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कब और कैसे पैदा होता है अहंकार? 3 मिनट के शानदार वीडियो में ओशो से जानिए आत्मा और अहं के बीच का गहरा अंतर

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अहंकार जो एक मानसिक स्थिति है, मानव जीवन का सबसे बड़ा दुश्मन बनकर उभरता है। यह वह शक्ति है जो मनुष्य को उसकी वास्तविक पहचान से दूर कर देती है, उसे दूसरों से अलग, श्रेष्ठ और विशिष्ट महसूस कराती है। ओशो, जिनका असली नाम रजनीश था, हमेशा कहते रहे हैं कि अहंकार एक दीवार की तरह है जो मनुष्य को उसके आंतरिक सत्य और शांतिपूर्ण अस्तित्व से अलग करती है। ओशो के अनुसार अहंकार का जागना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, लेकिन जब तक इसे पहचाना और नियंत्रित नहीं किया जाता, तब तक यह हानिरहित है। जब अहंकार अत्यधिक बढ़ जाता है, तो यह न केवल मनुष्य के मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों में भी दरार पैदा करता है। आइए ओशो के दृष्टिकोण से अहंकार के जन्म, इसके नुकसान और इससे बचने के उपायों के बारे में जानते हैं।

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अहंकार का जन्म और इसके कारण

ओशो के अनुसार, अहंकार मनुष्य के भीतर तब जन्म लेता है जब वह अपनी वास्तविक पहचान से हटकर बाहरी पहचान बनाने की कोशिश करता है। यह पहचान अक्सर समाज, परिवार, शिक्षा या व्यक्तिगत अनुभवों से बनती है। बचपन में मनुष्य के अंदर यह भावना विकसित हो जाती है कि वह दूसरों से अलग है और यही सोच धीरे-धीरे अहंकार की ओर ले जाती है। ओशो ने कहा, “अहंकार ‘मैं’ की कल्पना है, जो वास्तविकता से पूरी तरह परे है।” जब मनुष्य अपने आत्म-मूल्य को बाहरी मानकों, जैसे धन, प्रसिद्धि, शिक्षा या सामाजिक स्थिति से जोड़ देता है, तो वह अपने वास्तविक अस्तित्व से दूर हो जाता है। वह भूल जाता है कि वह एक सहज, स्वतंत्र और गैर-निर्भर प्राणी है। ओशो ने यह भी कहा कि अहंकार का मूल कारण आत्म-सम्मान की कमी और दूसरों से अनुमोदन की आवश्यकता है। जब मनुष्य अपनी वास्तविकता को समझने के बजाय एक झूठी पहचान अपनाता है, तो यहीं से अहंकार उसके जीवन में प्रवेश करता है।

अहंकार के नुकसान

1. आत्मनिर्भरता की कमी अहंकार मनुष्य को आत्मनिर्भर बनने से रोकता है। जब मनुष्य अपने अहंकार को अपने जीवन का आधार मानता है, तो वह हमेशा दूसरों से अपनी तुलना करता रहता है और उनकी स्वीकृति का इंतजार करता रहता है। ओशो के अनुसार, यह मानसिक स्थिति मनुष्य को अपनी वास्तविक शक्ति और क्षमता को पहचानने से रोकती है। आत्मनिर्भरता के बजाय, वह हमेशा दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा में लगा रहता है, जो अंततः उसे आध्यात्मिक शांति से दूर ले जाता है।

2. समाज और रिश्तों में दरार
अहंकार से भरा व्यक्ति कभी दूसरों को अपने बराबर नहीं समझता। अपने से कमतर लोगों से संवाद करने में उसे असहजता महसूस होती है और यह भावना रिश्तों में दरार पैदा करती है। ओशो ने कहा, “जब आप अहंकार से ग्रसित किसी व्यक्ति से मिलते हैं, तो आप हमेशा अपने स्वार्थ में खोए रहते हैं और इस वजह से आप सच्चे रिश्ते नहीं बना पाते।” अहंकार रिश्तों में दीवार की तरह होता है, जो प्यार, समझ और सहानुभूति के रास्ते में खड़ा होता है।

3. मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर असर
बढ़ता अहंकार मानसिक तनाव और चिंता का कारण बनता है। जब कोई व्यक्ति लगातार खुद को दूसरों से बेहतर साबित करने की कोशिश करता है, तो यह उसे मानसिक थकान, घबराहट, अवसाद और आत्मविश्वास की कमी का शिकार बना सकता है। ओशो के अनुसार, अहंकार से होने वाला तनाव शारीरिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। इस मानसिक स्थिति के परिणामस्वरूप हृदय रोग, उच्च रक्तचाप और अनिद्रा जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

4. आध्यात्मिक पतन
अहंकार व्यक्ति को उसकी आंतरिक शांति और आध्यात्मिकता से दूर ले जाता है। ओशो का मानना ​​था कि अहंकार एक ऐसी बाधा है जो ध्यान और आत्म-जागरूकता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा उत्पन्न करती है। जब कोई व्यक्ति अपने अहंकार से बाहर निकलकर ध्यान में लीन हो जाता है, तभी उसे अपने वास्तविक अस्तित्व का एहसास होता है। ओशो ने कहा, “आपका अहंकार वह दीवार है जो आपको आपके आंतरिक स्वभाव से दूर रखती है।”

अहंकार से बचने के उपाय
1. खुद को जानें

ओशो के अनुसार अहंकार से बचने का पहला कदम खुद को जानना है। जब तक हम खुद को नहीं समझेंगे, तब तक हम अहंकार को अपने जीवन का हिस्सा बनाए रखेंगे। आत्म-विश्लेषण और आत्म-जागरूकता के माध्यम से ही हम अपने भीतर के सत्य को पहचान सकते हैं। ओशो कहा करते थे, “जब तक आप अपनी वास्तविक पहचान नहीं जान लेते, तब तक आप अपने अहंकार को नहीं समझ सकते।”

2. ध्यान का अभ्यास करें
ओशो के अनुसार, अहंकार से छुटकारा पाने का सबसे कारगर तरीका ध्यान है। ध्यान व्यक्ति को उसकी आंतरिक शांति से जोड़ता है और अहंकार को खत्म करने में मदद करता है। ध्यान के माध्यम से हम अपने मन को शांत करते हैं और अपने वास्तविक अस्तित्व का एहसास करते हैं। ओशो का मानना ​​था कि जब हम पूरी तरह से ध्यान में होते हैं, तो अहंकार अपनी सारी शक्ति खो देता है और हम अपने सत्य के करीब आ जाते हैं।

3. विनम्रता और शील अपनाएँ
अहंकार से बचने के लिए सबसे ज़रूरी गुण है विनम्रता। ओशो के अनुसार, जब हम अपने अंदर विनम्रता और सम्मान को जगह देते हैं, तो अहंकार अपने आप कम होने लगता है। विनम्रता का मतलब है दूसरों के साथ सम्मान और सहानुभूति से पेश आना, खुद को उनसे श्रेष्ठ नहीं समझना। ओशो कहते थे, “विनम्रता वह रास्ता है जो अहंकार के जाल से बाहर निकलने में मदद करता है।”

4. अपरिपक्वता को पहचानना
अहंकार को समझने का दूसरा तरीका अपरिपक्वता को समझना है। ओशो ने कहा कि जब हम समझ जाते हैं कि हम पूरी तरह विकसित नहीं हैं, तो हम अपने अहंकार को स्वीकार कर लेते हैं और उसे नियंत्रित करना शुरू कर देते हैं। यह स्वीकृति हमें अहंकार को खत्म करने और सच्चे ज्ञान की ओर ले जाने में मदद करती है।

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