कैलाश पर्वत को भगवान शिव का दिव्य निवास कहा जाता है। भगवान शिव अपनी पत्नी देवी पार्वती और बच्चों कार्तिकेय और भगवान गणेश के साथ कैलाश पर्वत की पवित्र चोटी पर निवास करते हैं। हर साल हजारों लोग कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाते हैं। चीन ने एक बार फिर कैलाश यात्रा शुरू करने का फैसला किया है। सनातन धर्म में इस यात्रा का अपना विशेष महत्व है। अगर आप भी इस साल कैलाश मानसरोवर यात्रा की सोच रहे हैं तो आपको यह जान लेना चाहिए कि इस तीर्थयात्रा के लिए एक बार में कितने लोगों को अनुमति दी जाती है। आइये हम आपको बताते हैं।
कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए हर वर्ष सीमित संख्या में तीर्थयात्रियों को अनुमति दी जाती है। भारत सरकार, विदेश मंत्रालय और चीन सरकार ने कुछ निर्धारित नियमों के तहत इस यात्रा को बहाल कर दिया है। इन नियमों के अनुसार, एक तीर्थयात्रा समूह में आमतौर पर 60-100 तीर्थयात्री होते हैं। भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित की जाने वाली इस यात्रा में लगभग 1000-1500 तीर्थयात्री भाग ले सकते हैं। एक बैच में यात्रियों की संख्या की बात करें तो आमतौर पर 60-100 लोगों का बैच जाता है। यह यात्रा मई से सितम्बर के बीच होती है और प्रत्येक यात्रा लगभग 21-25 दिनों तक चलती है।
सरकार के अलावा निजी ट्रैवल एजेंसियां भी यात्राओं का प्रबंध करती हैं, जिसमें अलग-अलग समूह यात्रा कर सकते हैं। यदि आप कैलाश मानसरोवर यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो विदेश मंत्रालय या अन्य पंजीकृत ट्रैवल एजेंसियों जैसे आधिकारिक स्रोतों से जानकारी अवश्य एकत्र करें।
कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए आपके पास पासपोर्ट और वीज़ा होना आवश्यक है। दरअसल, यह इलाका चीन के कब्जे वाले तिब्बत में आता है। ऐसे में यहां यात्रा करने के लिए चीनी सरकार की अनुमति जरूरी है। इसके बिना यात्रा संभव नहीं है। भारतीयों के लिए कैलाश मानसरोवर यात्रा के तीन मार्ग हैं। सबसे छोटा मार्ग उत्तराखंड के लिपुलेख से है। यहां से कैलाश मानसरोवर की दूरी 65 किलोमीटर है। इस यात्रा में 24 दिन लगते हैं। यात्रियों को दिल्ली में तीन दिनों का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। पूरी यात्रा का खर्च 1.80 लाख रुपये आता है।