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द्वापर युग में मिले भगवान श्री कृष्ण के आशीर्वाद से कलयुग में भगवान बना था ये राक्षस, पौराणिक कथा में जाने महाभारत से कनेक्शन

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भारत की पौराणिक कथाओं में ऐसे कई रहस्यमय पात्र हैं, जिनकी कहानियां समय के साथ नई-नई रोचक जानकारियां देती हैं। इन्हीं में से एक कथा है उस राक्षस की, जो द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से कलयुग में भगवान के रूप में पूजित हुआ। यह कोई और नहीं बल्कि भगवान शनि के अवतार के रूप में पूजे जाने वाले कालभैरव हैं, जिनका संबंध सीधे-सीधे महाभारत काल से जुड़ा है।

कौन था यह राक्षस?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह कथा उस असुर की है जिसे ‘कृष्ण की भक्ति’ और तपस्या के बदले दिव्य आशीर्वाद मिला था। यह राक्षस था तो शक्तिशाली और घमंडी, लेकिन उसके भीतर भक्ति की ऐसी अग्नि थी जो स्वयं श्रीकृष्ण को भी प्रभावित कर गई। इस राक्षस का नाम था कालनेमि

कालनेमि और महाभारत से संबंध

महाभारत के अनुसार, कालनेमि एक राक्षस था जिसे कंस ने भेजा था भगवान कृष्ण को मारने के लिए। वह शक्तिशाली और मायावी था, लेकिन श्रीकृष्ण और बलराम के सामने उसकी कोई चाल नहीं चली और वह मारा गया। लेकिन मृत्यु के क्षणों में, कालनेमि को भगवान श्रीकृष्ण के विराट स्वरूप का दर्शन हुआ और उसमें भक्ति का जन्म हुआ।

उसने मरते-मरते भगवान श्रीकृष्ण से वरदान मांगा कि वह अगले युग में फिर जन्म ले और उनका भक्त बनकर धर्म की सेवा करे। श्रीकृष्ण ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा कि “तुम कलयुग में मेरे अंश से उत्पन्न होकर भगवान के रूप में पूजे जाओगे और अधर्म के विनाश में तुम्हारी अहम भूमिका होगी।”

कलयुग में कालभैरव के रूप में अवतरण

कहा जाता है कि श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से कालनेमि ने कलयुग में कालभैरव के रूप में अवतार लिया। कालभैरव को शिव के एक उग्र रूप के रूप में जाना जाता है, लेकिन कई परंपराओं में उन्हें श्रीकृष्ण का ही कलियुगी प्रतिनिधि माना जाता है, जो धर्म की रक्षा करते हैं और अधर्मियों को दंड देते हैं।

कालभैरव का स्वरूप रौद्र है – वे काले रंग के, त्रिशूल धारी, कुत्ते पर सवार और समय के स्वामी माने जाते हैं। ‘काल’ का अर्थ ही है समय और ‘भैरव’ का अर्थ है भय का नाश करने वाला। इस रूप में वे श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए वरदान को पूर्ण करते हैं, क्योंकि कलयुग में वे ही धर्म के प्रहरी बनकर कार्य करते हैं।

क्यों पूजा जाता है कालभैरव को?

कालभैरव की पूजा विशेष रूप से मंगलवार और रविवार को की जाती है। कहा जाता है कि उनकी उपासना करने से भय, कष्ट, बाधा और पापों से मुक्ति मिलती है। जो भक्त सच्चे मन से कालभैरव की आराधना करते हैं, उन्हें जीवन में कभी डर और असुरक्षा का सामना नहीं करना पड़ता।

कालभैरव का एक प्रमुख मंदिर काशी में स्थित है, जिसे कालभैरव बाबा का निवास माना जाता है। मान्यता है कि काशी के कोतवाल स्वयं कालभैरव हैं और बिना उनकी अनुमति के कोई भी आत्मा वहां निवास नहीं कर सकती।

श्रीकृष्ण का आशीर्वाद – एक भविष्य की भूमिका

इस कथा का गूढ़ संदेश यह भी है कि भगवान की भक्ति और पश्चाताप में इतनी शक्ति होती है कि राक्षस भी भगवान बन सकते हैं। श्रीकृष्ण ने कालनेमि के हृदय में भक्ति की ज्वाला देखी और उसके भविष्य को एक धर्म रक्षक के रूप में निर्धारित कर दिया।

यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि यद्यपि हमारे कर्म प्रारंभ में गलत हो सकते हैं, लेकिन यदि हम समय रहते सच्चे हृदय से पश्चाताप करें और भगवान का स्मरण करें, तो हमें भी मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।

निष्कर्ष

द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने एक राक्षस को यह वरदान दिया कि वह कलयुग में भगवान बनकर पूजित होगा। वही राक्षस बाद में कालभैरव के रूप में जन्म लेकर धर्म की रक्षा करता है। इस पौराणिक कथा में न केवल भक्ति, क्षमा और परिवर्तन की शक्ति दिखाई देती है, बल्कि यह भी प्रमाणित होता है कि भगवान अपने प्रत्येक भक्त को अवसर देते हैं – चाहे वह पूर्व में कितना भी बड़ा अपराधी क्यों न रहा हो।

तो अगली बार जब आप कालभैरव की पूजा करें, तो इस पौराणिक कथा को जरूर याद करें – क्योंकि ये केवल धर्म की बातें नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि का संदेश भी हैं।

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