जब भी आध्यात्मिक ज्ञान और जीवन की गहराइयों की बात आती है, ओशो रजनीश का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उनके विचारों में मानव मन की जटिलताओं को सरलता से समझाने की शक्ति है। ओशो के अनुसार, “अहंकार” यानी “ईगो” आत्मज्ञान की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। यह वह भ्रम है जो व्यक्ति को स्वयं की झूठी पहचान में उलझाकर रखता है।
किस प्रकार के लोग होते हैं अहंकारी?
ओशो कहते हैं कि अहंकार किसी खास वर्ग, जाति या संपन्नता तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह उस ‘मैं’ की भावना से उपजता है जो व्यक्ति को अपने वास्तविक स्वरूप से दूर कर देता है। उनके अनुसार अहंकार से पीड़ित व्यक्ति निम्न प्रकार के हो सकते हैं:
ज्ञान का दंभ रखने वाले लोग – जो स्वयं को विद्वान मानते हैं, दूसरों को तुच्छ समझते हैं। वे अपने ज्ञान को हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं, न कि प्रकाश की तरह।
धार्मिक या आध्यात्मिक आडंबर करने वाले लोग – ओशो का मानना था कि बहुत से लोग धर्म और साधना के नाम पर दिखावा करते हैं, ताकि समाज में उनकी श्रेष्ठता बनी रहे। यह भी एक गहरा अहंकार है।
धन और सत्ता से प्रभावित लोग – जिन्हें लगता है कि उनका पैसा या ओहदा उन्हें बाकी लोगों से बेहतर बनाता है। वे दूसरों को निर्देश देने में गौरव महसूस करते हैं, लेकिन आत्मचिंतन से कोसों दूर रहते हैं।
सद्गुणों का प्रदर्शन करने वाले लोग – कई लोग दयालुता, सादगी और परोपकार का प्रदर्शन करते हैं, लेकिन भीतर से वे सिर्फ प्रशंसा की भूख में जीते हैं। ओशो इसे ‘सात्विक अहंकार’ कहते हैं – जो सबसे खतरनाक होता है।
अहंकार के परिणाम क्या होते हैं?
ओशो के अनुसार, अहंकार केवल मानसिक रोग नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक रुकावट है। इसके मुख्य परिणाम निम्नलिखित हो सकते हैं:
एकाकीपन और संबंधों में दूरी – अहंकारी व्यक्ति दूसरों की भावनाओं को समझ नहीं पाता। वह हमेशा ‘मैं’ के घेरे में सिमटा रहता है। परिणामस्वरूप उसके व्यक्तिगत रिश्ते टूटने लगते हैं।
असंतोष और अशांति – अहंकार हमेशा तुलना करता है – कौन मुझसे ऊपर है? कौन नीचे? यह अंतहीन दौड़ व्यक्ति को कभी संतुष्ट नहीं होने देती।
सीखने की प्रक्रिया में बाधा – अहंकार व्यक्ति को यह भ्रम देता है कि उसे सब कुछ आता है। परिणामस्वरूप वह सीखने और आत्मसुधार की संभावना से खुद को वंचित कर देता है।
आध्यात्मिक पतन – ओशो कहते हैं कि आत्मज्ञान की ओर पहला कदम ‘मैं’ को छोड़ना है। जब तक ‘मैं’ बना रहेगा, सत्य का अनुभव संभव नहीं है।
ओशो का समाधान: आत्मबोध और मौन की साधना
ओशो का मानना था कि अहंकार से मुक्ति केवल ध्यान, मौन और जागरूकता से संभव है। वे कहते हैं – “जहां ‘मैं’ नहीं होता, वहीं सत्य प्रकट होता है।” उनके ध्यान शिविरों में मौन व्रत और ध्यान की विधियों को इसीलिए प्रमुखता दी जाती थी ताकि व्यक्ति अपने भीतर की गहराई को पहचान सके।