तंत्रिका विज्ञान की दुनिया में कई दशकों से इस बात पर बहस चल रही है कि वयस्क मनुष्यों के मस्तिष्क में नए न्यूरॉन्स (मस्तिष्क कोशिकाएँ) बनते हैं या नहीं। अब एक नए और विस्तृत शोध ने इस रहस्य से पर्दा उठाया है और स्पष्ट रूप से संकेत दिया है कि मानव मस्तिष्क उम्र बढ़ने के बाद भी नए न्यूरॉन्स बनाता है। स्टॉकहोम स्थित कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट की शोधकर्ता और इस अध्ययन की सह-लेखिका मार्टा पैटरलिनी के अनुसार, “हमारे शोध ने लंबे समय से चली आ रही इस बहस को समाप्त कर दिया है कि क्या वयस्क मानव मस्तिष्क में नए न्यूरॉन्स बन सकते हैं।” उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया मस्तिष्क के हिप्पोकैम्पस नामक हिस्से में होती है, जो सीखने, स्मृति और भावनाओं से जुड़ा होता है।
नई तकनीकों से मिले ठोस प्रमाण
शोधकर्ताओं ने दुनिया भर के बायोबैंक से प्राप्त मस्तिष्क ऊतक के नमूनों का गहन विश्लेषण करने के लिए एकल-नाभिक आरएनए अनुक्रमण और मशीन लर्निंग जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया। आरएनए यह दर्शाता है कि किस कोशिका में कौन से जीन सक्रिय हैं, जबकि मशीन लर्निंग बड़े डेटा सेट को समझने में मदद करता है। चूहों और बंदरों में न्यूरॉन निर्माण की प्रक्रिया पहले से ही ज्ञात थी, लेकिन मानव मस्तिष्क में इसके प्रमाण खोजना मुश्किल था, क्योंकि पोस्टमार्टम के बाद प्राप्त ऊतक जल्दी खराब हो सकते हैं या प्रसंस्करण में क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। लेकिन नई तकनीकों ने इस बाधा को दूर कर दिया है।
बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक में देखे गए नए न्यूरॉन
शोधकर्ताओं ने 24 लोगों के मस्तिष्क के ऊतकों से 4 लाख से ज़्यादा कोशिकाओं का विश्लेषण किया, जिनमें 0 से 78 वर्ष की आयु के लोग शामिल थे। इसके अलावा, अन्य तकनीकों का उपयोग करके 10 और मस्तिष्कों पर शोध किया गया। बच्चों, किशोरों और वयस्कों के मस्तिष्क में भी न्यूरॉन निर्माण के स्पष्ट संकेत मिले। सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि कई वयस्क मस्तिष्कों में ऐसी कोशिकाएँ भी देखी गईं, जो भविष्य में न्यूरॉन में बदल सकती हैं। फ्लोरोसेंट टैग की मदद से, टीम ने उन कोशिकाओं की पहचान की जिनमें नए न्यूरॉन में बदलने की क्षमता है। इसके आधार पर, यह समझने के लिए एक मशीन लर्निंग मॉडल विकसित किया गया कि कौन सी कोशिकाएँ मस्तिष्क कोशिकाओं में बदल रही हैं।
हर वयस्क मस्तिष्क में नई कोशिकाएँ नहीं देखी गईं
हालाँकि, सभी वयस्क मस्तिष्कों में न्यूरॉन निर्माण के संकेत नहीं देखे गए। एक तकनीक से जाँचे गए 14 में से 9 वयस्क मस्तिष्कों में न्यूरोजेनेसिस के प्रमाण मिले, जबकि दूसरी तकनीक से जाँचे गए सभी 10 मस्तिष्कों में नई मस्तिष्क कोशिकाएँ देखी गईं। इस अंतर के कारणों का अभी पता लगाया जाना बाकी है।
उपचार की दिशा में एक नई उम्मीद
हार्वर्ड विश्वविद्यालय से जुड़े डॉ. राजीव रतन और डॉ. टेलर किम्बर्ली जैसे विशेषज्ञों का मानना है कि यह शोध न्यूरोलॉजी की दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। अगर न्यूरोजेनेसिस और बीमारियों (जैसे अल्जाइमर) के बीच के संबंध को समझा जा सके, तो यह नई दवाओं और उपचारों का रास्ता खोल सकता है। मार्टा पैटरलिनी का मानना है कि अगर वयस्क मस्तिष्क खुद की मरम्मत कर सके और नए न्यूरॉन्स बना सके, तो यह सीखने, रिकवरी और मस्तिष्क की अनूठी क्षमता को नए सिरे से परिभाषित कर सकता है।