अक्सर हम सोचते हैं कि हमारा ज्ञान, उपलब्धियाँ और अनुभव ही हमारी पहचान हैं। लेकिन इस सोच के साथ ही हमारे भीतर एक ख़तरनाक भावना चुपचाप पनपने लगती है – अहंकार। ओशो रजनीश, जिनका जीवन और विचारधारा आत्म-साक्षात्कार और आंतरिक स्वतंत्रता का उदाहरण मानी जाती है, ने इस मानसिक भ्रम को पहचानने और इससे मुक्ति पाने के कई तरीके सुझाए। ओशो का मानना था कि अहंकार व्यक्ति को भीतर से खोखला कर देता है और जीवन को बोझिल बना देता है।
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अहंकार क्या है?
ओशो के अनुसार, अहंकार एक नकली “मैं” है – एक ऐसी पहचान जो समाज, संस्कृति, उपलब्धियों या रिश्तों से बनी होती है लेकिन इसका हमारे वास्तविक अस्तित्व से कोई लेना-देना नहीं होता। यह “मैं” खुद को दूसरों से बेहतर, ज़्यादा बुद्धिमान या ज़्यादा सक्षम मानता है। यहीं से तुलना, प्रतिस्पर्धा और अंततः दुख की प्रक्रिया शुरू होती है।
ओशो के अनुसार अहंकार से बचने के 5 उपाय
1. खुद को जानें, अपने भीतर जाना सीखें
ओशो कहते हैं, “आपको दुनिया को जानने की ज़रूरत नहीं है, पहले खुद को जानें।” अपने भीतर गहराई में जाने का मतलब है ध्यान की ओर बढ़ना। जब कोई व्यक्ति अपने भीतर की यात्रा शुरू करता है, तो वह अहंकार के झूठे आवरण को पहचानता है और उससे ऊपर उठने में सक्षम होता है।
2. जीवन को ध्यान से देखें, प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि जागरूकता के साथ जिएं
ओशो के अनुसार, जब हम जागरूकता के साथ जीते हैं, तो हम प्रतिक्रियाओं का शिकार नहीं होते हैं। अहंकार तब विकसित होता है जब कोई हमारा अपमान करता है और हम बदले में प्रतिक्रिया करते हैं। लेकिन अगर हम उस पल को जागरूकता के साथ देखते हैं, तो हम समझते हैं कि यह हमारा “मैं” है जो आहत होता है, आत्मा नहीं।
3. प्रेम अपनाएँ – लेकिन स्वार्थ के बिना
ओशो कहते हैं कि “जहाँ प्रेम है, वहाँ अहंकार नहीं है और जहाँ अहंकार है, वहाँ प्रेम टिकता नहीं है।” दूसरों के लिए निस्वार्थ प्रेम और करुणा विकसित करने से अहंकार पिघल जाता है। प्रेम का अर्थ है खुद को और दूसरों को स्वीकार करना।
4. सच्ची विनम्रता को समझें – दिखावे से नहीं
ओशो दिखावटी विनम्रता के खिलाफ थे। उन्होंने कहा कि अगर आप खुद को विनम्र साबित करने की कोशिश कर रहे हैं, तो वह भी अहंकार का एक रूप है। सच्ची विनम्रता तब आती है जब व्यक्ति अपना “मैं” त्याग देता है – जब उसे खुद को साबित करने की ज़रूरत महसूस नहीं होती।
5. मृत्यु को समझें, जीवन की नश्वरता को पहचानें
ओशो हमेशा कहा करते थे – “मृत्यु अहंकार का इलाज है।” जब हम समझ जाते हैं कि हम स्थायी नहीं हैं, कि एक दिन सब कुछ खत्म हो जाएगा, तब “मैं” की पकड़ कमज़ोर होने लगती है। मृत्यु का एहसास हमें सरल और सच्चा बनाता है।
आज के समय में ओशो की शिक्षाएँ क्यों महत्वपूर्ण हैं?
आज की तेज़ रफ़्तार दुनिया में लोग एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में अपनी आंतरिक शांति खो रहे हैं। सोशल मीडिया, करियर की दौड़, रिश्ते- हर जगह खुद को साबित करने की मानसिकता बढ़ती जा रही है। ओशो की ये शिक्षाएँ आज पहले से कहीं ज़्यादा प्रासंगिक हैं।जहाँ लोग खुद को दिखावे और “अनुयायियों” की संख्या के हिसाब से आंकते हैं, वहीं ओशो का यह विचार कि “आप एक शून्य हैं, और इस शून्य में परम सत्य छिपा है” एक गहन आत्म-साक्षात्कार देता है। उनका संदेश हमें यह समझने के लिए प्रेरित करता है कि आत्म-सम्मान और अहंकार में अंतर है। आत्म-सम्मान वास्तविक है, जबकि अहंकार नकली है।
ओशो के अनुसार ध्यान ही समाधान है
ओशो ने कहा – “केवल ध्यान के माध्यम से ही आपका अहंकार टूटता है, क्योंकि ध्यान में आप नहीं होते। केवल एक साक्षी होता है।” जब हम ध्यान की अवस्था में होते हैं, तो हमारा अहंकार धीरे-धीरे पिघलने लगता है। हम केवल साक्षी बन जाते हैं – घटनाओं, विचारों, भावनाओं और यहाँ तक कि अपने “मैं” के भी।