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क्या आपकी शादीशुदा ज़िंदगी ग्रहों की मार झेल रही है? ग्रहों का अशुभ प्रभाव करता है वैवाहिक सुखों को छिन्न-भिन्न

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भारतवर्ष में ज्योतिष शास्त्र सदियों से मानव जीवन के हर पहलू को समझने और मार्गदर्शन देने का माध्यम रहा है। व्यक्ति के जन्म के समय उसकी कुंडली में स्थित ग्रह-नक्षत्रों का संयोग उसके जीवन की घटनाओं का संकेत देता है — विशेषकर वैवाहिक सुख और गृहस्थ जीवन से जुड़ी बातें भी। विवाह संबंधों की स्थिरता, प्रेम, संतान, काम-इच्छा, कलह या तलाक जैसी स्थितियों की भविष्यवाणी जन्मकुंडली के विशिष्ट भावों से की जा सकती है।

कुंडली के महत्वपूर्ण भाव और उनका वैवाहिक जीवन से संबंध

1. लग्न भाव (प्रथम भाव)
लग्न या प्रथम भाव व्यक्ति के तन, स्वभाव, मानसिकता और जीवन दृष्टिकोण का प्रतीक है। यह भाव यह बताता है कि व्यक्ति अपने संबंधों को कितनी गंभीरता से निभाता है। इसका स्वामी ग्रह “लग्नेश” कहलाता है, जो यदि मजबूत हो तो जीवन की सभी दिशाओं में स्थिरता देता है।

2. सप्तम भाव – विवाह और जीवनसाथी का घर
सप्तम भाव विशेष रूप से विवाह, जीवनसाथी, साझेदारी और दांपत्य जीवन का सूचक है। यदि इस भाव पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो विवाह सुखद और संतुलित रहता है। वहीं यदि इस पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो या शनि, राहु, केतु जैसे पाप ग्रह यहां स्थित हों, तो वैवाहिक जीवन में तनाव, असंतोष, या तलाक की संभावनाएं बढ़ सकती हैं।

3. पंचम भाव – प्रेम और संतान भाव
पंचम भाव जीवन में प्रेम, रोमांस, रचनात्मकता और संतान सुख का प्रतिनिधित्व करता है। पति-पत्नी के बीच प्रेम संबंधों की गहराई और आकर्षण इसी भाव से देखा जाता है। अगर यह भाव मजबूत हो तो दांपत्य जीवन में भावनात्मक जुड़ाव बना रहता है।

4. चतुर्थ भाव – गृह सुख
यह भाव दर्शाता है कि व्यक्ति को घरेलू सुख, मानसिक शांति और भावनात्मक संतुलन कितना प्राप्त है। विवाह के बाद दांपत्य जीवन की शांति और संतोष इसी भाव से परखा जाता है।

5. द्वितीय भाव – पारिवारिक और आर्थिक स्थिति
दूसरा भाव परिवार, बोलचाल और आर्थिक आधार को दर्शाता है। यदि यह भाव मजबूत हो तो दांपत्य जीवन में आर्थिक और पारिवारिक संतुलन बना रहता है।

6. द्वादश भाव – शय्या सुख और गुप्त इच्छाएं
द्वादश भाव को कामेच्छा, शारीरिक संबंध और वैवाहिक अंतरंगता का सूचक माना जाता है। अगर यह भाव कमजोर हो या अशुभ ग्रहों से पीड़ित हो तो शारीरिक असंतोष, वियोग, वैधव्य या विवाहहीनता जैसी स्थितियां बन सकती हैं।

ग्रहों का विशेष योगदान

  • शुक्र – पुरुषों की कुंडली में पत्नी का प्रतिनिधित्व करता है। यह प्रेम, सौंदर्य और शारीरिक सुख का कारक है।

  • गुरु (बृहस्पति) – स्त्रियों की कुंडली में पति का कारक ग्रह है। यह धार्मिकता, स्थिरता और विवाह से जुड़ा होता है।

  • मंगल और शुक्र का संबंध – यदि कुंडली में मंगल और शुक्र का संबंध बनता है, तो व्यक्ति में अत्यधिक काम भावना देखी जा सकती है, जो वैवाहिक जीवन को प्रभावित कर सकती है।

  • चंद्रमा – मन का कारक है, जो दांपत्य जीवन में भावनात्मक गहराई और मानसिक संतुलन का कारक होता है।

कुंडली के दोष जो वैवाहिक जीवन को प्रभावित करते हैं

  • सप्तम, द्वादश, पंचम और लग्न भाव यदि वक्री ग्रहों, क्रूर ग्रहों (जैसे शनि, राहु, केतु, मंगल) से पीड़ित हों तो यह वैवाहिक जीवन में असंतुलन लाते हैं।

  • अगर सप्तमेश या द्वादशेश पाप ग्रहों के साथ हो या अशुभ भाव में स्थित हो तो कलह, संतानहीनता, तलाक या वैधव्य जैसी स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं।

उपाय और शांति के मार्ग

अगर कुंडली में उपरोक्त दोष हों तो उनके शमन के लिए वैदिक उपाय अपनाए जा सकते हैं:

  • सप्तम भाव और शुक्र ग्रह के लिए शुक्रवार को व्रत एवं श्रीसूक्त का पाठ।

  • चंद्र दोष के लिए सोमवार को व्रत और महामृत्युंजय जाप।

  • मंगल दोष के लिए हनुमान चालीसा पाठ, मंगलवार को व्रत और मंदिर में दीपक जलाना।

  • योग्य ज्योतिषी से कुंडली का मिलान और रत्न या यंत्र धारण करना भी लाभकारी होता है।

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