अहंकार—यह एक ऐसा मानसिक विकार है जो व्यक्ति को अपने वास्तविक स्वरूप से दूर कर देता है। यह न केवल संबंधों को तोड़ता है, बल्कि धीरे-धीरे उसे स्वार्थ की अंधी गली में धकेल देता है, जहां से लौटना कठिन हो जाता है। ओशो जैसे महान चिंतकों से लेकर आधुनिक मनोवैज्ञानिकों तक, सभी इस बात पर सहमत हैं कि अहंकार मनुष्य की चेतना का सबसे बड़ा अवरोधक है। यह लेख उसी बिंदु पर प्रकाश डालता है कि कैसे अहंकार से स्वार्थ जन्म लेता है, और कैसे व्यक्ति सही और गलत की सीमाएं लांघने लगता है।
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क्या है अहंकार और यह कैसे बनता है?
अहंकार (Ego) का अर्थ है – ‘मैं’ की अत्यधिक भावना। यह उस क्षण जन्म लेता है जब व्यक्ति यह मानने लगता है कि वह दूसरों से श्रेष्ठ है। यह श्रेष्ठता कभी ज्ञान के माध्यम से आती है, कभी धन से, कभी रूप से तो कभी पद से। धीरे-धीरे यह भावना व्यक्ति के आचरण में आने लगती है। वह दूसरों को तुच्छ समझने लगता है और यही उसकी सामाजिक गिरावट की शुरुआत होती है।
स्वार्थ कैसे जुड़ता है अहंकार से?
जब व्यक्ति के भीतर ‘मैं’ की भावना अत्यधिक हो जाती है, तो उसकी सोच सिर्फ अपनी जरूरतों और इच्छाओं तक सीमित हो जाती है। यही ‘मैं’ समय के साथ ‘मुझे चाहिए’, ‘मैं ही सही हूं’, ‘बाकियों से मुझे क्या मतलब’ जैसे विचारों में बदल जाती है।
यहां से स्वार्थ का बीज अंकुरित होता है।
अहंकारी व्यक्ति हमशा अपनी भलाई को प्राथमिकता देता है।
वह दूसरों की भावनाओं और अधिकारों की उपेक्षा करता है।
वह दूसरों की मदद भी दिखावे या लाभ के लिए करता है।
समाज, परिवार या संस्था की भलाई से अधिक उसका ध्यान अपने लाभ पर रहता है।
गलत रास्तों की ओर क्यों बढ़ता है अहंकारी व्यक्ति?
जैसे-जैसे व्यक्ति का अहंकार और स्वार्थ बढ़ता है, वह नैतिक मूल्यों को गौण समझने लगता है। उसके लिए ‘सही’ वही होता है जो उसे फायदा दे।
ईर्ष्या और प्रतिस्पर्धा बढ़ती है क्योंकि वह चाहता है कि कोई उसे पीछे न छोड़ सके।
वह झूठ, धोखा, मनोवैज्ञानिक दबाव और छल-कपट को अपनाने लगता है ताकि वह आगे रहे।
कई बार यह व्यक्ति भ्रष्टाचार, अवैध व्यापार, दूसरों को हानि पहुंचाने जैसे अपराधों में भी शामिल हो जाता है।
यही वजह है कि सत्ता में बैठे कई लोग या बड़ी कंपनियों के अधिकारी अकसर ऐसे विवादों में फंसते हैं जहां उनका अहंकार और स्वार्थ उन्हें नैतिकता से भटका देता है।
ओशो की दृष्टि में अहंकार और स्वार्थ का संबंध
ओशो कहते हैं, “अहंकार वह नकाब है जिसे पहनकर तुम अपने असली डर को छुपाते हो। और जब डर छुपता है, तब स्वार्थ जन्म लेता है।”उनके अनुसार, अहंकार का आधार ही भय और असुरक्षा है। व्यक्ति डरता है कि कोई उससे बेहतर न हो जाए, कोई उसका सम्मान न छीन ले। इस डर से वह स्वार्थ की ओर बढ़ता है। फिर उसे दूसरों की हानि से भी फर्क नहीं पड़ता।
अहंकार और स्वार्थ से कैसे बचा जा सकता है?
आत्मनिरीक्षण करें – खुद से पूछें: क्या मैं जो कर रहा हूं, वह सिर्फ अपने लिए है या दूसरों के लिए भी?
विनम्रता अपनाएं – हमेशा यह याद रखें कि हर व्यक्ति किसी न किसी दृष्टिकोण से श्रेष्ठ है।
ध्यान (Meditation) करें – यह अहंकार को तोड़ने का सबसे प्रभावी साधन है। ओशो और बुद्ध ने भी ध्यान को सबसे जरूरी बताया है।
सेवा और परोपकार करें – जब आप दूसरों के लिए कुछ करते हैं, तो ‘मैं’ की भावना कमजोर होती है और ‘हम’ की भावना बल पाती है।
प्राकृतिक जीवन जिएं – अहंकार का पोषण आधुनिक दिखावे और प्रतिस्पर्धा से होता है। सादगी अपनाकर आप इससे बच सकते हैं।