धर्म और भक्ति के क्षेत्र में कलियुग में भी ऐसे अनमोल उदाहरण मिलते हैं जो देवताओं को भी चकित कर देते हैं। ऐसा ही एक रोचक और शिक्षाप्रद प्रसंग है, जिसमें एक चतुर भक्त की बुद्धिमत्ता और भक्ति की गहराई ने ब्रह्मा जी को भी उलझा दिया।
भक्त की अनोखी आदत जिसने देवताओं को हैरान किया
कलियुग में भक्तों की भक्ति का तरीका पारंपरिक तौर-तरीकों से हटकर होता है। ऐसा ही एक भक्त था, जो अपनी भक्ति में इतना निपुण था कि उसकी आदतें देवताओं को भी आश्चर्यचकित कर देती थीं। उसकी सबसे अनोखी आदत यह थी कि वह अपने हर काम में पूरी ईमानदारी और समर्पण के साथ भगवान को शामिल करता था। वह न केवल पूजा करता बल्कि अपने दिनचर्या के हर पहलू में भगवान की याद दिलाता।
ब्रह्मा जी की उलझन
एक बार ब्रह्मा जी ने उस भक्त की परीक्षा लेने का निश्चय किया। उन्होंने भक्त को कुछ ऐसे सवाल दिए जो उसके बुद्धि और भक्ति दोनों की कसौटी थे। भक्त ने हर सवाल का उत्तर न केवल बुद्धिमत्ता से दिया, बल्कि अपनी भक्ति के माध्यम से यह भी दिखाया कि भगवान के प्रति उसका समर्पण अपार है।
भक्त की चतुराई और भक्ति का संगम
भक्त ने ब्रह्मा जी को यह समझाया कि भक्ति सिर्फ पूजा-पाठ तक सीमित नहीं होती, बल्कि जीवन के हर क्षण में ईश्वर के प्रति श्रद्धा बनाए रखना असली भक्ति है। उसकी चतुराई में यह भी था कि वह अपने शब्दों और कर्मों से देवताओं को भी प्रेरित करता।
सीख
इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि कलियुग में भी भक्त की सच्ची भक्ति और चतुराई से देवता चकित रह जाते हैं। भक्ति में न केवल श्रद्धा बल्कि बुद्धिमत्ता भी आवश्यक है, तभी वह भगवान के समीप पहुंचती है।