अहंकार, एक ऐसा भाव जो मनुष्य को उसकी वास्तविकता से दूर कर देता है। यह एक ऐसा मनोविकार है जो धीरे-धीरे व्यक्ति के भीतर घर कर जाता है और उसे इस भ्रम में डाल देता है कि वह सब कुछ जानता है, कर सकता है और सबसे श्रेष्ठ है। अक्सर देखा गया है कि जैसे-जैसे मनुष्य सफल होता है, उसके भीतर एक अदृश्य भाव पनपने लगता है—”मैं सबसे ऊपर हूं, मुझसे श्रेष्ठ कोई नहीं।” यही भाव जब सीमा पार कर जाता है, तो उसे हम ‘अहंकार’ कहते हैं।आज के प्रतिस्पर्धी युग में, जहां हर कोई आगे बढ़ने की होड़ में है, वहीं अहंकार भी तेजी से पनप रहा है। ऑफिस, समाज, राजनीति, यहां तक कि रिश्तों में भी ‘मैं’ और ‘मेरा’ की भावना ने इतनी गहराई पकड़ ली है कि व्यक्ति भूल जाता है कि असल में वह कितना लघु है इस विराट ब्रह्मांड के सामने।
अहंकार की उत्पत्ति कैसे होती है?
अहंकार अक्सर शक्ति, संपत्ति, विद्या या प्रसिद्धि से उत्पन्न होता है। जैसे ही व्यक्ति को लगता है कि उसके पास कुछ ऐसा है जो दूसरों से अलग या अधिक है, वह खुद को दूसरों से श्रेष्ठ समझने लगता है। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति अगर अपने व्यवसाय में सफल हो जाता है, तो धीरे-धीरे उसमें यह भावना आ सकती है कि उसके बिना कुछ नहीं चल सकता। वह कर्मचारियों को नीचा दिखाने लगता है, अपने साथी को महत्व नहीं देता, और आलोचना को नकारात्मक रूप में लेता है।
अहंकार और आत्मसम्मान में फर्क
यह जरूरी है कि अहंकार और आत्मसम्मान में फर्क समझा जाए। आत्मसम्मान जहां व्यक्ति को अपने मूल्यों, मर्यादाओं और सीमाओं को समझने की शक्ति देता है, वहीं अहंकार दूसरों को नीचा दिखाने और खुद को ऊंचा साबित करने का प्रयास करता है। आत्मसम्मान विनम्रता के साथ आता है जबकि अहंकार में घमंड और कठोरता झलकती है।
अहंकार का सामाजिक प्रभाव
जब एक समाज में अधिकतर लोग ‘मैं ही सर्वोत्तम हूं’ की भावना लेकर चलने लगते हैं, तो वहां सहयोग की भावना मर जाती है। ऐसे समाज में मतभेद, संघर्ष और असंतोष बढ़ने लगता है। पारिवारिक जीवन भी इससे अछूता नहीं रहता। जब पति-पत्नी के बीच एक-दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ लग जाती है, तब रिश्तों में दरार आना स्वाभाविक हो जाता है।
समाधान क्या है?
आत्मचिंतन करें: दिन में कुछ समय खुद के साथ बिताएं और सोचें कि आपके व्यवहार से कहीं किसी को ठेस तो नहीं पहुंची।
विनम्र बनें: विनम्रता कभी भी कमजोरी नहीं होती, बल्कि यह बड़प्पन की पहचान है।
आभार व्यक्त करें: जो कुछ आपके पास है, वह कई बार किसी और की सहायता, दुआ या भाग्य का परिणाम हो सकता है।
आलोचना को स्वीकारें: आलोचना को एक मौके की तरह देखें, जिससे आप खुद को बेहतर बना सकते हैं।
ध्यान और योग: ये आत्मज्ञान की ओर ले जाते हैं और ‘मैं’ की भावना को कम करते हैं।
अहंकार में डूबा व्यक्ति धीरे-धीरे अपने आस-पास की सच्चाई को नजरअंदाज करने लगता है और खुद को सबसे ऊपर मान बैठता है। यह स्थिति न केवल उसके आत्मिक विकास में बाधा बनती है, बल्कि उसके सामाजिक और पारिवारिक जीवन को भी प्रभावित करती है। अतः आवश्यकता है कि हम स्वयं को समय-समय पर परखें, अपनी सीमाएं पहचानें और विनम्रता के साथ आगे बढ़ें। क्योंकि अंततः जो झुकता है, वही फलता है।