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क्या डिग्री और हाई-सैलरी ही है व्यक्ति की सच्ची सफलता ? 3 मिनट के शानदार में वीडियो में जानिए सफलता की असली परिभाषा

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आज की शिक्षा प्रणाली और सामाजिक सोच में अक्सर सफलता का पैमाना केवल एक अच्छी डिग्री और ऊंची सैलरी वाली नौकरी को माना जाता है। बोर्ड परीक्षाओं में अच्छे अंक, प्रतिष्ठित कॉलेज से ग्रेजुएशन और फिर किसी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी – यही आज अधिकांश युवाओं की सफलता की परिभाषा बन चुकी है। लेकिन क्या वाकई यही सच्ची सफलता है? क्या सिर्फ डिग्री और नौकरी ही जीवन का लक्ष्य है? अगर नहीं, तो फिर सफलता का सही अर्थ क्या है?

सामाजिक परिभाषा बनाम व्यक्तिगत संतुष्टि

समाज में एक पूर्वनिर्धारित ढांचा बन गया है, जिसमें सफल वही माना जाता है जो अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी करता हो या विदेश में काम कर रहा हो। माता-पिता भी अक्सर अपने बच्चों से अपेक्षा करते हैं कि वे डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस या सीए बनें। ऐसे में युवा खुद के सपनों और इच्छाओं को दबा देते हैं, क्योंकि उन्हें बताया गया है कि “सफलता” का यही रास्ता है।लेकिन सच्चाई ये है कि सफलता की कोई एक तयशुदा परिभाषा नहीं हो सकती। किसी के लिए किताब लिखना सफलता हो सकती है, तो किसी के लिए गांव में स्कूल खोलना। कोई किसान अपने खेत में नई तकनीक अपनाकर खुश है, तो कोई कलाकार अपनी चित्रकला से समाज को सन्देश दे रहा है। क्या हम इन्हें असफल कहेंगे क्योंकि इनके पास बड़ी डिग्री या आलीशान नौकरी नहीं?

आत्मसंतोष ही है असली सफलता

सफलता का सही अर्थ है – आत्मसंतोष। जब इंसान अपने काम से संतुष्ट हो, जब उसे हर सुबह अपने काम पर जाने की खुशी हो, जब उसका काम समाज में सकारात्मक बदलाव लाए – वही असली सफलता है। डिग्री एक साधन हो सकती है, लेकिन वह लक्ष्य नहीं। अगर कोई व्यक्ति एक छोटी सी दुकान से अपने परिवार का पालन-पोषण करता है और मानसिक रूप से शांत और संतुष्ट है, तो वह भी उतना ही सफल है जितना कोई कॉर्पोरेट मैनेजर।

असफलता से सीखना भी है सफलता

वास्तविक सफलता की राह में असफलता आना स्वाभाविक है। कई बार युवा असफल होते ही निराश हो जाते हैं क्योंकि उन्हें यह सिखाया ही नहीं गया कि असफलता भी जीवन का हिस्सा है। महान वैज्ञानिक थॉमस एडिसन ने बल्ब बनाने से पहले हजारों बार असफलताएं झेली थीं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। सचिन तेंदुलकर हों या ए.पी.जे. अब्दुल कलाम – सभी ने अपने जीवन में संघर्ष झेला लेकिन अपने आत्म-विश्वास और जुनून से सफलता प्राप्त की।

सफलता का मूल्य समाज में योगदान से तय होता है

सच्ची सफलता वही है जो समाज को भी कुछ लौटाए। केवल खुद तक सीमित रहना सफलता नहीं कहलाती। जो व्यक्ति दूसरों के जीवन को बेहतर बनाए, समाज को दिशा दे, दूसरों को प्रेरित करे – वही वास्तव में सफल है। उदाहरण के तौर पर, एक शिक्षक जो ग्रामीण बच्चों को पढ़ा रहा है, वह किसी कॉर्पोरेट सीईओ से कम सफल नहीं, क्योंकि उसका योगदान आने वाली पीढ़ियों को दिशा देने में है।

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