हमारे मंदिरों और घरों में भजन-कीर्तन के दौरान अक्सर कृष्ण-कृष्ण या कृष्णा-कृष्णा की आवाजें सुनाई देती हैं। श्रद्धालु गहरे भक्ति भाव में इन नामों का उच्चारण करते हैं, लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि ‘कृष्ण’ और ‘कृष्णा’ दो अलग-अलग नाम हैं, जिनका अर्थ और उपयोग भी भिन्न है? धार्मिक और भाषायी दृष्टिकोण से इन दोनों में महत्वपूर्ण अंतर है, जिसे समझना आवश्यक है ताकि हमारी भक्ति और श्रद्धा सही रूप में भगवान तक पहुंचे।
श्रीकृष्ण नाम का महत्त्व
श्रीकृष्ण का नाम न केवल भगवान विष्णु के आठवें अवतार का शुद्ध और वास्तविक नाम है, बल्कि इसे जपने का अपना एक विशेष आध्यात्मिक महत्व भी है। श्रीमद्भागवत, विष्णुपुराण और कई संतों ने बार-बार कहा है कि कलियुग में केवल श्रीकृष्ण का नाम ही मनुष्य को मुक्ति की ओर ले जा सकता है। श्रीकृष्ण नाम का जप करने मात्र से मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार शुद्ध होते हैं। धार्मिक श्लोक भी कहते हैं कि “नास्ति पापं कृतं कञ्चित् नाम स्मरणमात्रतः” अर्थात नाम स्मरण मात्र से अनजाने में किए गए पाप भी धुल जाते हैं।
श्रीकृष्ण नाम का अर्थ होता है ‘काला’ या ‘गहरा नीला’, जो भगवान की आकर्षक और दिव्य छवि को दर्शाता है। यह नाम पुरुषवाचक है और सभी प्रमुख धार्मिक ग्रंथों जैसे महाभारत, भगवद्गीता, और श्रीमद्भागवत में इसी रूप में प्रयोग होता है। जन्माष्टमी, कृष्ण लीला और भगवद्गीता जैसे अवसरों पर भी ‘कृष्ण’ नाम का ही विशेष महत्त्व होता है।
कृष्णा नाम का प्रयोग
वहीं, ‘कृष्णा’ शब्द का उपयोग आमतौर पर स्त्रीलिंग के रूप में किया जाता है। दक्षिण भारत की प्रमुख नदी का नाम कृष्णा है, जो महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से होकर बहती है। इसके अलावा महिलाओं के नाम में भी ‘कृष्णा’ बहुत प्रचलित है, जैसे कृष्णा देवी, कृष्णा कुमारी आदि। महाभारत के संदर्भ में भी द्रौपदी को कभी-कभी कृष्णा कहा गया है, जिससे यह नाम स्त्रीलिंग में स्थापित हुआ।
भाषाई कारणों से भी ‘कृष्णा’ नाम का प्रचलन हुआ है। कई भारतीय भाषाओं जैसे तेलुगु, कन्नड़, मलयालम में पुरुष नाम के साथ ‘अ’ या ‘आ’ जोड़ना सामान्य है, जैसे राम को ‘रामा’, कृष्ण को ‘कृष्णा’ कहना। यह क्षेत्रीय उच्चारण का हिस्सा है और भावनात्मक लगाव को दर्शाता है।
क्यों कहते हैं लोग भगवान को ‘कृष्णा’?
जबकि ‘कृष्णा’ नाम का प्रयोग क्षेत्रीय और भावनात्मक कारणों से होता है, धार्मिक ग्रंथों और शुद्ध संस्कृत व्याकरण के अनुसार भगवान का सही नाम ‘कृष्ण’ ही है। इसलिए भजन-कीर्तन में ‘कृष्ण’ कहने की परंपरा को ही प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ताकि आपकी भक्ति सही रूप में भगवान तक पहुंचे और आध्यात्मिक लाभ मिले।