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जाने रेगुलर या डायरेक्ट में से कौन सी म्यूचुअल फंड स्कीम है बेस्ट,जाने डिटेल

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बिज़नस न्यूज़ डेस्क,मौजूदा समय में म्यूचुअल फंड भारत के सबसे पसंदीदा इन्वेस्ट ऑप्शंस में से एक बना हुआ है. इसके तहत लोग अपने पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाइ कर सकते हैं और साथ ही उन्हें प्रोफेशनल्स मैनेजर्स की सुविधा भी मिलती है. म्यूचुअल फंड में निवेशकों को आम तौर पर दो ऑप्शंस दिए जाते हैं, जिनमें रेगुलर और डायरेक्ट प्लान्स शामिल हैं. ये दोनों ही समान तरीके से निवेश करते हैं, लेकिन असली अंतर दोनों की लागत और उनके मैनेजमेंट के तरीके में है.

इनके बीच के अंतर को समझते हैं
म्यूचुअल फंड्स निवेशकों से पैसा इकट्ठा करके स्टॉक, बॉन्ड या दूसरे एसेट्स के डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो में निवेश करते हैं. इसका मकसद फंड मैनेजरों की एक्सपर्टीज का फायदा उठाकर निवेशकों के लिए रिटर्न जेनरेट करना है. म्यूचुअल फंड्स में निवेश करते समय निवेशकों को रेगुलर या डायरेक्ट स्कीम चुनने का ऑप्शन मिलता है.

‘Direct Plan’ में निवेशक इंटरमेडियरीज को शामिल किए बिना सीधे एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) से म्यूचुअल फंड यूनिट्स खरीद सकते हैं. जबकि “रेगुलर प्लान” में निवेशक डिस्ट्रीब्यूटर्स या ब्रोकरों के माध्यम से यूनिट खरीदते हैं, जो आमतौर पर लेनदेन को सुविधाजनक बनाने के लिए कमीशन कमाते हैं.

कॉस्ट स्ट्रक्चर
रेगुलर और डायरेक्ट म्यूचुअल फंड्स के बीच सबसे महत्वपूर्ण अंतर एक्सपेंस रेश्यो है. एक्सपेंस रेश्यो एक फीस होती है, जिसे AMC फंड की मैनेजमेंट कॉस्ट को कवर करने के लिए लेती है. इसमें एडमिनिस्ट्रेटिव कॉस्ट, मैनेजमेंट फीस और दूसरे ऑपरेशन एक्सपेंसेस शामिल होते हैं.डायरेक्ट प्लान में कोई इंटरमेडियरीज नहीं होने के चलते AMC को डिस्ट्रीब्यूशन कमीशन का भुगतान करने की जरूरत नहीं पड़ती है. इसलिए एक्सपेंस रेश्यो कम होता है, जिससे निवेश का एक बड़ा हिस्सा रिटर्न जेनरेट करने के काम आ सकता है.

क्या रिटर्न पर पड़ता है कम एक्सपेंस रेश्यो का असर?

डायरेक्ट प्लान का कम एक्सपेंस रेश्यो अक्सर निवेशकों के लिए बेहतर रिटर्न में तब्दील हो जाता है, खासकर लंबे समय में. समय के साथ एक्सपेंस रेश्यो में छोटे अंतर भी कम्पाउंडिंग के चलते इन्वेस्टमेंट की वैल्यू को काफी हद तक प्रभावित कर सकते हैं. उदाहरण के लिए, 2 प्लान, जिसमें एक रेगुलर और एक डायरेक्ट शामिल है – अगर दोनों 10% रिटर्न कमाते हैं, लेकिन रेगुलर स्कीम 1% का एक्सपेंस रेश्यो लेती है और डायरेक्ट स्कीम 0.5% चार्ज करती है, तो लॉन्ग टर्म में रिटर्न में अंतर काफी बड़ा हो सकता है.

क्या रेगुलर प्लान्स में निवेश करना चाहिए?
डायरेक्ट प्लान के कम कॉस्ट स्ट्रक्चर के बावजूद, रेगुलर प्लान नौसिखिए निवेशकों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकते हैं. रेगुलर प्लान के प्रमुख बेनिफिट्स में से एक – फाइनेंशियल एडवाइजर्स या डिस्ट्रीब्यूटर्स की गाइडेन्स है. निवेशकों को एक प्रोफेशनल की मदद से म्यूचुअल फंड की उलझी हुई दुनिया को समझने में मदद मिल सकती है, जो उनके फाइनेंशियल लक्ष्यों के आधार पर व्यक्तिगत सलाह दे सकता है.

टैक्सेशन पर भी नजर रखनी जरूरी
रेगुलर और डायरेक्ट स्कीम्स को चुनते समय टैक्सेशन को ध्यान में रखना चाहिए. इन दोनों स्कीम्स के लिए टैक्स स्ट्रक्चर समान है, क्योंकि इन दोनों के लिए म्यूचुअल फंड फ्रेमवर्क समान रहता है. रेगुलर और डायरेक्ट दोनों स्कीम्स कैपिटल गेन्स टैक्स के अधीन हैं, जो होल्डिंग पीरियड और फंड के प्रकार (इक्विटी और डेट) पर निर्भर करती हैं.दोनों ऑप्शंस परफॉरमेंस को लेकर पारदर्शिता प्रदान करते हैं, जिससे निवेशकों को अपने निवेश पर नजर रखने और समय के साथ रिटर्न का आकलन करने की सुविधा मिलती है.

आपके लिए कौन सा प्लान सही?
रेगुलर और डायरेक्ट म्यूचुअल फंड के बीच का निर्णय काफी हद तक निवेशक के अनुभव, लक्ष्यों और प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है. डायरेक्ट स्कीम्स अनुभवी निवेशकों के लिए बेहतर हैं, जो अपने दम पर निर्णय लेने में सक्षम हैं और लॉन्ग-टर्म ग्रोथ के लिए कॉस्ट को कम करना चाहते हैं. ये निवेशक कम एक्सपेंस रेश्यो के चलते ज्यादा रिटर्न कमा सकते हैं.दूसरी ओर, रेगुलर स्कीम्स उन लोगों के लिए सही साबित हो सकती हैं, जो नौसिखिए हैं और प्रोफेशनल गाइडेन्स लेना चाहते हैं या फिर खुद से निवेश का चयन और मैनेज करने से बचना चाहते हैं.

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