दुनिया की सबसे ऊँची चोटी, माउंट एवरेस्ट, पर्वतारोहियों के लिए एक खास जगह है। लेकिन यह बेहद खतरनाक भी है। इस खतरनाक पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश में कई पर्वतारोही अपनी जान गँवा देते हैं। इसे दुनिया का सबसे ऊँचा खुला कब्रिस्तान भी कहा जाता है। इसी बीच, एक सवाल उठता है: माउंट एवरेस्ट से शव कैसे निकाले जाते हैं? आइए देखें कि यह कैसे होता है और यह कितना मुश्किल है।
एवरेस्ट से शव निकालना कितना मुश्किल है?
माउंट एवरेस्ट से किसी मृत पर्वतारोही का शव निकालना बेहद मुश्किल होता है। इतनी ऊँचाई पर हेलीकॉप्टर भी सुरक्षित उड़ान नहीं भर सकते। इसलिए इस काम के लिए अनुभवी शेरपा पर्वतारोहियों की ज़रूरत होती है। शव ढूँढ़ना बेहद मुश्किल होता है क्योंकि वह अक्सर बर्फ की मोटी परतों के नीचे दबा होता है। अत्यधिक ठंड के कारण, शव जम जाता है, कभी-कभी 150 किलोग्राम वज़नी बर्फ के टुकड़े में बदल जाता है। उसे निकालने के लिए हथौड़ों और विशेष औज़ारों की ज़रूरत होती है।
शव निकालने की प्रक्रिया
शव मिलने के बाद, उसे एक स्लेज पर रखकर रस्सियों से बाँध दिया जाता है। फिर पर्वतारोही उसे इस खतरनाक ढलान से नीचे ले जाते हैं। पूरी प्रक्रिया में कई दिन लग सकते हैं। निचले कैंप, जैसे कैंप 2, तक पहुँचने के बाद, एक हेलीकॉप्टर शव को बेस कैंप तक ले जाता है। खराब मौसम इस प्रक्रिया को और भी खतरनाक बना देता है।
शव प्राप्ति की लागत
यह प्रक्रिया जितनी कठिन होगी, उतनी ही महंगी भी होगी। पूरे ऑपरेशन में 25 लाख रुपये से लेकर 80 लाख रुपये तक का खर्च आ सकता है। कुछ मामलों में, जैसे कि एक मंगोलियाई पर्वतारोही के शव को निकालने में 90 लाख डॉलर से भी ज़्यादा खर्च होने की बात कही गई है, जिसका भुगतान परिवार ने किया था।
इतने सारे शव पहाड़ पर क्यों पड़े हैं?
बचाव कार्यों में सुधार के बावजूद, कई परिवार इस खर्च को वहन नहीं कर सकते। इसके अलावा, एवरेस्ट पर कुछ ऐसी जगहें भी हैं जहाँ अनुभवी शेरपा भी नहीं पहुँच सकते। यह पूरी प्रक्रिया न केवल पर्वतारोहियों के लिए, बल्कि बचाव दल के लिए भी बेहद खतरनाक होती है। अचानक भूस्खलन, दरारें और खराब मौसम बचाव अभियान को बेहद खतरनाक बना देते हैं। शेरपाओं को शव को सुरक्षित रूप से ले जाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है और अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ती है।