हर साल हिंदू कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को संत कबीर दास की जयंती मनाई जाती है। इस साल कबीर दास जयंती 11 जून को मनाई जाएगी। कबीर दास न केवल कवि थे बल्कि एक समाज सुधारक भी थे। दोनों ने समाज को सही दिशा दिखाने में अहम भूमिका निभाई है। इसलिए हिंदी साहित्य में रुचि रखने वालों के लिए कबीरदास जयंती बहुत महत्वपूर्ण है। इस अवसर पर हम यहां आपके साथ कबीरदास जी के कुछ दोहे साझा करेंगे, जिनकी उपयोगिता इस आधुनिक युग में भी बनी हुई है…
कबीरदास के प्रसिद्ध दोहे और उनके अर्थ
तिनका कबहूं ना निंदिये, जो पांव तले होय.
कबहूं उड़ आंखों मे पड़े, पीर घनेरी होय.
कबीर कहते हैं कि एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है. अगर कभी वह तिनका उड़कर आंख में आ गिरे तो आपको बहुत तकलीफ दे सकता है.
माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय .
इक दिन ऐसा आएगा, मै रौंदूंगी तोय.
मिट्टी कुम्हार से कहती है, तुम मुझे क्यों रौंदते हो, एक दिन ऐसा आएगा जब मैं तुम्हें रोंदूंगी, अर्थाक मृत्यु के बाद शरीर मिट्टी में मिल जाता है.
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय.
ज्ञान केवल किताबों में नहीं होता है, बल्कि प्रेम और करुणा में भी होता है. जो व्यक्ति प्रेम को समझ लेता है, वही सच्चा पंडित होता है.
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय.
यह दोहा बताता है कि हर चीज में समय लगता है, इसलिए मन को धैर्य रखना चाहिए. माली हर दिन पेड़ को सिंचता है, लेकिन फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा. अर्थात हर काम सही समय आने पर ही होता है.
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर.