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डायरेक्टर उमेश शुक्ला ने तोड़ी चुप्पी, अक्षय-परेश रावल की फिल्म रोकने के लिए मिली 8 करोड़ की रिश्वत की अफवाहों पर लगाई लगाम

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बॉलीवुड में जब भी सामाजिक और धार्मिक व्यंग्य आधारित फिल्मों की बात होती है, तो दो फिल्मों का ज़िक्र ज़रूर होता है—‘ओएमजी: ओह माई गॉड!’ और ‘पीके’। दोनों फिल्मों ने दर्शकों के बीच अपनी अलग पहचान बनाई, लेकिन साथ ही इनके बीच तुलना और विवाद भी सामने आए। अब ‘ओएमजी’ के निर्देशक उमेश शुक्ला ने सालों बाद इन विवादों पर खुलकर बात की है।

एक जैसे कॉन्सेप्ट पर दो सफल फिल्में

उमेश शुक्ला के निर्देशन में बनी ‘ओएमजी’ साल 2012 में रिलीज़ हुई थी और इसे दर्शकों ने खूब सराहा। फिल्म में परेश रावल ने एक नास्तिक की भूमिका निभाई थी, जो भूकंप में अपनी दुकान के नुकसान के बाद भगवान पर केस ठोक देता है। वहीं, 2014 में रिलीज हुई राजकुमार हिरानी की फिल्म ‘पीके’ में आमिर खान ने एक एलियन की भूमिका निभाई थी, जो भारत में धर्म और आस्था के नाम पर हो रहे ढोंग पर सवाल उठाता है। दोनों फिल्मों के विषय में सामाजिक और धार्मिक ढकोसलों पर कटाक्ष था। इसी कारण, जब ‘पीके’ रिलीज़ हुई, तो कई दर्शकों ने इसे ‘ओएमजी’ की नकल करार दिया। यही नहीं, उस समय यह अफवाह भी फैली कि ‘पीके’ की टीम ने ‘ओएमजी’ की रिलीज़ रुकवाने के लिए उमेश शुक्ला को 8 करोड़ रुपये की रिश्वत देने की कोशिश की थी।

उमेश शुक्ला ने दी सफाई

हाल ही में फ्राइडे टॉकीज को दिए इंटरव्यू में उमेश शुक्ला ने इन विवादों पर खुलकर बात की। उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि ‘पीके’ की टीम के पास भी ऐसा ही विचार रहा होगा। अगर ‘पीके’ पहले रिलीज़ होती, तो लोग ‘ओएमजी’ को उसकी कॉपी कहते।” उमेश ने यह भी बताया कि ‘ओएमजी’ की कहानी पहले एक नाटक के रूप में प्रस्तुत की जा चुकी थी, जिसे राजकुमार हिरानी, विधु विनोद चोपड़ा और लेखक अभिजात जोशी ने भी देखा था। उन्होंने स्पष्ट किया कि समान विषय होने पर कुछ समानताएं आना स्वाभाविक हैं।“अगर आप लव स्टोरी बना रहे हैं, तो उसमें कोई न कोई ‘आई लव यू’ तो कहेगा ही, इसमें कुछ असामान्य नहीं है,” उन्होंने जोड़ा।

रिश्वत की खबरों को बताया झूठ

सबसे बड़े विवाद पर बात करते हुए उमेश शुक्ला ने कहा कि विधु विनोद चोपड़ा द्वारा 8 करोड़ की रिश्वत देने की खबरें सिर्फ अफवाह थीं। “ऐसा कुछ नहीं हुआ। विधु, राजकुमार और आमिर सभी बेहद टैलेंटेड लोग हैं। वे इतनी ओछी हरकत नहीं कर सकते। न उन्होंने मुझे पैसे दिए और न मैंने कोई फिल्म रोकी।”

निष्कर्ष: विवाद नहीं, कला का सम्मान जरूरी

फिल्मों के कॉन्सेप्ट भले ही मिलते-जुलते हों, लेकिन हर फिल्म अपने अंदाज और प्रस्तुति से खास होती है। ‘ओएमजी’ और ‘पीके’ दोनों ने भारतीय समाज में धार्मिक आस्था पर विचार करने को मजबूर किया। उमेश शुक्ला के इस बयान ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अफवाहों से ज्यादा ज़रूरी है रचनात्मकता और सिनेमा को खुले दिल से स्वीकार करना।

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