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चित्रकूट की इस जगह पर महर्षि मार्कंडेय करते थे तपस्या, आज भी भभूत है गर्म, मानसिक रोगों से मिलती है मुक्ति

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यूपी का चित्रकूट जिला धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है. यहां स्थित मार्कंडेय आश्रम भक्तों के लिए एक प्रमुख आस्था का स्थल बन चुका है. यह आश्रम जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. सदियों से यह स्थल श्रद्धालुओं का ध्यान आकर्षित करता आ रहा है. इसके अस्तित्व की जड़ें महर्षि मार्कंडेय की तपोस्थली से जुड़ी हुई हैं. कहते हैं कि महर्षि मार्कंडेय ने यहा कठोर तपस्या की थी. उनकी भव्य उपस्थिति आज भी इस स्थल पर महसूस की जाती है.

श्री राम से भी है नाता

बता दें कि जब भगवान राम माता सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ वनवास के दौरान चित्रकूट आए थे, वे यहां महर्षि मार्कंडेय आश्रम में कई दिनों तक रुके हुए थे. इस दौरान भगवान राम ने इस आश्रम में भगवान शिव की पूजा अर्चना की थी. ऐसे में यहां पर महर्षि मार्कंडेय की तपस्या का विशेष महत्व है, जिससे यह स्थान धीरे-धीरे एक धार्मिक केंद्र के रूप में विकसित हो गया. इसके बाद धीरे-धीरे यह स्थल भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र बन गया.

मार्कंडेय आश्रम में पूजा अर्चना करने वाले मारकुंडी निवासी सचिन वंदन ने लोकल 18 को जानकारी में बताया कि महर्षि मार्कंडेय का जीवन अल्पायु था. उन्होंने बताया कि पुराणों में यह उल्लेखित है कि मार्कंडेय ऋषि को मात्र 11 वर्षों का ही जीवन प्राप्त हुआ थ.

उन्हें जब यह जानकारी अपने माता-पिता से मिली, तो उन्होंने मृत्यु के समय की अवधि के बारे में जानने के बाद जीवन की लंबाई बढ़ाने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप शुरू किया। इस जाप के परिणामस्वरूप वह चिरंजीवी हो गए और उनकी आयु बढ़ गई. इसके बाद, मार्कंडेय ऋषि ने 10 सहस्त्र वर्षों तक इसी आश्रम के जल में समाधि ली. जहां आज भी उनकी तपस्या की गाथाएं गाई जाती हैं.

भभूति रहती है गर्म

इस आश्रम में महर्षि मार्कंडेय का दिव्य प्रभाव महसूस किया जाता है. भक्तों का मानना है कि जो लोग इस आश्रम में तपस्या करते हैं. उन्हें किसी न किसी रूप में महर्षि के दर्शन होते हैं. आश्रम में स्थित गुफा में बने हवन कुंड की भभूति हमेशा गर्म रहती है, जो यह संकेत देती है कि महर्षि की तपस्या का प्रभाव आज भी जीवित है. भक्त इस भभूति को लेकर जाते हैं. इसका विश्वास है कि यह भूत-प्रेत जैसे दैहिक और मानसिक रोगों से मुक्ति दिलाती है.

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