहते हैं कि इन दोनों भाइयों का क्या होगा? झुम्पा क्या सच बोल रही है, क्या उसकी बेटी वापस मिल जाएगी?

कास्टिंग भी कमाल की है

निर्देशक करण तेजपाल ने प्रोड्यूसर गौरव ढींगरा और स्वप्निल साल्कर के साथ मिलकर ‘स्टोलन’ की कहानी लिखी है और यह कहानी इतनी तेज चलती है कि आपको सोचने का मौका ही नहीं देती। ईशान घोष की सिनेमैटोग्राफी ‘स्टोलन’ की जान है और श्रेयश बेलतागंडी की एडिटिंग इसकी जान है। ‘स्टोलन’ की कास्टिंग इसकी सबसे बड़ी जीत है। गौतम बंसल के रूप में अभिषेक बनर्जी द्वारा किए गए कमाल के काम को देखकर कोई भी महसूस कर सकता है कि इस अभिनेता में कितनी क्षमता है।

‘स्टोलन’ को 4 स्टार

झुम्पा बनी मिया माइलेज एक क्रांति है। एक पल में उनका दर्द और भी ही पल में एक रहस्यमय अंदाज़ उनके लिए ऑन-ऑफ का स्विच है। रमन बंसल के रूप में शुभम वर्धन ने जबरदस्त प्रभाव दिखाया है और पुलिस वाले पंडित जी के रूप में हरीश खन्ना ने भी अपनी छोटी सी भूमिका में प्रभाव पैदा किया है। ‘स्टोलन’ जैसी फिल्मों की यथार्थवादिता और ट्रीटमेंट उन्हें इतना प्रभावी बनाती है, जो इस भ्रम को तोड़ती है कि बड़ी कास्ट, भारी ग्राफिक्स और डिजाइनर ड्रेस से अंतरराष्ट्रीय अपील वाली कहानियां नहीं बनती हैं। इस वीकेंड ‘स्टोलन’ जरूर देखें, यह जरूर देखें। ‘स्टोलन’ को 4 स्टार।

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