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कब है सावन का पहला मंगला गौरी व्रत? जानिए तिथि, शुभ मुहूर्त, योग और महत्व

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श्रावण मास हिन्दू पंचांग का एक विशेष और पावन महीना होता है, जो भगवान शिव की उपासना और आराधना के लिए समर्पित माना जाता है। यह माह न केवल शिवभक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, बल्कि देवी पार्वती की उपासना करने वालों के लिए भी खास होता है। खासकर मंगलवार के दिन किया जाने वाला ‘मंगला गौरी व्रत’ सुहागन स्त्रियों और कुंवारी कन्याओं दोनों के लिए शुभ और फलदायी माना जाता है।

श्रावण मास के हर मंगलवार को रखा जाने वाला यह व्रत माता पार्वती को समर्पित होता है। मान्यता है कि मंगला गौरी व्रत से वैवाहिक जीवन में प्रेम, सुख और समृद्धि बनी रहती है। इस व्रत को करने से विवाहित स्त्रियों के पति की उम्र लंबी होती है और कन्याओं को योग्य जीवनसाथी की प्राप्ति होती है।

मंगला गौरी व्रत का महत्व

पौराणिक मान्यता के अनुसार, माता पार्वती ने स्वयं शिव जी को पति रूप में पाने के लिए यह व्रत किया था, जिसके फलस्वरूप उन्हें शिव जी की कृपा प्राप्त हुई। इसलिए यह व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए अखंड सौभाग्य और कन्याओं के लिए मनचाहा वर प्राप्त करने का प्रतीक माना जाता है। श्रावण मास में शिव भक्त जहां सोमवार को सावन का व्रत रखते हैं, वहीं मंगलवार को मंगला गौरी व्रत रखने की परंपरा है। इस दिन देवी पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और उपवास रखा जाता है।

मंगला गौरी व्रत 2025 में कब-कब होगा?

इस वर्ष 2025 में मंगला गौरी व्रत चार मंगलवार को रखा जाएगा, जिनकी तिथियां निम्नलिखित हैं:

  • पहला मंगला गौरी व्रत: 15 जुलाई 2025

  • दूसरा मंगला गौरी व्रत: 22 जुलाई 2025

  • तीसरा मंगला गौरी व्रत: 29 जुलाई 2025

  • चौथा मंगला गौरी व्रत: 5 अगस्त 2025

इन सभी दिनों में सुबह से लेकर रात्रि तक श्रद्धा और भक्ति के साथ माता पार्वती की पूजा करने का विधान है।

मंगला गौरी व्रत एवं पूजा विधि

इस व्रत को विधिपूर्वक करने से ही पूर्ण फल प्राप्त होता है। जानिए मंगला गौरी व्रत की पूजा विधि:

  1. स्नान एवं संकल्प:
    प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ लाल या पीले वस्त्र धारण करें। फिर पूजा स्थान पर बैठकर माता पार्वती का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें।

  2. पूजा की तैयारी:
    लकड़ी की चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं और उस पर देवी पार्वती की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

  3. दीप प्रज्वलन:
    आटे का दीपक बनाएं, उसमें गाय का घी भरें और उसे जलाकर माता पार्वती के समक्ष रखें।

  4. षोडशोपचार पूजन:
    माता पार्वती का षोडशोपचार विधि से पूजन करें। उन्हें लौंग, सुपारी, इलायची, फल, पान, मिठाई, सुहाग की सामग्रियां, 16 चूड़ियां, 16 मालाएं आदि अर्पित करें।

  5. मंत्र जाप:
    पूजा के दौरान “ॐ गौरी शंकराय नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें। इससे पूजा अधिक प्रभावशाली मानी जाती है।

  6. भोग अर्पण और आरती:
    पूजा के अंत में माता को लड्डू या मिठाई का भोग लगाएं और विधिपूर्वक आरती करें।

  7. कथा श्रवण:
    इस व्रत में मंगला गौरी व्रत कथा सुनना या पढ़ना भी अनिवार्य माना गया है। कथा के माध्यम से व्रत का पौराणिक महत्व और प्रभाव समझा जाता है।

सुहागिन और कन्याओं दोनों के लिए विशेष

यह व्रत विशेष रूप से नवविवाहित स्त्रियों के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है। विवाह के बाद पहले श्रावण मास में महिलाएं इस व्रत को विशेष श्रद्धा से करती हैं। वहीं कुंवारी कन्याएं भी इस व्रत को करके भगवान शिव और पार्वती जैसा आदर्श दांपत्य जीवन प्राप्त करने की कामना करती हैं।

विशेष मान्यता: नीब करोली बाबा को चढ़ाया जाता है कंबल

इस संदर्भ में एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि देशभर में लोग नीब करोली बाबा को श्रद्धा से कंबल चढ़ाते हैं। इसके पीछे यह मान्यता है कि बाबा को सर्दियों में कंबल बेहद प्रिय था और उन्होंने अपने कई भक्तों को कंबल के माध्यम से चमत्कारी अनुभव दिए। यह आस्था भी मंगला गौरी व्रत जैसी भक्ति परंपराओं से जुड़कर भारतीय संस्कृति को और भी पवित्र बनाती है।

निष्कर्ष

मंगला गौरी व्रत केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि एक संस्कार और श्रद्धा का प्रतीक है। यह व्रत स्त्रियों के मन में आस्था, संयम और पति के प्रति समर्पण की भावना को मजबूत करता है। सावन के पवित्र माह में यदि यह व्रत विधिपूर्वक किया जाए तो न केवल वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है, बल्कि माता पार्वती की विशेष कृपा भी प्राप्त होती है।

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