हिंदू धर्मग्रंथों में अनेक ऐसे रहस्य और घटनाएं वर्णित हैं जो कालचक्र के साथ कई युगों में फैली हुई हैं। ऐसी ही एक रहस्यमयी कथा जुड़ी है एक राक्षस से, जो द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के संपर्क में आया और कलयुग में उसे ‘भगवान’ का दर्जा प्राप्त हुआ। यह कथा न सिर्फ रोचक है बल्कि यह महाभारत के ऐतिहासिक प्रसंगों और कलयुग की धार्मिक मान्यताओं को भी आपस में जोड़ती है।
यह राक्षस कोई और नहीं, बल्कि घटोत्कच के पुत्र और भीम के पोते बरबरिक हैं, जिन्हें आज श्री खाटू श्याम जी के नाम से पूजा जाता है। लाखों भक्तों की आस्था के केंद्र बने खाटू श्याम जी की कहानी महाभारत से शुरू होकर कलयुग तक फैली हुई है।
कौन था बरबरिक?
बरबरिक महाभारत के भीषण युद्ध से ठीक पहले एक महत्वपूर्ण पात्र के रूप में प्रकट होते हैं। वे भीम के पुत्र घटोत्कच के पुत्र थे और माता का नाम मोरवी था। बचपन से ही बरबरिक युद्धकला में पारंगत थे और भगवान शिव की तपस्या करके उन्होंने तीन अमोघ बाण प्राप्त किए थे। इन तीन बाणों की शक्ति इतनी थी कि वे संपूर्ण महाभारत युद्ध को कुछ ही समय में समाप्त कर सकते थे।
श्रीकृष्ण ने क्यों रोकी बरबरिक की भागीदारी?
महाभारत युद्ध से पहले बरबरिक युद्धभूमि में भाग लेने के लिए निकल पड़े। लेकिन उन्होंने यह संकल्प लिया था कि वे हमेशा कमज़ोर पक्ष की ओर से युद्ध करेंगे। जब भगवान श्रीकृष्ण को इसकी जानकारी मिली तो वे साधु के रूप में उनके सामने आए और उनसे तीन बाणों की परीक्षा ली। श्रीकृष्ण को यह समझ आ गया कि अगर बरबरिक युद्ध में शामिल होते हैं तो उनका पक्ष बदलता रहेगा और अंततः अकेले वही युद्ध में बचेंगे। इससे युद्ध का सार ही बदल जाता। तब श्रीकृष्ण ने उनसे दान मांगा— अपने शीश (सिर) का दान।
बरबरिक का बलिदान और वरदान
श्रीकृष्ण की आज्ञा को परम मानते हुए बरबरिक ने बिना किसी संकोच के अपना सिर काटकर दान कर दिया। श्रीकृष्ण उनकी वीरता, भक्ति और त्याग से अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान दिया कि कलयुग में तुम ‘श्री श्याम’ के नाम से पूजे जाओगे। श्रीकृष्ण ने कहा कि जो भी भक्त सच्चे मन से तुम्हारा नाम लेगा, उसकी मनोकामना पूरी होगी। यही कारण है कि आज बरबरिक को ‘खाटू श्याम जी’ कहा जाता है और राजस्थान के सीकर जिले में स्थित उनका मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है।
क्यों कहा जाता है ‘कलयुग के कृष्ण’?
बरबरिक को श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से ‘श्याम’ नाम मिला, जो स्वयं श्रीकृष्ण का ही एक नाम है। यही कारण है कि उन्हें ‘कलयुग के कृष्ण’ कहा जाता है। मान्यता है कि जैसे द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने धर्म की स्थापना की, वैसे ही कलयुग में श्याम बाबा लोगों के संकटों का नाश करते हैं और उन्हें सही मार्ग दिखाते हैं।
खाटू श्याम मंदिर और महाभारत का कनेक्शन
राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम मंदिर में वह स्थान है जहां बरबरिक का सिर रखा गया था और वहीं से उनकी पूजा की शुरुआत हुई। माना जाता है कि यह सिर महाभारत युद्ध के अंत तक कुरुक्षेत्र में मौजूद रहा और युद्ध का पूरा दृश्य देखा। युद्ध समाप्ति के बाद श्रीकृष्ण ने उसे उसी स्थान पर प्रतिष्ठित किया, जिसे आज खाटू श्याम मंदिर के नाम से जाना जाता है।
खाटू श्याम की महिमा और भक्ति
खाटू श्याम जी के मंदिर में प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु देशभर से आते हैं। विशेषकर फाल्गुन मेले में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। बाबा श्याम को ‘हारे का सहारा’ भी कहा जाता है, क्योंकि कहा जाता है कि जो भी संकट में श्याम का नाम लेता है, उसकी रक्षा स्वयं बाबा करते हैं। भक्त उन्हें फूलों का श्रृंगार, भजन-कीर्तन, और चरणामृत सेवा के जरिए प्रसन्न करते हैं। बाबा श्याम के भक्तों के अनुसार, वे केवल भक्ति के भूखे हैं और सच्चे ह्रदय से जो उन्हें पुकारता है, वे उसकी पुकार अवश्य सुनते हैं।
निष्कर्ष
बरबरिक की यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चा त्याग, भक्ति और धर्म के मार्ग पर चलना ही व्यक्ति को ईश्वर बना सकता है। श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए आशीर्वाद से द्वापर युग का यह राक्षसपुत्र आज करोड़ों लोगों की आस्था के केंद्र में भगवान श्याम बन चुका है। महाभारत की इस छिपी हुई कथा से यह स्पष्ट होता है कि इतिहास सिर्फ युद्धों और राजाओं की कहानियां नहीं होता, बल्कि यह उन लोगों की कहानियां भी होती हैं जो अपने त्याग से युगों तक पूजे जाते हैं। खाटू श्याम बाबा उसी श्रृंखला की एक जीवंत कड़ी हैं।