भारतीय माता-पिता का कई बार सख्त होना आम बात है। माता-पिता इसलिए सख्त होते हैं ताकि उनका बच्चा सही राह पर चले, अच्छी पढ़ाई करे, समय पर घर लौटे और जीवन में आगे बढ़े। आम तौर पर भारतीय पेरेंटिंग प्यार और थोड़ी सख्ती के साथ की जाती है। भले ही आज के बच्चों को उनके माता-पिता शायद ही मारते हों, लेकिन 90 के दशक में पैदा हुए बच्चों को बहुत पीटा जाता है!
वहीं, कई बार माता-पिता की सख्ती जरूरत से ज्यादा हो जाती है। वे हर छोटी-छोटी बात पर टोकना शुरू कर देते हैं, बच्चे की भावनाओं को नजरअंदाज करते हैं या हर फैसले पर हावी होने की कोशिश करते हैं। जब यह सख्ती धीरे-धीरे बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने लगती है, तो मनोविज्ञान की भाषा में इसे टॉक्सिक पेरेंटिंग कहा जाता है।
कई बार माता-पिता अनजाने में ही टॉक्सिक हो जाते हैं और उन्हें इस बात का पता भी नहीं होता। इसलिए, हमने लाइफ एंड माइंडसेट कोच श्वेता कोठारी से बात की और उन्होंने 5 संकेत साझा किए जिनसे आप पहचान सकते हैं कि आपके सख्त माता-पिता अब टॉक्सिक नहीं रहे।
1. क्या सवाल पूछे जाते हैं?
श्वेता कोठारी कहती हैं कि सख्त माता-पिता नियम बनाते हैं, लेकिन वे इसके पीछे का कारण जानते हैं और बच्चे को समझाते भी हैं। दूसरी ओर, विषैले माता-पिता चाहते हैं कि बच्चा बिना कुछ पूछे उनकी बात माने। अगर आप ‘क्यों?’ पूछते हैं या अपनी बात कहने की कोशिश करते हैं, तो आपके माता-पिता आपको डांटते हैं या गुस्सा करते हैं।
अगर बच्चा धीरे-धीरे यह महसूस करने लगे कि उसे कुछ पूछने, सोचने या समझने का कोई अधिकार नहीं है। अगर बच्चे के लिए हर बात पर ‘हां’ कहना ज़रूरी हो जाए और सवाल पूछना असभ्य माना जाए, तो समझ लें कि सख्त माता-पिता विषैले हो रहे हैं।
2. क्या आपको तब प्यार मिलता है जब आप कुछ अच्छा करते हैं?
अगर माता-पिता बच्चे को तभी गले लगाते हैं या प्यार दिखाते हैं जब वह कुछ अच्छा करता है जैसे परीक्षा में टॉप करना या कोई अच्छा काम करना। लेकिन जब वह कोई गलती करता है, तो माता-पिता उससे बात करना बंद कर देते हैं या दूर हो जाते हैं।
अगर बच्चा धीरे-धीरे यह महसूस करने लगे कि उसे प्यार तभी मिलेगा जब वह कुछ अच्छा करेगा। प्यार उसके लिए एक इनाम बन जाता है, जो गलती करने पर उससे छीन लिया जाता है। इससे बच्चा अपनी सफलता को अपने आत्म-मूल्य से जोड़ने लगता है और आगे चलकर यह उसके लिए मानसिक दबाव बन सकता है।
3. क्या आपकी भावनाओं को हल्के में लिया जाता है?
जब बच्चा दुखी होता है, रोता है या अपनी भावनाओं को व्यक्त करना चाहता है, तो माता-पिता इसे ‘ड्रामा’ कहकर टाल देते हैं। बच्चे से कहा जाता है, “इतना भावुक मत हो या इतनी छोटी सी बात पर इतना रिएक्ट क्यों कर रहा है?” यानी बच्चे की भावनाओं को समझने की बजाय उसे गलत आंक लिया जाता है।
जब ऐसा बार-बार होता है, तो बच्चा अपनी बात कहने से डरने लगता है और धीरे-धीरे वह अंदर से परेशान, दुखी या खाली महसूस करने लगता है। इसे इमोशनल शटडाउन कहते हैं।
4. क्या आपको सलाह कम और चिढ़ाने ज़्यादा मिलते हैं?
अगर बच्चा कोई गलती करता है, तो उसे समझाने की बजाय माता-पिता उसे डांटना शुरू कर देते हैं। वे बच्चे को आलसी, कामचोर या निकम्मा कहने लगते हैं। ऐसे शब्द बच्चे को अंदर से तोड़ देते हैं। उसे खुद पर शक होने लगता है और धीरे-धीरे उसका आत्मविश्वास कमज़ोर होने लगता है।
5. क्या इनसे आपको डर या अपराधबोध होता है?
कई बार माता-पिता कुछ ऐसे वाक्य कह देते हैं, जिनका सीधा असर बच्चे के दिल पर पड़ता है। जैसे- अगर तुम सच में प्यार करते हो, तो ऐसी नहीं करते तुम एक दिन पछताओगे। ऐसे वाक्यों से बच्चे को लगता है कि अगर वह अपने माता-पिता की बात नहीं मानता है, तो वह एक बुरा इंसान है।
इस मामले में, बच्चा अपने फैसले खुशी से नहीं, बल्कि अपराधबोध से लेता है। प्यार उसे सहारा नहीं, बल्कि दबाव जैसा लगता है।