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ट्रंप को BRICS से क्यों डर लग रहा है… क्या आर-ब्लॉक तोड़ पाएगा डॉलर का दबदबा, विशेषज्ञ ने बताई चिंता की वजह

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनका प्रशासन लगातार ब्रिक्स को लेकर सवाल उठा रहा है। ट्रंप के वाणिज्य मंत्री ने तो सीधे तौर पर भारत को ब्रिक्स से दूरी बनाने को कहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि भारत, रूस, चीन समेत कई अहम देशों का यह समूह अमेरिका और ट्रंप से क्यों डर रहा है। विशेषज्ञों का मानना ​​है कि ब्रिक्स ही वह समूह है जो अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती दे सकता है। खासकर डॉलर के एकाधिकार और ट्रंप की टैरिफ नीति को यह समूह काट सकता है।

मिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक अर्थव्यवस्था पर अमेरिकी डॉलर का दबदबा है। ब्रिक्स उभरती अर्थव्यवस्थाओं द्वारा इसे चुनौती देने का एक रणनीतिक प्रयास है। यह समूह व्यापार और मौद्रिक मामलों में अहम भूमिका निभाता है, जो दुनिया की आधी आबादी और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 40% का प्रतिनिधित्व करता है।

दुनिया इस समय ट्रंप के टैरिफ का समाधान खोजने में जुटी है। विशेषज्ञों के अनुसार, ब्रिक्स के सदस्य देश डॉलर के विकल्प, स्थानीय मुद्रा समझौतों और एक साझा आरक्षित मुद्रा पर चर्चा कर रहे हैं। इसी के चलते विदेशी मुद्रा बाजार में आर-ब्लॉक का उदय हुआ है। आर-ब्लॉक उन देशों को संदर्भित करता है जिनकी मुद्रा आर से शुरू होती है। इसमें रूसी रूबल, भारतीय रुपया, चीनी रेनमिनबी, ब्राज़ीलियाई रियल, दक्षिण अफ़्रीकी रैंड और ईरानी रियाल शामिल हैं।

एसएमसी ग्लोबल सिक्योरिटीज़ की विश्लेषक सीमा श्रीवास्तव का कहना है कि आर-ब्लॉक के लिए डॉलर को हटाना कई चुनौतियों का सामना करेगा। सीमा कहती हैं, ‘विदेशी मुद्रा लेनदेन में 90% और डेरिवेटिव व्यापार में 85% डॉलर का योगदान है। यह संस्थागत मज़बूती और वैश्विक विश्वास पर आधारित है, जिसका ब्रिक्स में वर्तमान में अभाव है। निकट भविष्य में, ब्रिक्स के प्रयास डॉलर को बदलने के बजाय एक बहुध्रुवीय विदेशी मुद्रा प्रणाली को बढ़ावा देने की ओर बढ़ रहे हैं।

ट्रम्प के टैरिफ़ का मुकाबला

फ़िनोक्रेट टेक्नोलॉजीज़ के निदेशक गौरव गोयल का कहना है कि ब्रिक्स कोई नई एकल मुद्रा नहीं बना रहा है। इसके बजाय, वह सदस्य व्यापार के लिए रियल, रूबल, रुपया, रेनमिनबी और रैंड जैसी मुद्राओं के उपयोग को बढ़ावा दे रहा है। इससे डॉलर में तुरंत गिरावट तो नहीं आएगी, लेकिन इसका प्रभुत्व ज़रूर कम हो जाएगा। अमेरिकी डॉलर का महत्व कम हो जाएगा, खासकर कमोडिटी और ऊर्जा व्यापार में। विदेशी मुद्रा बाजार में अमेरिकी डॉलर सबसे मज़बूत बना हुआ है। ब्रिक्स एक समानांतर व्यवस्था बनाने में लगा है, जो उसके एकाधिकार को कमज़ोर करती है। विशेषज्ञों का मानना ​​है कि आर-ब्लॉक भले ही डॉलर को गिराने में कामयाब न हो, लेकिन यह दुनिया को एक बहुध्रुवीय मुद्रा व्यवस्था की ओर ले जा रहा है। इससे अमेरिका सीधे तौर पर चिंतित है और उसके नेताओं के बयानों में भी यह झलकता है।

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