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जीवन में कोई भी शुभाशुभ कार्य मनुष्य स्वयं करता है या प्रकृति करवाती है

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यह प्रश्न न केवल दर्शनशास्त्र का विषय है, बल्कि हर सोचने-समझने वाले व्यक्ति के मन में कभी न कभी उठता ही है। क्या हमारे जीवन में होने वाले अच्छे या बुरे कार्य हमारे अपने निर्णय होते हैं, या फिर यह सब प्रकृति, भाग्य या किसी अदृश्य शक्ति द्वारा निर्धारित होता है? इस प्रश्न का उत्तर सरल नहीं है, लेकिन विभिन्न दृष्टिकोणों से समझा जा सकता है।

1. कर्म और स्वतंत्र इच्छा (Free Will) का सिद्धांत

अधिकांश भारतीय दर्शन, विशेषकर वेदांत और गीता, इस बात को स्वीकार करते हैं कि मनुष्य अपने कर्मों का कर्ता है।
भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं –

“उद्धरेदात्मनाऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।”
अर्थात् मनुष्य स्वयं ही अपने उत्थान और पतन का कारण है।
इस विचारधारा के अनुसार, हर शुभ-अशुभ कार्य का बीज मनुष्य के विचारों, निर्णयों और कर्मों में निहित होता है। यदि हम किसी को धोखा देते हैं या मदद करते हैं, तो वह हमारी इच्छाशक्ति और निर्णय का परिणाम होता है, न कि प्रकृति का।

2. प्रकृति और नियति (Destiny) का प्रभाव

दूसरी ओर, कुछ दर्शन यह मानते हैं कि मनुष्य केवल एक माध्यम है, और असली कर्ता प्रकृति या ब्रह्मांड की शक्तियाँ हैं। प्रकृति (या ईश्वर) ही हर जीव के जीवन में होने वाली घटनाओं का निर्धारण करती है।
ज्योतिष शास्त्र भी इसी विचार को बल देता है। इसके अनुसार, ग्रहों की स्थिति, जन्म कुंडली और कालचक्र के अनुसार मनुष्य के जीवन में घटनाएँ घटती हैं। ऐसे में शुभ-अशुभ कार्यों के लिए मनुष्य जिम्मेदार नहीं, बल्कि प्रकृति ही कर्ता होती है।

3. समन्वयवादी दृष्टिकोण (Balanced Viewpoint)

आधुनिक दर्शन और मनोविज्ञान का दृष्टिकोण यह है कि मनुष्य के निर्णय उसकी परिस्थितियों, मनोस्थिति, परिवेश और जैविक प्रवृत्तियों का सम्मिलित परिणाम होते हैं।
उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति यदि गुस्से में आकर किसी को नुकसान पहुंचा देता है, तो वह उसका निर्णय भी हो सकता है और साथ ही उसकी मानसिक अवस्था का प्रभाव भी। ऐसे में मनुष्य पूर्णतः स्वतंत्र नहीं है, लेकिन पूरी तरह से बाध्य भी नहीं है। यह एक संयोजन है — जहां कुछ हद तक प्रकृति उसे प्रभावित करती है, और कुछ हद तक वह स्वयं निर्णय लेता है।

निष्कर्ष

इस गूढ़ प्रश्न का उत्तर शायद किसी एक मत या दृष्टिकोण से नहीं दिया जा सकता।

  • यदि आप धार्मिक दृष्टिकोण से देखें, तो कर्म ही प्रधान है।

  • यदि आप वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें, तो प्रकृति और परिस्थितियाँ ही निर्णयों को प्रभावित करती हैं।

  • और यदि आप आध्यात्मिक दृष्टि से देखें, तो यह सब कुछ एक दिव्य योजना का हिस्सा है।

सच्चाई शायद इन सबके बीच में है — मनुष्य के पास स्वतंत्र इच्छा (Free Will) होती है, लेकिन वह पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं होता। प्रकृति उसे दिशा देती है, लेकिन अंतिम निर्णय उसके अपने होते हैं। यही जीवन की जटिलता और सुंदरता है।

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