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क्या आप जानते हैं ब्रह्मा जी के मानस संतानों ने कैसे लिया था जन्म? और क्या था उनको जन्म देने का उद्देश्य क्या था?

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त्रिदेवों में ब्रह्मा ही एकमात्र ऐसे देवता हैं जो विवाहित नहीं हैं, लेकिन जिनका मुख्य दायित्व सृजन करना है। ऐसे में मन में जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि ब्रह्माजी ने इस संसार की रचना कैसे की और इसे आगे कैसे बढ़ाया। हिंदू धर्मग्रंथों, विशेषकर विष्णु पुराण, भागवत पुराण और महाभारत में उल्लेख मिलता है कि ब्रह्मा जी ने ब्रह्मांड की रचना करने के लिए अपने मानस से कुछ बालकों को उत्पन्न किया था। इन्हें मानस पुत्र इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये अपने विचारों और योग शक्ति से प्रकट हुए थे, न कि शारीरिक रूप से जन्मे थे। मानस पुत्रों के जन्म की प्रक्रिया:

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सृष्टि की प्रारंभिक अवस्था में जब ब्रह्माण्ड शून्य था, तब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना करने का संकल्प लिया। उन्होंने ध्यान और योग की शक्ति से अपने मन से कुछ बालकों की रचना की, ताकि वे सृष्टि में ज्ञान, तप और सृजन को बढ़ावा दें। उन्होंने अपने शरीर से कुल 59 पुत्र उत्पन्न किये, जिनमें से प्रथम 16 पुत्र उन्होंने अपनी इच्छा से उत्पन्न किये, वे सभी “मानस पुत्र” कहलाये। इन 16 मानस पुत्रों में से 10 प्रजापति और 7 सप्तर्षि बने। इस प्रकार सबसे पहले सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार प्रकट हुए, जो जन्म से ही बालक रूप में रहे, अविनाशी और सदैव ब्रह्मचारी रहे। इसके बाद अत्रि, भृगु, अंगिरा, मरीचि, पुलस्त्य, पुलह, कृतु, वशिष्ठ, नारद और दक्ष का जन्म हुआ।

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ब्रह्मा जी के विभिन्न अंशों से उनके अलग-अलग मानस पुत्र उत्पन्न हुए और उन्होंने अपना उद्देश्य पूरा किया। नारद जी ब्रह्मा के हृदय से उत्पन्न हुए थे और उन्होंने भक्ति और संगीत का उपदेश दिया। दक्ष प्रजापति का जन्म पैर के अंगूठे से हुआ था और उन्हें ब्रह्मा ने ब्रह्मांड के विस्तार के लिए बनाया था, इसलिए बाद में वे कई लोगों के पिता बने। बायीं ओर से शतरूपा और दाहिनी ओर से मनु उत्पन्न हुए, जिनसे अनंत पुत्र-पुत्रियाँ उत्पन्न हुईं। मनु नाम से ही हम मनुष्य कहलाते हैं। चित्रगुप्त का जन्म ध्यान से हुआ था, जो कायस्थ वंश के पिता थे और मृत्यु का लेखा-जोखा भी रखते थे।

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मन के पुत्रों के जन्म का उद्देश्य क्या था? ब्रह्माजी ने अपने सभी मन पुत्रों को अलग-अलग कार्यों और सृष्टि के विकास के लिए जन्म दिया। उदाहरण के लिए, सनत्कुमारों ने मोक्ष और ज्ञान का मार्ग अपनाया तथा संसार में वैराग्य और ध्यान का प्रचार किया। वशिष्ठ, भृगु, अंगिरा, मरीचि आदि ऋषियों ने धर्म, ज्ञान और यज्ञ की परंपरा को आगे बढ़ाया। नारद मुनि ने भक्ति और संगीत का संदेश फैलाया। दक्ष प्रजापति को जनसंख्या बढ़ाने का कार्य सौंपा गया। उनकी पुत्री सती महादेव की पहली पत्नी थीं।

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